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Sahibganj News: मक्के की खेती कर निराश हैं किसान, पिछले वर्ष से भी कम मिल रहा दाम - साहिबगंज कृषि पदाधिकारी सुबोध प्रसाद सिंह

साहिबगंज के किसान निराश हैं. उन्हें उनकी उपज का उचित दाम नहीं मिल रहा है. किसानों ने कहा कि बाजार नहीं होने से उन्हें नुकसान सहना पड़ रहा है.

Sahibganj Farmers News
साहिबगंज में मक्के की खेती का उचित दाम नहीं मिल रहा
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Published : May 17, 2023, 12:17 PM IST

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साहिबगंज: दियारा क्षेत्र में बिचौलिया बैसाखी मकई की खरीदारी में जुटे हुए हैं. इस बार किसान मक्के का सही दाम नहीं मिलने से दुखी हैं. बिचौलिया इनकी मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं. इन किसान को पिछले साल 2200 से 2300 रुपये प्रति क्विंटल मक्के के दाम मिले थे. लेकिन इस बार 1610 या 1620 रुपये में लोकल व्यापारी खरीदारी कर रहे हैं. यह बैसाखी मकई है, जिसकी बुआई रबी की फसल के साथ की जाती है. 30 हजार एकड़ में खेती होती है. यह फसल पक चुकी है. किसान मजदूर लगाकर मक्के को खेत से तुड़वा रहे हैं.

ये भी पढ़ें: Sahibganj News: 53 हृदय रोगियों की रिम्स में होगी स्क्रीनिंग, रांची भेजने की तैयारी में साहिबगंज सिविल सर्जन

सदर प्रखंड के किशन प्रसाद, लालबथानी, बलुआ दियारा सहित अन्य क्षेत्रों मेंं मक्के की खेती अधिक की गई है. किसानों ने कहा कि इस बार बारिश नहीं होने से सिंचाई का खर्च किसान को अधिक हुआ है. खेत की जुताई और मक्के की जड़ में मिट्टी चढ़ाने से लेकर फसल काटने तक में मजदूरों को पेमेंट करना पड़ता है. ऐसी स्थिति में किसान को बहुत कम फायद होता है. यदि इन किसान को उचित बाजार मिल जाता तो शायद अच्छी कीमत मिल जाती. व्यापारी इनके मक्का की खरीदारी पीरपैंती रेक प्वाइंट पर 1710 रुपये प्रति क्विंटल पर बेच देते हैं.

किसान शिवजी यादव ने कहा कि खेती करने में बहुत परेशानी होती है. कभी आपदा की वजह से फसल बर्बाद हो जाती है. तो कभी फसल तैयार होती है तो बाजार भाव नहीं मिलने से पूंजी भी नहीं निकल पाती है. मजबूरी में खेत से व्यापारी लोगों को औने पौने दाम में बेचना पड़ता है. पिछले साल 2200 से 2300 रुपये प्रति क्विंटल मिलता था. इस बार 1620 रुपये प्रति क्विंटल मिल रहा है. सीधे तौर पर प्रति क्विंटल में 700 रुपये का आर्थिक नुकसान हो रहा है.

वहीं, किसान शोभाकांत मंडल ने कहा कि व्यापारी अपने साथ सही तराजू नहीं लाते हैं. एक क्विंटल करीब पांच किलो अनाज चला जाता है. किसानों में एकजुटता नहीं है, इसी का फायदा व्यपारी उठाते हैं. अगर वृहत पैमाने में एक क्षेत्र में खेती की जाती है तो शायद व्यापारी सही दाम देते. इनकों नहीं बेच कर बगल के जिला में संपर्क कर बेचा जाता है. जिला प्रशासन को इस दिशा में सोचना चाहिए.

जिला कृषि पदाधिकारी सुबोध प्रसाद सिंह ने कहा कि बात सही है कि बाजार सही नहीं मिलने से किसानों का शोषण हो रहा है. हमारे विभाग में कई योजनाएं चल रही हैं. एग्री क्लीनिक और एग्री बिजनेस से जोड़ जानकारी ले सकते है. बताया कि किसानों को प्रशिक्षण देकर जागरूक किया जा रहा है. किसान एफपीओ से जुड़कर अपनी का उपज का लाभ ले सकते है.

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साहिबगंज: दियारा क्षेत्र में बिचौलिया बैसाखी मकई की खरीदारी में जुटे हुए हैं. इस बार किसान मक्के का सही दाम नहीं मिलने से दुखी हैं. बिचौलिया इनकी मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं. इन किसान को पिछले साल 2200 से 2300 रुपये प्रति क्विंटल मक्के के दाम मिले थे. लेकिन इस बार 1610 या 1620 रुपये में लोकल व्यापारी खरीदारी कर रहे हैं. यह बैसाखी मकई है, जिसकी बुआई रबी की फसल के साथ की जाती है. 30 हजार एकड़ में खेती होती है. यह फसल पक चुकी है. किसान मजदूर लगाकर मक्के को खेत से तुड़वा रहे हैं.

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सदर प्रखंड के किशन प्रसाद, लालबथानी, बलुआ दियारा सहित अन्य क्षेत्रों मेंं मक्के की खेती अधिक की गई है. किसानों ने कहा कि इस बार बारिश नहीं होने से सिंचाई का खर्च किसान को अधिक हुआ है. खेत की जुताई और मक्के की जड़ में मिट्टी चढ़ाने से लेकर फसल काटने तक में मजदूरों को पेमेंट करना पड़ता है. ऐसी स्थिति में किसान को बहुत कम फायद होता है. यदि इन किसान को उचित बाजार मिल जाता तो शायद अच्छी कीमत मिल जाती. व्यापारी इनके मक्का की खरीदारी पीरपैंती रेक प्वाइंट पर 1710 रुपये प्रति क्विंटल पर बेच देते हैं.

किसान शिवजी यादव ने कहा कि खेती करने में बहुत परेशानी होती है. कभी आपदा की वजह से फसल बर्बाद हो जाती है. तो कभी फसल तैयार होती है तो बाजार भाव नहीं मिलने से पूंजी भी नहीं निकल पाती है. मजबूरी में खेत से व्यापारी लोगों को औने पौने दाम में बेचना पड़ता है. पिछले साल 2200 से 2300 रुपये प्रति क्विंटल मिलता था. इस बार 1620 रुपये प्रति क्विंटल मिल रहा है. सीधे तौर पर प्रति क्विंटल में 700 रुपये का आर्थिक नुकसान हो रहा है.

वहीं, किसान शोभाकांत मंडल ने कहा कि व्यापारी अपने साथ सही तराजू नहीं लाते हैं. एक क्विंटल करीब पांच किलो अनाज चला जाता है. किसानों में एकजुटता नहीं है, इसी का फायदा व्यपारी उठाते हैं. अगर वृहत पैमाने में एक क्षेत्र में खेती की जाती है तो शायद व्यापारी सही दाम देते. इनकों नहीं बेच कर बगल के जिला में संपर्क कर बेचा जाता है. जिला प्रशासन को इस दिशा में सोचना चाहिए.

जिला कृषि पदाधिकारी सुबोध प्रसाद सिंह ने कहा कि बात सही है कि बाजार सही नहीं मिलने से किसानों का शोषण हो रहा है. हमारे विभाग में कई योजनाएं चल रही हैं. एग्री क्लीनिक और एग्री बिजनेस से जोड़ जानकारी ले सकते है. बताया कि किसानों को प्रशिक्षण देकर जागरूक किया जा रहा है. किसान एफपीओ से जुड़कर अपनी का उपज का लाभ ले सकते है.

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