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साहिबगंजः खतरे के निशान के ऊपर बह रही गंगा, हजारों एकड़ में लगे मक्के की फसल बर्बाद - साहिबगंज में मक्का फसल बर्बाद

साहिबगंज में प्रत्येक वर्ष बाढ़ के कहर की वजह से किसानों को काफी नुकसान होता है. इस साल भी ऐसा ही कुछ हुआ है. इस साल भी गंगा नदी उफान पर है. खतरे के निशान को पार करते हुए बह रही है. लगातार हो रही बारिश के कारण किसानों के खेतों में लगे मक्के की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी है.

cron crop wasted
मक्के की फसल बर्बाद
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Published : Aug 19, 2020, 1:39 PM IST

साहिबगंजः झारखंड का बाढ़ प्रभावित जिला साहिबगंज है. प्रत्येक वर्ष बारिश के मौसम में गंगा नदी उफान पर रहती है. जिससे हजारों लोग परेशान रहते हैं. दियारा इलाका जलमग्न होने से किसानों की पूरी फसल डूब जाती है. स्थिति ऐसी होती है कि किसान पानी के अंदर घुसकर फसल काट भी नहीं पाते हैं और फसल सड़ जाते हैं. प्रत्येक वर्ष खास करके किसानों को यह बाढ़ का पानी एक त्रासदी बनकर आता है और एक बड़ा जख्म देकर वापस चला जाता है.

देखें पूरी खबर
उत्तरवाहिनी गंगा के जलस्तर में लगातार बढ़ोतरीगंगा के जलस्तर की बात करें तो इन दिनों उत्तरवाहिनी गंगा के जलस्तर में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. खतरे के निशान को पार करते हुए गंगा का जलस्तर काफी ऊपर पहुंच चुका है. सीडब्ल्यूसी रिपोर्ट की अगर माने तो आज गंगा नदी खतरे के निशान को पार करते हुए 00. 82 सेंटीमीटर ऊपर बह रही है. हालांकि जिला प्रशासन ने दियारा क्षेत्र को बाढ़ क्षेत्र घोषित नहीं किया है, लेकिन संभावित बाढ़ को लेकर जिला प्रशासन पूरी तरह कमर कस चुका है.

दियारा क्षेत्र पूरी तरह से जलमग्न होने की कगार पर
दियारा क्षेत्र पूरी तरह से जलमग्न होने की कगार पर पहुंच चुका है. खेतों में पानी जमने से मकई की फसल पूरी तरह से चौपट हो चुकी है. पौधे सूख कर पानी में खड़े हैं. वहीं, इससे किसानों को मजदूरी भी नहीं निकल पाई. जिले के मिर्जाचौकी से लेकर फरक्का तक 83 किमी गंगा बहती है. गंगा के तटीय इलाकों में हजारों बीघा में किसान भदई मकई लगाते हैं. इस मौसम में मकई की फसल लगाने से किसान को काफी फायदा होता है. पानी की कमी नहीं होती है और काफी आसान तरीके से पौधा लग भी जाता है और किसानों की भदोही मकई खेती भी सफल हो जाती है.

इसे भी पढ़ें- कोरोना का असर : देश में 41 लाख युवाओं के गए रोजगार, सबसे अधिक मजदूर

जिले में कृषि पर एक नजर

  • कृषि योग्य क्षेत्र- 1,03,049.46 हेक्टर
  • गैर-खेती क्षेत्र- 8,585.44 हेक्टयर
  • सिंचित क्षेत्र- 8,484 हेक्टयर जमीन
  • खरीफ फसल- धान, मक्का, अरहर, उड़द, मूंग, सोयाबीन
  • रबी फसल- गेंहू, राय, तीसी, चन्ना
  • सब्जियां- फूलगोभी, पत्तागोभी, गाजर, बैंगन, टमाटर, परवल

धूप नहीं निकलने से सड़ रहे फसल
किसानों ने कहा कि इस बार दियारा क्षेत्र में भदई मक्के की फसल में गंगा का पानी घुसने से फसल बर्बाद हो चुकी है. एक-दो गांव में किसी-किसी किसान के खेत में थोड़ी बहुत मक्के की फसल बची हुई है, लेकिन स्थिति यह है कि उससे काफी बदबू दे रहा है. किसानों का कहना है कि मक्के में काला दाग लग चुका है. बाजार में इसकी कीमत 900 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि पिछले साल 1800 रुपये प्रति क्विंटल बेचा गया था.

