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राज्य सरकार की पहल पर महिलाओं को सिखाए जा रहे लाह खेती के गुर, महिलाओं को हो रही अच्छी आमदनी - लाह की खेती

झारखंड में परंपरागत तरीके से लाह की खेती होती चली आ रही है. राज्य सरकार की पहल पर ग्रामीण महिलाओं को वैज्ञानिक तरीके से लाह की खेती के गुर सिखाए जा रहे हैं. पश्चिमी सिंहभूम के गोईलकेरा प्रखंड के रूमकूट गांव की रंजीता देवी और तमाम महिलाएं लाह की खेती से अच्छी आमदनी प्राप्त कर रही हैं.

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महिलाओं को सिखाए जा रहे लाह खेती के गुर
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Published : Feb 23, 2021, 9:12 PM IST

रांची: झारखंड में परंपरागत तरीके से लाह की खेती होती चली आ रही है. राज्य सरकार की पहल पर ग्रामीण महिलाओं को वैज्ञानिक तरीके से लाह की खेती के गुर सिखाए जा रहे हैं. राज्य की 73 हजार से ज्यादा ग्रामीण परिवारों को लाह की वैज्ञानिक खेती से जोड़ा गया है, जिनमें अधिकतर अति गरीब और सुदूरवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीण परिवार हैं. वर्ष 2020 में करीब दो हजार मीट्रिक टन लाह का उत्पादन ग्रामीण महिलाओं की ओर से किया गया है. यही वजह है कि मुख्यमंत्री लाह की खेती को कृषि का दर्जा देने में जुटे हैं, जिससे राज्य की ग्रामीण महिलाओं को वनोपज आधारित आजीविका से जोड़कर आमदनी बढ़ोतरी का कार्य हो सके.

इसे भी पढ़ें- धनबाद में 23 फरवरी को किसान संगोष्ठी का आयोजन, बादल पत्रलेख करेंगे उद्घाटन




किसानों को स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनाना सरकार का संकल्प
मुख्यमंत्री का मानना है कि भारत आत्मनिर्भर देश तभी बनेगा, जब ग्रामीण क्षेत्र का सशक्तिकरण होगा. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भरोसा दिलाया है कि उनकी सरकार लाह की खेती को कृषि का दर्जा देगी. इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य भी तय करेगी. किसानों को स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनाना सरकार का संकल्प है. इस बाबत कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिसके जरिए किसानों को अनुदान, ऋण और अन्य जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही है.

वनोपज-उद्यमी बन रही हैं महिलाएं
पश्चिमी सिंहभूम के गोईलकेरा प्रखंड के रूमकूट गांव की रंजीता देवी उन महिलाओं में से एक हैं जो लाह की खेती से सालाना तीन लाख रुपये तक की आमदनी प्राप्त कर रही हैं. रंजीता कहती हैं कि दूरस्थ क्षेत्र होने के कारण उनकी आजीविका मुख्यतः जंगल और वनोपज पर निर्भर है, उनके परिवार में पहले भी लाह की खेती की जाती थी, लेकिन सरकार से प्रोत्साहन, वैज्ञानिक विधि से लाह की खेती करने, सही देख-रेख के साथ-साथ सही मात्रा में कीटनाशक के छिड़काव से उपज बढ़ाने के बारे में जानकारी मिली.

जेएसएलपीएस के माध्यम से लाह की आधुनिक खेती से संबंधित प्रशिक्षण प्राप्त किया. सरकार की ओर से लाह का बीज भी उपलब्ध कराया गया. आज लाह की खेती में रंजीता देवी को लागत के रूप में नाममात्र खर्च करना पड़ता है, लेकिन उससे कई गुना ज्यादा उपज और मुनाफा प्राप्त हो रहा है. रंजीता साल भर में दो बार बिहन लाह की खेती करती हैं और लाह की खेती के जरिए उनकी आय साल दर साल बढ़ रही है. पिछले वर्ष रंजीता ने 300 किलो बिहन लाह बीज के रूप में लगाया, जिससे उन्हें 15 क्विंटल लाह की उपज प्राप्त हुई और उससे उन्हें तीन लाख रुपये की आमदनी हुई.

