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Shardiya Navratri 2022: छठे दिन होती है मां कात्यायनी की पूजा, जानें पूजन विधि और मंत्र - ranchi news

आज नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा (Worship of Maa Katyayani) की जा रही है. मां कात्यायनी की पूजा करने से शक्ति, सफलता और प्रसिद्धि का वरदान प्राप्त होता है. आइए जानते हैं, मंत्र और पूजा करने की विधि.

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मां कात्यायनी की पूजा
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Published : Oct 1, 2022, 7:40 AM IST

रांचीः आज शारदीय नवरात्रि का छठा दिन (Sixth Day Of Navratri) है. इस दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है. हिंदू धर्म में नवरात्रि को बहुत ही शुभ और पवित्र दिन माना जाता है. नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है. मां कात्यायनी की पूजा विधि-विधान के अनुसार करने से शक्ति, सफलता और प्रसिद्धि का वरदान प्राप्त होता है.

इसे भी पढ़ें- हरमू स्थित पंच मंदिर पूजा पंडाल का किया उद्घाटन, लोगों को दी दुर्गा पूजा की शुभकामनाएं

नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा होती है. मां कात्यायनी की पूजा करने से भक्तों को अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष इन चारों फलों की प्राप्ति होती है. वह इस लोग में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है. इनकी पूजा से सभी रोग, भय आदि दूर हो जाते है. मां कात्यायनी की कृपा से शादी में आने वाली बाधाएं दूर हो जाती हैं और बृहस्पति शादी के योग भी बनते हैं. इनकी पूजा से वैवाहिक जीवन भी अच्छा रहता है.

मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत दिव्य और स्वर्ण के समान चमकीला होता है. माता सिंह पर विराजमान रहती हैं, उनकी चार भुजाएं हैं. मां अपनी एक हाथ अभय मुद्रा, दूसरा हाथ वर मुद्रा, तीसरे हाथ में तलवार और चौथे हाथ में कमल का फूल धारण करती हैं. साथ ही दूसरे हाथों में वरमुद्रा और अभयमुद्रा है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार मां दुर्गा का यह स्वरूप अत्यंत दयालु और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला है.

माता ने किया था महिषासुर का वध: कहा जाता है कि मां कात्यायनी ने महिषासुर नाम के असुर का वध किया था. जिस कारण मां कात्यायनी को दानवों, असुरों और पापियों का नाश करने वाली देवी कहा जाता है. माना जाता है कि महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति मां दुर्गा ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया और उनका कात्यायनी नाम पड़ा. मां कात्यायनी देवी का रूप बहुत आकर्षक है.

मां कात्यायनी की पूजन विधि: मां कत्यायनी को लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर स्थापित करना चाहिए. नवरात्रि के छठे दिन सबसे पहले कलश की पूजन करें. इसके बाद मां दुर्गा और उनके स्वरूप मां कत्यायनी की पूजा करें. पूजा विधि की बात करें तो पूजन के लिए पहले मां का ध्यान करते हुए एक फूल हाथ में लें. मां को फूल अर्पित करने के बाद मां को कुमकुम, अक्षत, फूल आदि चढ़ाने के बाद सोलह श्रृंगार की वस्तुएं चढ़ाएं. छठे दिन देवी कात्यायनी को पीले रंग से सजाना चाहिए. इसके बाद मां को शहद का भोग लगाएं. मां को भोग लगाने के बाद इसी शहद से बने प्रसाद को ग्रहण करना शुभ माना गया है. इसके बाद जल अर्पित करें और दीपक-धूप जलाकर मां के मंत्र का जाप करें. इसके साथ ही दुर्गा चालीसा का पाठ भी जरूर करें.

इस मंत्र से करें मां का पूजन

चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना ।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी ।।

मां कात्यायनी का आराधना मंत्र-

या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानव-घातिनी॥

मां कात्यायनी की कथा: पुराणों के अनुसार महर्षि कात्यायन ने मां आद्यशक्ति की घोर तपस्या की थी. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मां ने उन्हें उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया था. मां का जन्म महर्षि कात्यायन के आश्रम में हुआ था. कहते हैं जिस समय महिषासुर का अत्याचार बहुत बढ़ गया था, तब त्रिदेवों के तेज से मां की उतपत्ति हुई थी. मां ने दशमी तिथि के दिन महिषासुर नाम के राक्षस का वध किया था. इसके बाद शुंभ-निशुंभ ने भी स्वर्ग लोक पर आक्रमण करके इंद्र का सिंहासन छीन लिया था. उनका अत्याचार बढ़ने से मां ने उनका भी वध कर दिया था.