किसानों को इस वर्ष काफी क्षति
जिला कृषि अधिकारी उमेश तिर्की ने कहा कि किसानों को इस वर्ष काफी क्षति हुई है. यह महसूस किया जा रहा है. जिला स्तर पर उपायुक्त की अध्यक्षता में एक बैठक हुई है. जिसमें सभी अंचलाधिकारी को निर्देश दिया गया है कि अपने-अपने क्षेत्रों में सर्वे करें और बताएं कि किन-किन किसानों की फसल बर्बाद हुई है, ताकि उन किसानों को आपदा विभाग से क्षतिपूर्ति राशि दी जा सके.

साहिबगंजः झारखंड का बाढ़ प्रभावित जिला साहिबगंज है. प्रत्येक वर्ष बारिश के मौसम में गंगा नदी उफान पर रहती है. जिससे हजारों लोग परेशान रहते हैं. दियारा इलाका जलमग्न होने से किसानों की पूरी फसल डूब जाती है. स्थिति ऐसी होती है कि किसान पानी के अंदर घुसकर फसल काट भी नहीं पाते हैं और फसल सड़ जाते हैं. प्रत्येक वर्ष खास करके किसानों को यह बाढ़ का पानी एक त्रासदी बनकर आता है और एक बड़ा जख्म देकर वापस चला जाता है.

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उत्तरवाहिनी गंगा के जलस्तर में लगातार बढ़ोतरीगंगा के जलस्तर की बात करें तो इन दिनों उत्तरवाहिनी गंगा के जलस्तर में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. खतरे के निशान को पार करते हुए गंगा का जलस्तर काफी ऊपर पहुंच चुका है. सीडब्ल्यूसी रिपोर्ट की अगर माने तो आज गंगा नदी खतरे के निशान को पार करते हुए 00. 82 सेंटीमीटर ऊपर बह रही है. हालांकि जिला प्रशासन ने दियारा क्षेत्र को बाढ़ क्षेत्र घोषित नहीं किया है, लेकिन संभावित बाढ़ को लेकर जिला प्रशासन पूरी तरह कमर कस चुका है.

दियारा क्षेत्र पूरी तरह से जलमग्न होने की कगार पर
दियारा क्षेत्र पूरी तरह से जलमग्न होने की कगार पर पहुंच चुका है. खेतों में पानी जमने से मकई की फसल पूरी तरह से चौपट हो चुकी है. पौधे सूख कर पानी में खड़े हैं. वहीं, इससे किसानों को मजदूरी भी नहीं निकल पाई. जिले के मिर्जाचौकी से लेकर फरक्का तक 83 किमी गंगा बहती है. गंगा के तटीय इलाकों में हजारों बीघा में किसान भदई मकई लगाते हैं. इस मौसम में मकई की फसल लगाने से किसान को काफी फायदा होता है. पानी की कमी नहीं होती है और काफी आसान तरीके से पौधा लग भी जाता है और किसानों की भदोही मकई खेती भी सफल हो जाती है.

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जिले में कृषि पर एक नजर

  • कृषि योग्य क्षेत्र- 1,03,049.46 हेक्टर
  • गैर-खेती क्षेत्र- 8,585.44 हेक्टयर
  • सिंचित क्षेत्र- 8,484 हेक्टयर जमीन
  • खरीफ फसल- धान, मक्का, अरहर, उड़द, मूंग, सोयाबीन
  • रबी फसल- गेंहू, राय, तीसी, चन्ना
  • सब्जियां- फूलगोभी, पत्तागोभी, गाजर, बैंगन, टमाटर, परवल

धूप नहीं निकलने से सड़ रहे फसल
किसानों ने कहा कि इस बार दियारा क्षेत्र में भदई मक्के की फसल में गंगा का पानी घुसने से फसल बर्बाद हो चुकी है. एक-दो गांव में किसी-किसी किसान के खेत में थोड़ी बहुत मक्के की फसल बची हुई है, लेकिन स्थिति यह है कि उससे काफी बदबू दे रहा है. किसानों का कहना है कि मक्के में काला दाग लग चुका है. बाजार में इसकी कीमत 900 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि पिछले साल 1800 रुपये प्रति क्विंटल बेचा गया था.

किसानों को इस वर्ष काफी क्षति
जिला कृषि अधिकारी उमेश तिर्की ने कहा कि किसानों को इस वर्ष काफी क्षति हुई है. यह महसूस किया जा रहा है. जिला स्तर पर उपायुक्त की अध्यक्षता में एक बैठक हुई है. जिसमें सभी अंचलाधिकारी को निर्देश दिया गया है कि अपने-अपने क्षेत्रों में सर्वे करें और बताएं कि किन-किन किसानों की फसल बर्बाद हुई है, ताकि उन किसानों को आपदा विभाग से क्षतिपूर्ति राशि दी जा सके.

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