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शहीद सिदो-कान्हू की शहादत को नमन, ब्रिटिश हुकूमत को घुटने टेकने को कर दिया था मजबूर - हूल क्रांति के महानायक की कहानी

हूल क्रांति के महानायक सिदो-कान्हू ने 1855 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत की थी. साहिबगंज के लोग आजादी का महानायक सिदो-कान्हू को ही मानते हैं. 6 भाई-बहन ने मिलकर अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे. 26 जुलाई 1855 को अग्रेजों ने सिदो-कान्हू दोनो भाईयों को फांसी की सजा दे दी थी.

Salute to martyrdom of Shahid Sido Kanhu
सिदो कान्हू ने अंग्रेजों के खिलाफ की बगावत
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Published : Jul 25, 2020, 4:54 PM IST

Updated : Jul 26, 2020, 5:56 AM IST

साहिबगंज: हूल क्रांति के महानायक सिदो-कान्हू की शहादत को लोग आज भी नहीं भुला पाए हैं. जिलेवासी अपनी आजादी का श्रेय शहीद सिदो-कान्हू को ही मानते हैं. इतिहास के पन्नों में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ पहला संथाल विद्रोह 1855 से 1856 तक चला था. इस आंदोलन में आदिवासी और गैर आदिवासी के लोग एकजुट होकर अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका था. जिसमें 60 हजार लोगों ने भाग लिए थे. इस आंदोलन का नेतृत्व शहीद सिदो-कान्हू और चांद-भैरव कर रहे थे. उन्होंने अपने पारंपरिक अस्त्र-शस्त्र से ही अंग्रेजी सैनिकों के दांत खट्टे कर दिए थे.

देखें स्पेशल स्टोरी

चारों भाई बहन ने अंग्रेजों के खिलाफ फूंका बिगुल
साहिबगंज के बरहेट प्रखंड के भोगनाडीह गांव में वीर सपूत सिदो-कान्हू का जन्म 1815 और 1820 में हुआ था. सिदो-कान्हू चार भाई और दो बहन थे. सिदो-कान्हू और चंद- भैरव के साथ मिलकर उनकी बहन फूलों, चान्हो ने महाजनी प्रथा और सहायक अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाई थी. इस लड़ाई में संथाल परगना, भागलपुर, मुंगेर, हजारीबाग, रांची, बंगाल, उड़ीसा सहित अन्य जगहों से लोगों को एकजुट किया और 30 जून 1855 को भोगनाडीह से बिगुल फूंका. यह लड़ाई एक साल तक चला था.

आंदोलन में 10 हजार से अधिक लोगों की गई थी जान
अंग्रेजों ने इस पहले आंदोलन को कुचलने के अधिक संख्या सैन्य बल उतारा और बेरहमी से लोगों को मारना शुरू किया. इस आंदोलन में 10 हजार से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवाई थी. अपने बीच के किसी गद्दार के सहयोग से चांद-भैरव को गोली मार दी गई थी और सिदो- कान्हू दोनों भाई को पकड़ लिया गया. अंग्रेजों ने भय और दहशत बनाने के लिए दोनों भाई को बरहेट प्रखंड के पचकठिया में पीपल के पेड़ नीचे हजारों लोगों के बीच फांसी पर लटका दिया था. उस स्थल को आज क्रांति स्थल के नाम से जाना जाता है. आज भी लोग उनके शहादत को भूल नहीं पाए हैं. नम आंखों से उनके शहादत को याद करते हैं. हालांकि उनकी शहादत कब हुई इसे लेकर जानकारों की अलग-अलग राय है. स्थानीय लोगों का कहना है कि आज भी उनका परिवार बहुत सारे योजना से वंचित हैं, हालांकि कुछ को रोजगार मिल है, राज्य सरकार और केंद्र सरकार को इस शहीद के वंशज के ऊपर विशेष ध्यान देने की जरूरत है.