रांचीः आज शारदीय नवरात्रि का छठा दिन (Sixth Day Of Navratri) है. इस दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है. हिंदू धर्म में नवरात्रि को बहुत ही शुभ और पवित्र दिन माना जाता है. नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है. मां कात्यायनी की पूजा विधि-विधान के अनुसार करने से शक्ति, सफलता और प्रसिद्धि का वरदान प्राप्त होता है.

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नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा होती है. मां कात्यायनी की पूजा करने से भक्तों को अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष इन चारों फलों की प्राप्ति होती है. वह इस लोग में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है. इनकी पूजा से सभी रोग, भय आदि दूर हो जाते है. मां कात्यायनी की कृपा से शादी में आने वाली बाधाएं दूर हो जाती हैं और बृहस्पति शादी के योग भी बनते हैं. इनकी पूजा से वैवाहिक जीवन भी अच्छा रहता है.

मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत दिव्य और स्वर्ण के समान चमकीला होता है. माता सिंह पर विराजमान रहती हैं, उनकी चार भुजाएं हैं. मां अपनी एक हाथ अभय मुद्रा, दूसरा हाथ वर मुद्रा, तीसरे हाथ में तलवार और चौथे हाथ में कमल का फूल धारण करती हैं. साथ ही दूसरे हाथों में वरमुद्रा और अभयमुद्रा है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार मां दुर्गा का यह स्वरूप अत्यंत दयालु और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला है.

माता ने किया था महिषासुर का वध: कहा जाता है कि मां कात्यायनी ने महिषासुर नाम के असुर का वध किया था. जिस कारण मां कात्यायनी को दानवों, असुरों और पापियों का नाश करने वाली देवी कहा जाता है. माना जाता है कि महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति मां दुर्गा ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया और उनका कात्यायनी नाम पड़ा. मां कात्यायनी देवी का रूप बहुत आकर्षक है.

मां कात्यायनी की पूजन विधि: मां कत्यायनी को लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर स्थापित करना चाहिए. नवरात्रि के छठे दिन सबसे पहले कलश की पूजन करें. इसके बाद मां दुर्गा और उनके स्वरूप मां कत्यायनी की पूजा करें. पूजा विधि की बात करें तो पूजन के लिए पहले मां का ध्यान करते हुए एक फूल हाथ में लें. मां को फूल अर्पित करने के बाद मां को कुमकुम, अक्षत, फूल आदि चढ़ाने के बाद सोलह श्रृंगार की वस्तुएं चढ़ाएं. छठे दिन देवी कात्यायनी को पीले रंग से सजाना चाहिए. इसके बाद मां को शहद का भोग लगाएं. मां को भोग लगाने के बाद इसी शहद से बने प्रसाद को ग्रहण करना शुभ माना गया है. इसके बाद जल अर्पित करें और दीपक-धूप जलाकर मां के मंत्र का जाप करें. इसके साथ ही दुर्गा चालीसा का पाठ भी जरूर करें.

इस मंत्र से करें मां का पूजन

चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना ।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी ।।

मां कात्यायनी का आराधना मंत्र-

या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानव-घातिनी॥

मां कात्यायनी की कथा: पुराणों के अनुसार महर्षि कात्यायन ने मां आद्यशक्ति की घोर तपस्या की थी. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मां ने उन्हें उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया था. मां का जन्म महर्षि कात्यायन के आश्रम में हुआ था. कहते हैं जिस समय महिषासुर का अत्याचार बहुत बढ़ गया था, तब त्रिदेवों के तेज से मां की उतपत्ति हुई थी. मां ने दशमी तिथि के दिन महिषासुर नाम के राक्षस का वध किया था. इसके बाद शुंभ-निशुंभ ने भी स्वर्ग लोक पर आक्रमण करके इंद्र का सिंहासन छीन लिया था. उनका अत्याचार बढ़ने से मां ने उनका भी वध कर दिया था.

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