साहिबगंज: गंगा किनारे बसने वाले दर्जनों गांव आर्सेंनिक युक्त पेयजल की समस्या से जूझ रहा है. इस गांव में रहने वाले लोग कैंसर, चर्म रोग सहित कई गंभीर बीमारियों से ग्रसित हैं. जिसमें पहला स्थान सदर प्रखंड के डिहारी गांव का नाम आता है. जहां दर्जनों लोग कैंसर जैसी असाध्य बीमारी से मौत की गोद में समा चुके हैं. 2014 में झारखंड में 14 महीने के लिए हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने थे. आर्सेनिक मुक्त पेयजल व्यवस्थता के लिए झारखंड में पांच जिला के लिए पांच वाहन को हरी झंडी दिखाई थी. लेकिन महज एक साल में ही इस योजना ने दम तोड़ दिया.
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साहिबगंज में चलंत जलशोधन संयंत्र का लाभ लोगों को नहीं मिल रहा है. यहां के लोग आर्सेनिक युक्त पानी पीने को मजबूर हैं. लाखों की मशीन सड़ने की कगार पर पहुंची है. ये वाहन विभाग के स्टोर रूम में शोभा की वस्तु बनकर रह गयी है. आज से 6 साल पहले इस चलंत जलशोधन संयंत्र का लाभ मिलता था. इस वाहन से शहर के चौक चौराहों पर एक रुपया में पानी का पाउच मिलता था. राहगीर गर्मी के दिनों में खरीदकर पानी पीते थे. इस वाहन में लाखों रुपया का मशीन लगा हुआ है. ड्राइवर के अलावा चार से पांच स्टाफ इस वाहन में काम किया करते थे. लेकिन अचानक एक दिन ये योजना बंद हो गयी. उसके बाद से अब तक लोगों को शुद्ध पेयजल मिलना नसीब नहीं हुआ है.
पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के पदाधिकारी गोबिंद कच्छप ने बताया कि यूनिसेफ के द्वारा यह योजना चलाई गयी थी. चलंत पेयजल वाहन का यही उद्देश्य था कि आर्सेनिक जैसे क्षेत्रों में घूम-घूमकर लोगों को शुद्ध पेयजल एक रुपया में एक पाउच दें. ट्रायल पर यूनिसेफ ने झारखंड को पांच वाहन मुहैया कराया था. जिस कंपनी को यह जिम्मा मिला था वो विभाग से एमओयू नहीं कराया और वाहन को स्टोर में लगाकर चला गया. इस संदर्भ में विभाग से दिशा निर्देश मांगा जाता है लेकिन अभी तक किसी प्रकार का संकेत नहीं मिला है. इसलिए वो फिलहाल कुछ नहीं कर पा रहे हैं.