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Corona Effect: आर्थिक तंगी में स्कूल यूनिफॉर्म कारोबारी, सरकार से बच्चों के स्कूल खोलने की मांग

कोरोना का असर हर तबके पर पड़ा है. शिक्षा व्यवस्था और इससे जुड़े संस्थान सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. इसके अलावा स्कूल से जुड़े कारोबारी आज तक इस सदमे से उबर नहीं पाए हैं. आलम ये है कि लगभग दो साल से स्कूल यूनिफॉर्म का कारोबार कर रहे लोग आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहे हैं.

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Published : Aug 2, 2021, 4:54 PM IST

Updated : Aug 3, 2021, 5:12 PM IST

साहिबगंजः मार्च 2020 के बाद नए सत्र शुरूआत होने के साथ ही कोरोना जैसी वैश्विक महामारी ने देश की रफ्तार को ब्रेक लगा दिया. इसका असर शिक्षण संस्थान पर बुरी तरह से असर पड़ा. आज 2 साल होने को जा रहा है, अभी तक शिक्षण संस्थानों के पूरी तरह से संचालन पर पाबंदी है. राज्य सरकार ने फिलहाल सिर्फ बड़े बच्चों के स्कूल खोलने का अनुमति ही दी है. इसका सीधा असर स्कूल यूनिफॉर्म से गुजारा कर रहे लोगों पर पड़ा है.

इसे भी पढ़ें- झारखंड में खुल गए कक्षा 9 से 12वीं तक के स्कूल, 9 अगस्त से शुरू होगी पढ़ाई

कोरोना के कारण स्कूल बंद रहने से स्कूल ड्रेस के कारोबार पर भी बुरा असर पड़ा है. इस बार ऑनलाइन क्लास में ड्रेस को अनिवार्य करने से ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि कारोबारियों को भरपाई करने का मौका मिलेगा, पर ऐसा नहीं हुआ. स्कूलों के कड़े निर्देश के बाद बाद शर्ट थोड़ा-बहुत बिका. लेकिन आज 16 महीने में पैंट और जूतों को ग्राहक का इंतजार है.

देखें पूरी खबर

ऑनलाइन क्लास में मोबाइल या लैपटॉप पर सिर्फ शर्ट ही फ्रेम में आता है. ऐसे में पुराने या नए छात्रों के अभिभावकों का जोर सिर्फ शर्ट खरीदने पर ही रहा है. जिस घर में दो बच्चे हैं, वह पुरानी शर्ट या एक यूनिफॉर्म से दोनों बच्चों का काम चल जाता है.

स्कूल ड्रेस और यूनिफार्म बनाने वाले कारोबारियों का कहना है कि कोविड शुरू होने के बाद से जो स्कूल बंद हुए उसके बाद से स्कलू नहीं खुला, जिसकी वजह से उनकी आर्थिक स्थिति चरमरा गई है. कारोबारियों को अपने कर्मचारी कम करने पड़े हैं और साथ ही कारीगरों से दूसरे काम करवाए जा रहे हैं. कारोबारियों ने अपने कारोबार की रूप-रेखा बदली, पहले सिर्फ स्कूल ड्रेस बेचते थे, आज उसे गार्मेंट्स शॉप में तब्लील कर दिया.

स्कूल ड्रेस की दुकान को बनाया गार्मेंट्स शॉप

दुकानदारों ने अपना घर चलाने के लिए अपनी दुकानों का रंग-रूप भी बदल दिया. स्कूल ड्रेस और यूनिफॉर्म की जगह अब रंग-बिरंगे कपड़ों ने ले ली है. स्कूल ड्रेस कमाई का बड़ा जरिया है, इसलिए अगर छोटे बच्चों का भी स्कूल खुल जाता तो ऐसे कारोबारियों को थोड़ी मदद मिल जाती.

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दुकान में धूल फांकते स्कूल यूनिफॉर्म

दुकानदारों का कहना है कि हर राज्य में स्कूल खुलने लगे हैं, पर झारखंड में स्कूल खोलने की अनुमति सरकार नहीं दे रही है. जब भी करोना कम होता है तो अनुमति देकर स्कूल खुलवाना चाहिए. अगर केस बढ़ने लगे स्कूल बंद कर देना चाहिए ताकि स्कूल से जुड़े कई कई लोगों को राहत मिल जाए.

उद्योग विभाग का महाप्रबंधक ने कहा कि कोरोला काल के दौरान जो दुकानदार बैंक से लोन लिए हैं. वह अपना इएमआई नहीं भर पा रहे हैं तो वह लिखित सूचना दें ताकि उनकी 2 साल तक अवधि बढ़ाई जा सके. दूसरी बात पीएमजीपी योजना के तहत वैसे युवा रोजगार करना चाहते हैं, उनको एक लाख से लेकर 25 लाख तक अनुदान पर आर्थिक मदद की जा सकती है. शहरी क्षेत्रों के लिए 25% और रिजर्व के लिए 35% अनुदान पर ऋण मुहैया कराई जाएगी.

