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खाकसार होती खादी! महिलाएं संजो रहीं बापू की धरोहर, नहीं मिल रही सरकारी मदद

खादी देश की शान का प्रतीक है, आंदोलन की विरासत है, बापू की धरोहर है. देशभर में खादी ग्रामोद्योग भंडार संचालित हैं. लेकिन साहिबगंज का खादी ग्रामोद्योग सरकारी अनदेखी का शिकार हो रहा है.

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Published : Oct 1, 2021, 9:25 PM IST

Updated : Oct 1, 2021, 9:56 PM IST

साहिबगंजः कभी देश में क्रांति की प्रतीक रही खादी साहिबगंज में बेहाल हो गई है. जिला के आला अफसरों ने इसकी ओर से मुंह फेर लिया है. लगातार गुहार लगाने के बाद भी जिला उपायुक्त ने जर्जर भवन की मरम्मत के लिए फंड की व्यवस्था नहीं की. यहां काम करने वाली 32 महिलाओं को वर्षों पुराने दर से आज भी मजदूरी मिल रही है. फिर भी यहां महिलाएं किसी तरह बापू की विरासत संभाल रही हैं.

इसे भी पढ़ें- कब तक लोगों को मिलेगा रोजगार! खादी पार्क का सात साल से इंतजार

जिला का खादी ग्रामोद्योग में काम करने वाली महिलाओं के साथ उद्योग की भी हालत खस्ता है. वर्षों से जर्जर भवन में ही वो काम कर रही हैं. यहां काम करने वाली महिलाओं को भी कोई खास मेहनताना नहीं मिलता. यहां के कर्मचारी सरकार से मदद की आस कर रहे हैं. इस गांधी जयंती के मौके पर एक बार फिर से उन्होंने सरकारी महकमे से मदद की गुहार लग रहे हैं.

देखें पूरी खबर

साहिबगंज में खादी ग्रामोद्योग से 32 महिलाएं जुड़कर अपना परिवार चला रही हैं. वर्षों से इस संस्थान से जुड़कर काम करते-करते बूढ़ी हो चुकी हैं, मगर आज भी इनका हौसला बुलंद है. लेकिन महंगाई के दौर में इनको कम मजदूरी मिलने से नाराजगी जरूर है. महिलाओं का कहना है कि वर्षों से 3 रुपये प्रति गुंडी के हिसाब से मजदूरी मिलती है, कम मजदूरी मिलने से हमें परेशानी हो रही है. इन महिलाओं का कहना है कि कम से कम 5 रुपया प्रति गुंडी मजदूरी होनी चाहिए तभी हम खुशहाल रह पाएंगे. सभी का कहना है कि इस संस्थान से जुड़ कर परिवार चला रहे हैं लेकिन इस महंगाई में मजदूरी बढ़नी चाहिए.

जर्जर खादी भवन
खादी ग्रामोद्योग से जुड़ी महिलाएं बताती हैं कि सुबह 9 बजे काम पर आ जाती हैं और शाम को 5 बजे जाती हैं, समय का पता नहीं चलता है, समय भी कट जाता है. लेकिन इस जर्जर भवन में हादसे का अंदेशा हमेशा बना रहता है. इस भवन में पंखा नहीं है, बिजली की व्यवस्था नहीं है. जिसकी वजह से यहां काम करने वाली महिलाओं को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

इसे भी पढ़ें- SPECIAL: बदहाली की मार झेल रहा है खादी ग्रामोद्योग, प्रशासन से लगाई मदद की गुहार

खादी ग्रामोद्योग के मैनेजर ने ईटीवी भारत से कहा कि जिला प्रशासन को कई बार यहां की समस्या से अवगत कराया, पर कोई भी पहल नहीं हुई. उन्होंने कहा कि खादी ग्रामोद्योग परिसर में यहां जमीन पर्याप्त है, इस जमीन पर नया भवन बना दिया जाता है तो 100 बुनकर और 250 महिलाओं को काम दिया जा सकता है. पुराना जर्जर भवन है, इससे हमेशा डर लग रहता कि कहीं कोई हादसा ना हो जाए. उन्होंने कहा कि खादी ग्रामोद्योग से अभी 32 महिला चरखा चलाकर काम कर रही हैं. वहीं खादी कपड़ों में चमक नहीं है, यही वजह है कि लोग पसंद नहीं करते और बिक्री कम होती है. कम बिक्री होने से कमाई नहीं होती है.

