साहिबगंज: गंगा के तट पर बसा है साहिबगंज, तटिय इलाका होने के कारण यहां के अधिकतर किसान मक्के की खेती करते हैं, इनके आमदनी का जरिया भी मक्का ही है, लेकिन इस बार स्थिती इसके उलट है. इस बार इतने बड़े पैमाने पर मकई की खेती होने के बाद भी किसान किस्मत का रोना रो रहे हैं. वजह है बांग्लादेश से आया आर्मी फॉल वार्म कीड़ा.
सरकार से लगाई मदद की गुहार
जिले में किसानों ने हजारों एकड़ में मकई के पौधे की खेती की थी, लेकिन एक बांग्लादेशी कीड़े ने मकई की पसल को नुकसान पहुंचा दिया. इसके कारण किसानों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है और वे सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं.
क्या है आर्मी फॉल वार्म
आर्मी फॉल वार्म एक तरह का कीड़ा है, जो पल भर में पौधे को चट कर जाता है और पौधे को जमीन पर सुला देता है. जिससे पौधा नष्ट हो जाता है.
कम दाम पर मकई बेचने को मजबूर किसान
किसान के लाख प्रयास के बावजूद भी यह यह कीड़ा खत्म नहीं हो रहा है. किसानों ने कहा कि यह खेत की जुताई से लेकर बुवाई तक हजारों रुपया लग जाता है. थोड़ा पौधा बड़ा हुआ तो सिंचाई के बाद इसे खाद की जरूरत पड़ती है और धूप में मकई पौधा में मिट्टी चढ़ाना पड़ता है ताकि पौधा मोटा होगा और मकई का दाना भी बड़ा होगा. किसानों ने कहा कि लॉकडाउन में बाजार बंद था. कोई खरीदार नही था. 900 रुपया क्विंटल बेचना पड़ा, जबकि पिछले साल 1900 से 2000 रुपया प्रति क्विंटल बिक्री हुई थी, लेकिन इस मकई में यह कीड़ा लगने से किसान का कमर टूट गयी है और उनके सामने आर्थिक तंगी आ गयी है.
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कीटनाशक दवा का छिड़काव करना जरूरी
किसान जिला कृषि पदाधिकारी ने कहा कि यह बांग्लादेशी कीड़ा है. इस कीड़े का नाम आर्मी फॉल वार्म है. यह कीड़ा काफी खतरनाक है अभी तक दियारा क्षेत्र में हजारों एकड़ जमीन में लगा मकई फसल को बर्बाद कर चुका है. उन्होंने बताया कि यह कीड़ा खत्म नहीं होता है, लेकिन इसको खत्म करना हो तो खेत को गहराई से जोतना होगा ताकि इस कीड़े से खेत में छोड़े गये अंडे को चिड़िया खा सके. उन्होंने कहा कि साथ ही किसान को कीटनाशक दवा का छिड़काव करना अत्यंत जरूरी है. जिला कृषि पदाधिकारी ने कहा कि किसान अपने बर्बाद फसल का फोटोग्राफ जिला प्रशासन को मुहैया कराए ताकि आपदा मत से मुआवजा दिया जा सके.