इसे भी पढ़ें- JMM विधायक लोबिन हेम्ब्रम ने सरकार से पूछा सिर्फ स्कूलों में ही कोरोना है?

विधायक लोबिन हेंब्रम को सौंपा मांग पत्र

कुछ कारोबारी बोरियो विधायक लोबिन से हेंब्रम से स्कूल खोलने को लेकर अपनी मांग सौंपी है. इसको लेकर विधायक ने कहा कि झारखंड में भी स्कूल खुलना चाहिए, क्योंकि अगल-बगल के कई राज्य 2 अगस्त से स्कूल खोल रहे हैं, ऐसी परिस्थिति में झारखंड में भी खोलने की अनुमति सरकार को देनी चाहिए. जब हर चीज धीरे-धीरे खोला जा रहा है तो स्कूलों को भी खोलना चाहिए, क्योंकि बच्चों का भविष्य खराब हो रहा है. ऑनलाइन क्लास से बच्चे नहीं पढ़ पा रहे हैं. उन्होंने भरोसा दिलाया है कि निश्चित रूप से मुख्यमंत्री से मिलकर वो इस दिशा में पहल करेंगे.

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स्कूल ड्रेस की दुकान

इसे भी पढ़ें- सिलाई मशीन से बदल रही महिलाओं की किस्मत, स्कूल ड्रेस सीकर बना रही अपना भविष्य

लघु उद्योग भी हुआ प्रभावित

साहिबगंज में स्कूल ड्रेस और यूनिफॉर्म का कारोबार करने वाली 10 प्रमुख एजेंसी काम करती है, कोई स्कूल ड्रेस बनाता है तो कोई जूता और स्कूल बैग बनाता है. इस कारोबार से जुड़े लगभग 400 लोग सीधे जुड़े हैं, बिक्री की कमी के चलते लगभग इनके 2500 सदस्यों के सामने रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न हो गई है. कारोबारियों के अनुसार 1 साल में अनुमान से 50 से 60 करोड़ तक का कारोबार हो जाता था, इसमें स्कूल ड्रेस के साथ-साथ अन्य सामग्री भी शामिल है. इसके लिए कोलकाता, मुंबई और सूरत से कपड़े मंगाए जाते थे.

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स्कूल बैग की बिक्री नहीं हो रही

कोरोना की वजह से लघु घरेलू उद्योग भी प्रभावित हुए हैं. कई महिलाएं घर में स्कूल का लोगो बनाने सहित अन्य कढ़ाई का काम करती थीं. उनका काम लगभग दो साल से ठप है. संक्रमण काल में घरेलू उद्योग से जुड़े कई महिलाएं और लोग बंद हो गए. शर्ट में बटन टांकने वालों का परिवार भी कोरोना काल में काफी प्रभावित हुआ है. कुल मिलाकर कहा जाए तो कोरोना काल में शिक्षा जगत बुरी तरह से प्रभावित हुआ है, ना सिर्फ पढ़ाई-लिखाई पर असर पड़ा है बल्कि इस व्यवसाय से जुड़े लोग आर्थिक तंगी का शिकार हुए हैं.

साहिबगंजः मार्च 2020 के बाद नए सत्र शुरूआत होने के साथ ही कोरोना जैसी वैश्विक महामारी ने देश की रफ्तार को ब्रेक लगा दिया. इसका असर शिक्षण संस्थान पर बुरी तरह से असर पड़ा. आज 2 साल होने को जा रहा है, अभी तक शिक्षण संस्थानों के पूरी तरह से संचालन पर पाबंदी है. राज्य सरकार ने फिलहाल सिर्फ बड़े बच्चों के स्कूल खोलने का अनुमति ही दी है. इसका सीधा असर स्कूल यूनिफॉर्म से गुजारा कर रहे लोगों पर पड़ा है.

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कोरोना के कारण स्कूल बंद रहने से स्कूल ड्रेस के कारोबार पर भी बुरा असर पड़ा है. इस बार ऑनलाइन क्लास में ड्रेस को अनिवार्य करने से ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि कारोबारियों को भरपाई करने का मौका मिलेगा, पर ऐसा नहीं हुआ. स्कूलों के कड़े निर्देश के बाद बाद शर्ट थोड़ा-बहुत बिका. लेकिन आज 16 महीने में पैंट और जूतों को ग्राहक का इंतजार है.

देखें पूरी खबर

ऑनलाइन क्लास में मोबाइल या लैपटॉप पर सिर्फ शर्ट ही फ्रेम में आता है. ऐसे में पुराने या नए छात्रों के अभिभावकों का जोर सिर्फ शर्ट खरीदने पर ही रहा है. जिस घर में दो बच्चे हैं, वह पुरानी शर्ट या एक यूनिफॉर्म से दोनों बच्चों का काम चल जाता है.

स्कूल ड्रेस और यूनिफार्म बनाने वाले कारोबारियों का कहना है कि कोविड शुरू होने के बाद से जो स्कूल बंद हुए उसके बाद से स्कलू नहीं खुला, जिसकी वजह से उनकी आर्थिक स्थिति चरमरा गई है. कारोबारियों को अपने कर्मचारी कम करने पड़े हैं और साथ ही कारीगरों से दूसरे काम करवाए जा रहे हैं. कारोबारियों ने अपने कारोबार की रूप-रेखा बदली, पहले सिर्फ स्कूल ड्रेस बेचते थे, आज उसे गार्मेंट्स शॉप में तब्लील कर दिया.

