साहिबगंजः जिला मुख्यालय से मात्र 14 किमी दूर एक डिहारी गांव है, जो आर्सेनिक गांव के नाम से विख्यात है. जिले में इस गांव के नाम जुबान पर आते ही यह मालूम चल जाता है कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारी वाला गांव है. सदर प्रखंड में स्थित इस गांव की आबादी लगभग तीन हजार है. इस गांव में पानी में आर्सेनिक पाई जाती है. पानी में आर्सेनिक की मात्रा इतनी अधिक है कि खाना बनाने वाला बर्तन या टंकी पीला हो जाता है.
आर्सेनिक मुक्त पानी के लिए फिल्टर मशीन
डिहारी गांव में देश-विदेश से वैज्ञानिक पहुंच कर रिसर्च करते हैं और शिविर के माध्यम से लोगों के बाल, त्वचा, ब्लड की जांच करते हैं. आर्सेनिक मुक्त पानी पिलाने के लिए फिल्टर मशीन चापाकल में लगाई जाती है, लेकिन थोड़े दिनों के बाद वह मशीन भी पीले पड़ने से खराब हो जाती है. आज तक इस डिहारी गांव में बसने वाले लोगों के लिए शुद्ध जल नहीं मिल पाया है. अभी तक राज्य सरकार की ओर से इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं हो पाई है. हालांकि पीएचडी की ओर से इस गांव में सिर्फ पीने और स्नान के लिए पानी देने के लिए टंकी बनाई गई है, लेकिन देख रेख के अभाव में खराब हो जाता है.
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कैंसर जैसी कई बीमारी
डिहारी गांव के लोगों का कहना है कि आर्सेनिक युक्त पानी पीने से अब तक 100 से अधिक लोग कैंसर जैसी बीमारी से अपनी जान गवां चुके है. मरने वालों में बच्चे, युवक और बूढ़े सभी शामिल हैं. स्थानीय लोगों का कहना आर्सेनिक युक्त पानी पीने से इस गांव के 90 प्रतिशत लोगों के दांत पीले हो चुके है, हर कोई चर्म रोग से परेशान है. किसी में कम है तो किसी को अधिक बीमारी है, लेकिन हर कोई किसी न किसी बीमारी की चपेट में है.
आर्सेनिक मुक्त पानी के लिए चार टंकी
पीएचडी पदाधिकारी विजय एडविन का कहना कि गांव डिहारी में लोगों को शुद्ध पेयजल मिल सके इसके लिए रक्सी स्थान से शुद्ध पेयजल इस गांव में नलकूप के माध्यम से पहुंचाया जा रहा था, लेकिन बीच-बीच में नल टूटने की वजह से यह योजना भी विफल साबित हो गई. उसके बाद इस गांव में आर्सेनिक मुक्त पानी के लिए चार टंकी बनाई गई, उन सभी टंकी में मशीन लगाई गई. मशीन से पानी फिल्टर होते हुए टंकी में स्टोर होता है और लोगों को सिर्फ पीने के लिए पानी मुहैया कराया जाता है.