रांची: पूरी दुनिया में 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है. इसके लिए आदिवासी समाज ने तैयारियां भी शुरू कर दी है. इस मौके पर तमाम आदिवासी संगठनों की ओर से सरना धर्म कोड की मांग को लेकर जोरों से आवाज उठने वाली थी, लेकिन कोरोना वायरस के संक्रमण को लेकर बड़ा सामाजिक आयोजन नहीं हो पाएगा.
यूएनओ ने विश्व आदिवासी दिवस मनाने की घोषणा की थी
आदिवासियों को 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में पहचान मिली है. इसे लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ ने आदिवासियों के हितों के मद्देनजर एक कार्य दल गठित किया था, जिसकी बैठक 9 अगस्त 1982 को हुई थी. इसके बाद से यूएनओ ने अपने सदस्य देशों को हर साल 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाने का घोषणा की थी. उसके बाद से पूरे देश भर में 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में मनाया जाता है और आदिवासी संगठन अपने-अपने अधिकारों को लेकर आवाज बुलंद करते हैं.
आदिवासी धर्म कोड की मांग
झारखंड में भी इस बार विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर सरना धर्म कोड की मांग उठनी है. लंबे समय से झारखंड के आदिवासी इसे लेकर संघर्ष कर रहे हैं कि उन्हें एक अलग पहचान मिले, जिससे उस समुदाय का विकास हो. अंग्रेज के शासन काल से ही आदिवासियों के उद्धार और विकास के लिए जनगणना में अलग कॉलम चिन्हित किया गया था, लेकिन आजाद भारत में आदिवासियों के लिए कोई भी कॉलम नहीं रखा गया है, जिसके कारण लगातार आदिवासी धर्म कोड की मांग उठा रही है.
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आजाद भारत से पहले ही दिया गया था जनगणना में नाम
आदिवासियों को आजाद भारत से पहले ही कहीं ना कहीं आदिवासियों के नाम पर ही जनगणना में स्थान दिया गया है. पूरे भारत में रहने वाले आदिवासियों का बोध किया जाता है. इसलिए सभी आदिवासियों के लिए आदिवासी धर्म कोड की मांग बेहद जरूरी है. शिक्षाविद सह समाजसेवी करमा उरांव ने कहा कि उनकी मांग है कि जनगणना कॉलम में पूरे भारत में आदिवासी अनुसूचित जनजाति के लिए आदिवासी धर्म के नाम से धर्मकोड आवंटित किया जाए, जिससे उनकी धार्मिक पहचान बने, ताकि आदिवासियों के लिए अलग से बजट तैयार हो सके.
अंग्रेजी शासनकाल में आदिवासियों को इन नामों से किया गया था दर्ज
वहीं, आदिवासी संगठन से जुड़े प्रेम शाही मुंडा ने कहा कि लंबे समय से सरना धर्म कोड की मांग उठ रही है. केंद्र और राज्य सरकार को भी इसे लेकर ध्यान देने की जरूरत है. भारत में प्रथम जनगणना 1871 में शुरू हुई थी. तब से लगातार हर 10 साल में जनगणना होती है. अंग्रेजी शासनकाल में आदिवासियों को जनगणना में किस नाम से दर्ज किया गया था, इसका विवरण इस प्रकार है. साल 1871 में आदिवासी (abirigines), साल 1881 में आदिवासी (aboriginol), साल 1891 में प्रकृतिवाद (animist), साल 1901 में आदिवासी प्रकृतिवाद (tribal animist), साल 1911 में जनजाति प्रकृतिवाद अर्थात आदिवासी धरम, साल 1921 में पहाड़ी और वन्य जनजाति (hills &forest tribals), साल 1931 में आदिम जनजाति (primitive tribals) और साल 1941 में आदिवसी (tribals) के नाम से जाना गया.
भारत में 650 से अधिक है जनजातीय समुदाय
आदिवासियों के सरना धर्म कोड को लेकर उठ रही मांग पर रामदयाल मुंडा शोध संस्थान के उप निदेशक चिंटू दोराईबरु ने कहा कि भारतवर्ष में 650 से अधिक जनजातीय समुदाय है और पूरे भारतवर्ष में 7 से 8% इनकी आबादी है. इस लिहाज से इन्हें चिन्हित कर एक अलग मंत्रालय बनाया जा सकता है, ताकि इनके विकास का एक माध्यम बन सके. उन्होंने कहा कि रामदयाल मुंडा शोध संस्थान की ओर से इसे लेकर लगातार शोध भी की जा रही है आदिवासियों से जुड़े जानकारों से बात भी की जा रही है कि यह कैसे आदिवासियों के लिए हितकर होगा.