स्कूल ड्रेस की दुकान को बनाया गार्मेंट्स शॉप

दुकानदारों ने अपना घर चलाने के लिए अपनी दुकानों का रंग-रूप भी बदल दिया. स्कूल ड्रेस और यूनिफॉर्म की जगह अब रंग-बिरंगे कपड़ों ने ले ली है. स्कूल ड्रेस कमाई का बड़ा जरिया है, इसलिए अगर छोटे बच्चों का भी स्कूल खुल जाता तो ऐसे कारोबारियों को थोड़ी मदद मिल जाती.

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दुकान में धूल फांकते स्कूल यूनिफॉर्म

दुकानदारों का कहना है कि हर राज्य में स्कूल खुलने लगे हैं, पर झारखंड में स्कूल खोलने की अनुमति सरकार नहीं दे रही है. जब भी करोना कम होता है तो अनुमति देकर स्कूल खुलवाना चाहिए. अगर केस बढ़ने लगे स्कूल बंद कर देना चाहिए ताकि स्कूल से जुड़े कई कई लोगों को राहत मिल जाए.

उद्योग विभाग का महाप्रबंधक ने कहा कि कोरोला काल के दौरान जो दुकानदार बैंक से लोन लिए हैं. वह अपना इएमआई नहीं भर पा रहे हैं तो वह लिखित सूचना दें ताकि उनकी 2 साल तक अवधि बढ़ाई जा सके. दूसरी बात पीएमजीपी योजना के तहत वैसे युवा रोजगार करना चाहते हैं, उनको एक लाख से लेकर 25 लाख तक अनुदान पर आर्थिक मदद की जा सकती है. शहरी क्षेत्रों के लिए 25% और रिजर्व के लिए 35% अनुदान पर ऋण मुहैया कराई जाएगी.

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विधायक लोबिन हेंब्रम को सौंपा मांग पत्र

कुछ कारोबारी बोरियो विधायक लोबिन से हेंब्रम से स्कूल खोलने को लेकर अपनी मांग सौंपी है. इसको लेकर विधायक ने कहा कि झारखंड में भी स्कूल खुलना चाहिए, क्योंकि अगल-बगल के कई राज्य 2 अगस्त से स्कूल खोल रहे हैं, ऐसी परिस्थिति में झारखंड में भी खोलने की अनुमति सरकार को देनी चाहिए. जब हर चीज धीरे-धीरे खोला जा रहा है तो स्कूलों को भी खोलना चाहिए, क्योंकि बच्चों का भविष्य खराब हो रहा है. ऑनलाइन क्लास से बच्चे नहीं पढ़ पा रहे हैं. उन्होंने भरोसा दिलाया है कि निश्चित रूप से मुख्यमंत्री से मिलकर वो इस दिशा में पहल करेंगे.

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स्कूल ड्रेस की दुकान

इसे भी पढ़ें- सिलाई मशीन से बदल रही महिलाओं की किस्मत, स्कूल ड्रेस सीकर बना रही अपना भविष्य

लघु उद्योग भी हुआ प्रभावित

साहिबगंज में स्कूल ड्रेस और यूनिफॉर्म का कारोबार करने वाली 10 प्रमुख एजेंसी काम करती है, कोई स्कूल ड्रेस बनाता है तो कोई जूता और स्कूल बैग बनाता है. इस कारोबार से जुड़े लगभग 400 लोग सीधे जुड़े हैं, बिक्री की कमी के चलते लगभग इनके 2500 सदस्यों के सामने रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न हो गई है. कारोबारियों के अनुसार 1 साल में अनुमान से 50 से 60 करोड़ तक का कारोबार हो जाता था, इसमें स्कूल ड्रेस के साथ-साथ अन्य सामग्री भी शामिल है. इसके लिए कोलकाता, मुंबई और सूरत से कपड़े मंगाए जाते थे.

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स्कूल बैग की बिक्री नहीं हो रही

कोरोना की वजह से लघु घरेलू उद्योग भी प्रभावित हुए हैं. कई महिलाएं घर में स्कूल का लोगो बनाने सहित अन्य कढ़ाई का काम करती थीं. उनका काम लगभग दो साल से ठप है. संक्रमण काल में घरेलू उद्योग से जुड़े कई महिलाएं और लोग बंद हो गए. शर्ट में बटन टांकने वालों का परिवार भी कोरोना काल में काफी प्रभावित हुआ है. कुल मिलाकर कहा जाए तो कोरोना काल में शिक्षा जगत बुरी तरह से प्रभावित हुआ है, ना सिर्फ पढ़ाई-लिखाई पर असर पड़ा है बल्कि इस व्यवसाय से जुड़े लोग आर्थिक तंगी का शिकार हुए हैं.

Last Updated : Aug 3, 2021, 5:12 PM IST
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