साहिबगंजः साल दर साल पहाड़िया आदिवासियों की कुछ परंपराएं अपनी चमक खो रहीं हैं. अरसे पहले दशहरा पर दोपहर बाद पहाड़ों पर बसने वाले आदिम जनजाति समुदाय के लोग अपने पारंपरिक वेशभूषा पहनकर शहर के पंडालों में पूजा करने उतरते थे. ये झुंड में पंडाल- पंडाल घूमकर नाचते गाते पहुंचते थे और प्रसाद ग्रहण कर आगे की तरफ बढ़ते जाते थे. लेकिन अब आदिवासियों का यह रूझान कम होता जा रहा है. शुक्रवार को कम ही आदिवासी पंडालों में देखे गए.
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साहिबगंज कॉलेज के प्रोफेसर रंजीत सिंह का कहना है कि पीटीजी समुदाय विशुद्ध रूप से हिन्दू धर्म से जुड़े पर्व मनाते आए हैं. सनातन धर्म को मानते हैं लेकिन हाल के कुछ वर्षों में इसमें बदलाव देखा जा रहा है. रंजीत सिंह इसके पीछे कई वजह बताते हैं. इसमें सोशल मीडिया के जरिये खास मकसद से सनातन धर्म से पीटीजी को अलग दिखाने की कवायदों का असर दिख रहा है.
ऐसे पहचान सकते थे पीटीजी को
प्रोफेसर रंजीत सिंह ने कहा कि विजयादशमी के दिन दोपहर बाद से इनके झुंड देखने को मिलते थे. पैरों में घुंघरू, हाथ और गले में चांदी के आभूषण, पारंपरिक वेशभूषा, पीठ पर तीर कमान और ढोलक तबला अन्य वाद्ययंत्र के साथ नाचते गाते इनको आसानी से पहचाना जा सकता था. इनका नृत्य देखने के लिए आम लोगों की भीड़ भी उमड़ती थी.
रंजीत सिंह का कहना है कि आज के युवक युवतियों में पश्चिमी सभ्यता के प्रति रूझान बढ़ा है. इससे उनकी वेशभूषा और खानपान में भी बदलाव आ रहा है. जींस, टीशर्ट और कटे बालों के साथ अब इन्हें देखा जा सकता है. हालांकि अब इनका शोषण भी बढ़ रहा है. मेलों मे अब ये खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं.
इस वजह से बदलाव
कई सामाजिक संगठनों का कहना है कि गरीबी, भुखमरी के चलते आदिवासियों का धर्म परिवर्तन कराने की कवायद चल रही है. कई लोग अच्छी शिक्षा और तमाम सुविधा देने का झांसा देकर धर्म परिवर्तन करा रहे हैं. इससे वे ईसाई धर्म अपना रहे हैं. इसकी वजह से हिंदू पर्व-त्योहारों में इनकी सहभागिता कम हो रही है.