रांची: वैसे मां से प्यार जाहिर करने के लिए किसी खास वक्त की जरूरत नहीं होती है. लेकिन फिर भी हर साल एक दिन मां के लिए तय किया गया है, जिसे मदर्स डे कहा जाता है. त्याग और ममता का रूप कही जाने वाली मां के लिए मई के दूसरे रविवार को ये दिवस मनाया जाता है. इस अवसर पर झारखंड में भी विभिन्न संस्थाओं द्वारा रविवार को मदर्स डे मनाया गया. इस मौके पर वैसी महिलाओं को सम्मानित किया गया जो दिन रात अस्पतालों में कोविड मरीजों की सेवा में जुटी हैं. ऐसी महिलाओं में महिला डॉक्टर, नर्स, सहिया और वैसी आंगनबाड़ी सेविकाएं शामिल हैं जो बिना किसी खौफ के, अपने परिवारों से दूर रहकर जान जोखिम में डालकर मरीजों की सेवा कर रहीं हैं.
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मदर्स डे पर क्या बोले सिविल सर्जन?
रांची के सिविल सर्जन डॉ. विनोद प्रसाद के मुताबिक स्वास्थ्यकर्मी वैश्विक महामारी की इस घड़ी में लोगों की हिम्मत बनी हुई हैं. उन्होंने कहा ऐसे समय में जब लोग हॉस्पिटल पहुंचते ही संक्रमित हो जा रहे हैं, उसके बावजूद भी अस्पताल में चिकित्सक, नर्स और अन्य स्वास्थ्यकर्मी हिम्मत दिखाते हुए मरीजों की सेवा में जुटें हैं. सिविल सर्जन ने बताया की कई बार ऐसा होता है कि परिजन भी संक्रमित मरीज का साथ छोड़ देते हैं, तो उस समय नर्स और स्वास्थ्यकर्मी ही आगे बढ़कर उनकी जान बचाते हैं. उन्होंने कहा अस्पताल की नर्सें वास्तव में एक मां की तरह ही मरीजों की सेवा में जुटी हुई हैं, जो काबिले तारीफ है. ऐसे में इन महिलाओं के सम्मान से ही मदर्स डे का मकसद पूरा होगा.
क्या है मदर्स डे का इतिहास?
मदर्स डे को लेकर कई मान्यताएं हैं. कुछ का मानना है कि मदर्स डे के इस खास दिन की शुरुआत अमेरिका से हुई थी. वर्जिनिया में एना जार्विस (Anna Maria Jarvis) नाम की महिला ने मदर्स डे की शुरुआत की. कहा जाता है कि एना अपनी मां से बहुत प्यार करती थी और उनसे बहुत प्रेरित थी. मां के निधन के बाद प्यार जताने के लिए उन्होंने इस दिन की शुरुआत की. फिर धीरे-धीरे कई देशों में मदर्स डे मनाया जाने लगा. ईसाई समुदाय के लोग इस दिन को वर्जिन मेरी के दिन के रूप में भी मनाते हैं. बता दें, इसके अलावा यूरोप और ब्रिटेन में भी मां को सम्मानित करने के लिए तमाम प्रथाएं प्रचलित हैं, जिसके तहत किसी खास रविवार को मदरिंग संडे के रूप में मनाया जाता है.