इसे भी पढ़ें:- साहिबगंजः गंगा कटाव पीड़ित की अनदेखी, एक साल से पहाड़ की तलहटी में रहने को मजबूर


शहीदों के ग्रामीणों को मिल रहा रोजगार
उप विकास आयुक्त ने कहा कि सिदो- कान्हू के वंशज के सभी परिवार को शहीद ग्राम विकास योजना के तहत घर दिया गया है, गांव में बिजली पहुंचा दिया गया, शहीद के गांव में एक स्कूल है उस स्कूल को बेहतर तरीके से मॉडिफाई किया जा रहा है और शहीद के गांव के लोग पलायन नहीं कर सके इसके लिए बीडीओ को निर्देश दिया गया है, कि कोई भी लोग रोजगार पाने के लिए आए तो उन्हें मनरेगा सहित अन्य योजनाओं से जोड़कर तत्काल रोजगार उपलब्ध कराएं.

साहिबगंज: हूल क्रांति के महानायक सिदो-कान्हू की शहादत को लोग आज भी नहीं भुला पाए हैं. जिलेवासी अपनी आजादी का श्रेय शहीद सिदो-कान्हू को ही मानते हैं. इतिहास के पन्नों में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ पहला संथाल विद्रोह 1855 से 1856 तक चला था. इस आंदोलन में आदिवासी और गैर आदिवासी के लोग एकजुट होकर अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका था. जिसमें 60 हजार लोगों ने भाग लिए थे. इस आंदोलन का नेतृत्व शहीद सिदो-कान्हू और चांद-भैरव कर रहे थे. उन्होंने अपने पारंपरिक अस्त्र-शस्त्र से ही अंग्रेजी सैनिकों के दांत खट्टे कर दिए थे.

देखें स्पेशल स्टोरी

चारों भाई बहन ने अंग्रेजों के खिलाफ फूंका बिगुल
साहिबगंज के बरहेट प्रखंड के भोगनाडीह गांव में वीर सपूत सिदो-कान्हू का जन्म 1815 और 1820 में हुआ था. सिदो-कान्हू चार भाई और दो बहन थे. सिदो-कान्हू और चंद- भैरव के साथ मिलकर उनकी बहन फूलों, चान्हो ने महाजनी प्रथा और सहायक अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाई थी. इस लड़ाई में संथाल परगना, भागलपुर, मुंगेर, हजारीबाग, रांची, बंगाल, उड़ीसा सहित अन्य जगहों से लोगों को एकजुट किया और 30 जून 1855 को भोगनाडीह से बिगुल फूंका. यह लड़ाई एक साल तक चला था.

आंदोलन में 10 हजार से अधिक लोगों की गई थी जान
अंग्रेजों ने इस पहले आंदोलन को कुचलने के अधिक संख्या सैन्य बल उतारा और बेरहमी से लोगों को मारना शुरू किया. इस आंदोलन में 10 हजार से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवाई थी. अपने बीच के किसी गद्दार के सहयोग से चांद-भैरव को गोली मार दी गई थी और सिदो- कान्हू दोनों भाई को पकड़ लिया गया. अंग्रेजों ने भय और दहशत बनाने के लिए दोनों भाई को बरहेट प्रखंड के पचकठिया में पीपल के पेड़ नीचे हजारों लोगों के बीच फांसी पर लटका दिया था. उस स्थल को आज क्रांति स्थल के नाम से जाना जाता है. आज भी लोग उनके शहादत को भूल नहीं पाए हैं. नम आंखों से उनके शहादत को याद करते हैं. हालांकि उनकी शहादत कब हुई इसे लेकर जानकारों की अलग-अलग राय है. स्थानीय लोगों का कहना है कि आज भी उनका परिवार बहुत सारे योजना से वंचित हैं, हालांकि कुछ को रोजगार मिल है, राज्य सरकार और केंद्र सरकार को इस शहीद के वंशज के ऊपर विशेष ध्यान देने की जरूरत है.

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शहीदों के ग्रामीणों को मिल रहा रोजगार
उप विकास आयुक्त ने कहा कि सिदो- कान्हू के वंशज के सभी परिवार को शहीद ग्राम विकास योजना के तहत घर दिया गया है, गांव में बिजली पहुंचा दिया गया, शहीद के गांव में एक स्कूल है उस स्कूल को बेहतर तरीके से मॉडिफाई किया जा रहा है और शहीद के गांव के लोग पलायन नहीं कर सके इसके लिए बीडीओ को निर्देश दिया गया है, कि कोई भी लोग रोजगार पाने के लिए आए तो उन्हें मनरेगा सहित अन्य योजनाओं से जोड़कर तत्काल रोजगार उपलब्ध कराएं.

Last Updated : Jul 26, 2020, 5:56 AM IST
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