रांचीः थर्मल पावर प्लांट में यूज होने वाले कोयले की जगह बायोमास के जरिए बिजली उत्पादन पर जोर दिया जा रहा है. भविष्य में कोयले की होने वाली कमी और फसलों के अवशेष को जलाने से होने वाले प्रदुषण से पर्यावरण को बचाने को लेकर भारत सरकार ने मिशन समर्थ (Workshop on Mission Samarth ) प्रोजेक्ट लांच किया है.
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झारखंड की जमीन पर उतारने की तैयारी शुरू कर दी गई है. भारत सरकार के विद्युत मंत्रालय ने समर्थ मिशन के तहत इस महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट को पूरा करेगा. इसके तहत शुक्रवार को थर्मल पावर प्लांट में बायोमास के उपयोग के लिए पेलेट उत्पादन की जानकारी उद्यमियों को दी गई. एक दिवसीय कार्यशाला का उदघाटन तेनुघाट विद्युत निगम लिमिटेड के प्रबंध निदेशक अनिल कुमार शर्मा ने किया. इस मौके पर उद्यमियों को संबोधित करते हुए अनिल कुमार शर्मा ने कहा की आने वाले दिनो में फसल अवशेष किसानों के लिए ना सिर्फ धन उपार्जन का साधन बनेगी, बल्कि यह थर्मल प्लांट में कार्बन फुट प्रिंट को कम करने मे सहायक भी होगी. उन्होंने कहा की टीवीएनएल में भी बायोमास पेलेट के उपयोग पर कार्य चल रहा है और जल्दी ही इसका उपयोग शुरू किया जाएगा. कार्यक्रम के दौरान बिजली उत्पादन मे पेलेट की भूमिका, उत्पादन प्रक्रिया और थर्मल प्लांट मे कोयले के साथ बायोमास पेलेट के उपयोग पर चर्चा की गई.
बायोमास के इस्तेमाल से थर्मल पावर प्लांट को कोयले पर आश्रित होने से बचाया जा सकता है. इसके माध्यम से ग्रीन इनर्जी पैदा होगी. इसी को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने सभी थर्मल पावर प्लांट में 5 से 10 प्रतिशत तक बायोमास पेलेट का उपयोग अनिवार्य कर दिया है. समर्थ मिशन के सीनियर मैनेजर टेक्निकल प्रखर मालवीय ने बताया कि झारखंड में प्रतिवर्ष 5.3 मिलियन टन फसल अवशेष प्राप्त होता है, जिससे किसान पशु चारा, खाद एवं अन्य कृषि उपयोग के बाद 1.2 मिलियन मिट्रिक टन फसल अवशेष यूंही रह जाता है. यदि उसका उपयोग बायोमास के लिए करें तो कोयले की बचत होगी. उन्होंने कहा कि देश में 750 मिलियन टन फसल अवशेष प्रति वर्ष होते हैं, जिसमें सभी प्रकार के उपयोग कर लेने के बाद 230 मिलियन टन यूंही बच जाते हैं. अगर 5% बायोमास कोल की जगह उपयोग कर लें तो अनुमान के मुताबिक 35 मिलियन मिट्रिक टन कार्बन डाय ऑक्साइड उत्सर्जन में कमी की जा सकती है.