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Pitru Paksha 2021 : कैसे समझें पिंडदान और तर्पण से पितर हुए प्रसन्न? - Crow in Pitru Paksha

पितृ पक्ष 2021 (Pitru Paksha 2021) 20 सितंबर से शुरू होकर 6 अक्टूबर तक चलेगा. मान्यता है कि इस दौरान पितर अपने वंशजों से मिलने आते हैं. पितृ पक्ष में पूर्वजों को जल देने से आत्मा को शांति मिलती है और वंशजों के घर में सुख शांति बनी रहती है. पिंडदान और तर्पण से पितर प्रसन्न हुए या नहीं, इसे समझना कठिन नहीं है.

Crow in Pitru Paksha
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Published : Sep 21, 2021, 1:48 PM IST

साहिबगंज/रांचीः बिहार के गया जिले में फल्गू नदी के तट पर पिंडदान करना सबसे अच्छा माना गया है. लेकिन आप इस पूजा को किसी पवित्र नदी के किनारे भी कर सकते हैं. श्राद्ध पक्ष (Pitru Paksha 2021) में पिंडदान और तर्पण से प्रसन्न मृत्यु के देवता यमराज जीवात्मा को मुक्ति प्रदान कर देते हैं. पितृ पक्ष के दौरान कौओं (Crow in Pitru Paksha) का महत्व बेहद खास होता है. कौओं के जरिए पितरों की प्रसन्नता और नाराजगी को समझा जा सकता है.

ये भी पढ़ें-Pitru Paksha 2021 : जानिए पितरों के पूजन की खास विधि और तिथियां

पितृ पक्ष को श्राद्ध पक्ष भी कहते हैं. इस दौरान पितरों को भोजन अर्पित करने की परंपरा है. भोजना का हिस्सा कौओं को भी खिलाया जाता है. यदि कौए भोजन का हिस्सा खा लेते हैं तो माना जाता है कि पितर प्रसन्न हैं. लेकिन कौआ अपना हिस्सा नहीं खाता तो ऐसा माना जाता कि पितर नाराज हैं.

वीडियो में देखें खबर

यमराज के प्रतीक हैं कौए

पितृ पक्ष में पितरों के अलावा देव, गाय, कुत्ते, कौए और चींटी को भी भोजन देने की परंपरा है. जैसे गाय में सभी देवों का वास होता है. ठीक वैसे ही पितर पक्ष में श्वान और कौए पितर का रूप माने जाते हैं. कौए को यमराज का प्रतीक भी कहते हैं.

ये भी पढ़ें-शनि की दृष्टि से ना घबराएं, इन आसान उपायों से प्रसन्न होंगे शनिदेव

गंगा किनारे पिंडदान और तर्पण

साहिबगंज में गंगा नदी के किनारे भी पिंडदान और तर्पण करने वाले बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं. पितृ पक्ष में देवी-देवताओं और यमराज का द्वार खुला रहता है. इस दौरान अपने पूर्वजों को जल देने से आत्मा को शांति मिलती है, साथ ही क्षमा याचना करने से सुख शांति प्राप्त होती है. पितरों की पूजा और कौओं को भोजन देने के बाद पीपल के पेड़ की के नीचे पूजा करना चाहिए.

पितृ पक्ष के दौरान कई लोग अंतिम तिथि तक गंगा स्नान कर अपने पितरों को तर्पण करते हैं. ज्यादातर लोक सिर्फ पितरों के देवलोक गमन की तारीख को पिंडदान और तर्पण करते हैं. पितृ पक्ष में कोई शुभ काम नहीं होता है. पितृ तर्पण करने वाला व्यक्ति सादा भोजन करता है और शाम को अपने माता-पिता या पूर्वजों के नाम से दीपक जलाता है.

साहिबगंज/रांचीः बिहार के गया जिले में फल्गू नदी के तट पर पिंडदान करना सबसे अच्छा माना गया है. लेकिन आप इस पूजा को किसी पवित्र नदी के किनारे भी कर सकते हैं. श्राद्ध पक्ष (Pitru Paksha 2021) में पिंडदान और तर्पण से प्रसन्न मृत्यु के देवता यमराज जीवात्मा को मुक्ति प्रदान कर देते हैं. पितृ पक्ष के दौरान कौओं (Crow in Pitru Paksha) का महत्व बेहद खास होता है. कौओं के जरिए पितरों की प्रसन्नता और नाराजगी को समझा जा सकता है.

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पितृ पक्ष को श्राद्ध पक्ष भी कहते हैं. इस दौरान पितरों को भोजन अर्पित करने की परंपरा है. भोजना का हिस्सा कौओं को भी खिलाया जाता है. यदि कौए भोजन का हिस्सा खा लेते हैं तो माना जाता है कि पितर प्रसन्न हैं. लेकिन कौआ अपना हिस्सा नहीं खाता तो ऐसा माना जाता कि पितर नाराज हैं.

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यमराज के प्रतीक हैं कौए

पितृ पक्ष में पितरों के अलावा देव, गाय, कुत्ते, कौए और चींटी को भी भोजन देने की परंपरा है. जैसे गाय में सभी देवों का वास होता है. ठीक वैसे ही पितर पक्ष में श्वान और कौए पितर का रूप माने जाते हैं. कौए को यमराज का प्रतीक भी कहते हैं.

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गंगा किनारे पिंडदान और तर्पण

साहिबगंज में गंगा नदी के किनारे भी पिंडदान और तर्पण करने वाले बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं. पितृ पक्ष में देवी-देवताओं और यमराज का द्वार खुला रहता है. इस दौरान अपने पूर्वजों को जल देने से आत्मा को शांति मिलती है, साथ ही क्षमा याचना करने से सुख शांति प्राप्त होती है. पितरों की पूजा और कौओं को भोजन देने के बाद पीपल के पेड़ की के नीचे पूजा करना चाहिए.

पितृ पक्ष के दौरान कई लोग अंतिम तिथि तक गंगा स्नान कर अपने पितरों को तर्पण करते हैं. ज्यादातर लोक सिर्फ पितरों के देवलोक गमन की तारीख को पिंडदान और तर्पण करते हैं. पितृ पक्ष में कोई शुभ काम नहीं होता है. पितृ तर्पण करने वाला व्यक्ति सादा भोजन करता है और शाम को अपने माता-पिता या पूर्वजों के नाम से दीपक जलाता है.

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