चरखा का नाम सुनते ही हमारे मस्तिष्क में बापू की याद आ जाती है. महात्मा गांधी हमेशा से खादी कपड़ों को बढ़ावा देते रहे. अपने देश के कपड़ों को पहनने की सलाह दिया करते थे, लेकिन समय बदलता गया और लोग खादी वस्त्र को दरकिनार करते गए. इस चकाचौंध भरी दुनिया में लोग पश्चिमी सभ्यता की वेशभूषा अधिक पसंद करने लगे. इससे खादी को संजो रहीं महिलाओं की चुनौती बढ़ गई हैं. खादी से जुड़े मशीनों को अगर आधुनिकीकरण कर दिया जाए तो खादी वस्त्रों में थोड़ी चमक आएगी जिससे खादी फैशन की दौड़ में गतिमान रहेगा

साहिबगंजः कभी देश में क्रांति की प्रतीक रही खादी साहिबगंज में बेहाल हो गई है. जिला के आला अफसरों ने इसकी ओर से मुंह फेर लिया है. लगातार गुहार लगाने के बाद भी जिला उपायुक्त ने जर्जर भवन की मरम्मत के लिए फंड की व्यवस्था नहीं की. यहां काम करने वाली 32 महिलाओं को वर्षों पुराने दर से आज भी मजदूरी मिल रही है. फिर भी यहां महिलाएं किसी तरह बापू की विरासत संभाल रही हैं.

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जिला का खादी ग्रामोद्योग में काम करने वाली महिलाओं के साथ उद्योग की भी हालत खस्ता है. वर्षों से जर्जर भवन में ही वो काम कर रही हैं. यहां काम करने वाली महिलाओं को भी कोई खास मेहनताना नहीं मिलता. यहां के कर्मचारी सरकार से मदद की आस कर रहे हैं. इस गांधी जयंती के मौके पर एक बार फिर से उन्होंने सरकारी महकमे से मदद की गुहार लग रहे हैं.

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साहिबगंज में खादी ग्रामोद्योग से 32 महिलाएं जुड़कर अपना परिवार चला रही हैं. वर्षों से इस संस्थान से जुड़कर काम करते-करते बूढ़ी हो चुकी हैं, मगर आज भी इनका हौसला बुलंद है. लेकिन महंगाई के दौर में इनको कम मजदूरी मिलने से नाराजगी जरूर है. महिलाओं का कहना है कि वर्षों से 3 रुपये प्रति गुंडी के हिसाब से मजदूरी मिलती है, कम मजदूरी मिलने से हमें परेशानी हो रही है. इन महिलाओं का कहना है कि कम से कम 5 रुपया प्रति गुंडी मजदूरी होनी चाहिए तभी हम खुशहाल रह पाएंगे. सभी का कहना है कि इस संस्थान से जुड़ कर परिवार चला रहे हैं लेकिन इस महंगाई में मजदूरी बढ़नी चाहिए.

जर्जर खादी भवन
खादी ग्रामोद्योग से जुड़ी महिलाएं बताती हैं कि सुबह 9 बजे काम पर आ जाती हैं और शाम को 5 बजे जाती हैं, समय का पता नहीं चलता है, समय भी कट जाता है. लेकिन इस जर्जर भवन में हादसे का अंदेशा हमेशा बना रहता है. इस भवन में पंखा नहीं है, बिजली की व्यवस्था नहीं है. जिसकी वजह से यहां काम करने वाली महिलाओं को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

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खादी ग्रामोद्योग के मैनेजर ने ईटीवी भारत से कहा कि जिला प्रशासन को कई बार यहां की समस्या से अवगत कराया, पर कोई भी पहल नहीं हुई. उन्होंने कहा कि खादी ग्रामोद्योग परिसर में यहां जमीन पर्याप्त है, इस जमीन पर नया भवन बना दिया जाता है तो 100 बुनकर और 250 महिलाओं को काम दिया जा सकता है. पुराना जर्जर भवन है, इससे हमेशा डर लग रहता कि कहीं कोई हादसा ना हो जाए. उन्होंने कहा कि खादी ग्रामोद्योग से अभी 32 महिला चरखा चलाकर काम कर रही हैं. वहीं खादी कपड़ों में चमक नहीं है, यही वजह है कि लोग पसंद नहीं करते और बिक्री कम होती है. कम बिक्री होने से कमाई नहीं होती है.

चरखा का नाम सुनते ही हमारे मस्तिष्क में बापू की याद आ जाती है. महात्मा गांधी हमेशा से खादी कपड़ों को बढ़ावा देते रहे. अपने देश के कपड़ों को पहनने की सलाह दिया करते थे, लेकिन समय बदलता गया और लोग खादी वस्त्र को दरकिनार करते गए. इस चकाचौंध भरी दुनिया में लोग पश्चिमी सभ्यता की वेशभूषा अधिक पसंद करने लगे. इससे खादी को संजो रहीं महिलाओं की चुनौती बढ़ गई हैं. खादी से जुड़े मशीनों को अगर आधुनिकीकरण कर दिया जाए तो खादी वस्त्रों में थोड़ी चमक आएगी जिससे खादी फैशन की दौड़ में गतिमान रहेगा

Last Updated : Oct 1, 2021, 9:56 PM IST
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