साहिबगंज: जिले के तसलझारी प्रखंड के दुधकोल पहाड़ पर पत्थरों पर करोड़ों साल पुराने जीवाश्म मिले हैं. फॉसिल्स कहे जाने वाले इन पादप जीवाश्म पर पत्ता सा उभरा हुआ देखने को मिल रहा है. वहीं क्वार्ट्ज खनिज पत्थर पर भगवन शिव और पार्वती जैसी आकृति नजर आ रही है. इस पत्थर पर देवी-देवताओं के चित्र देखकर आदिवासी समुदाय के लोगों ने पूजा पाठ शुरू कर दिया है. इसके चलते इन दिनों तालझारी प्रखंड के दुधकोल पहाड़ पर लोगों की भीड़ लग रही है. स्थानीय भूगर्भशास्त्रियों का अनुमान है कि यह जीवाश्म बीस करोड़ साल पुराना या जुरासिक काल का हो सकता है.
पत्थर पर देवी-देवताओं के उभरी आकृति को देखकर आदिवासियों ने मंदिर की स्थापना भी कर दी गई है. लोगों ने पूजा पाठ करना शुरू कर दिया है. झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार से सफाहोड़ आदिवासी समुदाय के लोग जुटने लगे हैं और गंगा से जल लेकर पूजा कर रहे हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि यह घटना कहीं न कहीं ईश्वर का कोई संकेत है, इस पत्थर में चमक है और उभरी हुई शिव-पार्वती का आकृति से यह आस्था से जुड़ चुका है. हालांकि इस पहाड़ पर फॉसिल्स देखने को मिल रहा है. भूवैज्ञानिक यहां आकर शोध करेंगे.
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एक भूगर्भशास्त्री ने बताया कि तालझारी प्रखंड का दुधकोल पहाड़ आज कल आस्था का केंद्र बन गया है. इन पहाड़ों पर 20 करोड़ वर्ष पूर्व यानी जुरासिक काल का पादप फॉसिल्स मिला है, इन पत्थरों पर पत्ते की आकृति भी देखने को मिल रही है, यह फॉसिल्स कुछ हटकर है, कार्बन डेटिंग से आयु की गणना की जा सकती है. उन्होंने कहा कि फॉसिल्स में देवी देवता का आकृति उभरा है, जिसकी आदिवासी पूजा कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह क्वार्डज खनिज पत्थर है, आस्था जो हो, लेकिन विज्ञान को नकारा नहीं जा सकता है, बहुत जल्द भूगर्भवैज्ञानिकों की टीम साहिबगंज आ रही है, जो शोध करेगी.