इसे भी पढ़ें- दुमकाः दो दिवसीय किसान मेला, कृषि मंत्री बादल पत्रलेख ने किया परिसंपत्ति का वितरण

प्रशिक्षण के साथ बाजार की उपलब्धता
महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना के अंतर्गत महिला किसानों को लाह उत्पादन, तकनीकी जानकारी, प्रशिक्षण और बिक्री के लिए बाजार उपलब्ध कराया जा रहा है. महिला किसान उत्पादक समूहों के माध्यम से लाह की सामूहिक खेती और बिक्री कर रही हैं. महिलाओं को आवासीय प्रशिक्षण के जरिए लाह की उन्नत खेती के लिए प्रेरित और लाह की खेती कर रहे किसानों के अनुभवों से भी उन्हें अवगत कराया जाता है. किसानों को उचित बाजार उपलब्ध कराने के लिए राज्य भर में 460 संग्रहण केंद्र और 25 ग्रामीण सेवा केंद्र का परिचालन किया जा रहा है. ग्रामीण महिलाओं की ओर से संचालित इन संस्थाओं के माध्यम से लाह की खेती कर रहे किसान अपनी उपज को एक जगह इकठ्ठा करते है और फिर ग्रामीण सेवा केंद्र के माध्यम से एकत्रित उत्पाद की बिक्री की जाती है. इस तरह रंजीता जैसी हजारों ग्रामीण महिलाएं आज लाह की वैज्ञानिक खेती से जुड़कर अच्छी कमाई कर रही हैं.

रांची: झारखंड में परंपरागत तरीके से लाह की खेती होती चली आ रही है. राज्य सरकार की पहल पर ग्रामीण महिलाओं को वैज्ञानिक तरीके से लाह की खेती के गुर सिखाए जा रहे हैं. राज्य की 73 हजार से ज्यादा ग्रामीण परिवारों को लाह की वैज्ञानिक खेती से जोड़ा गया है, जिनमें अधिकतर अति गरीब और सुदूरवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीण परिवार हैं. वर्ष 2020 में करीब दो हजार मीट्रिक टन लाह का उत्पादन ग्रामीण महिलाओं की ओर से किया गया है. यही वजह है कि मुख्यमंत्री लाह की खेती को कृषि का दर्जा देने में जुटे हैं, जिससे राज्य की ग्रामीण महिलाओं को वनोपज आधारित आजीविका से जोड़कर आमदनी बढ़ोतरी का कार्य हो सके.

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किसानों को स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनाना सरकार का संकल्प
मुख्यमंत्री का मानना है कि भारत आत्मनिर्भर देश तभी बनेगा, जब ग्रामीण क्षेत्र का सशक्तिकरण होगा. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भरोसा दिलाया है कि उनकी सरकार लाह की खेती को कृषि का दर्जा देगी. इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य भी तय करेगी. किसानों को स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनाना सरकार का संकल्प है. इस बाबत कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिसके जरिए किसानों को अनुदान, ऋण और अन्य जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही है.

वनोपज-उद्यमी बन रही हैं महिलाएं
पश्चिमी सिंहभूम के गोईलकेरा प्रखंड के रूमकूट गांव की रंजीता देवी उन महिलाओं में से एक हैं जो लाह की खेती से सालाना तीन लाख रुपये तक की आमदनी प्राप्त कर रही हैं. रंजीता कहती हैं कि दूरस्थ क्षेत्र होने के कारण उनकी आजीविका मुख्यतः जंगल और वनोपज पर निर्भर है, उनके परिवार में पहले भी लाह की खेती की जाती थी, लेकिन सरकार से प्रोत्साहन, वैज्ञानिक विधि से लाह की खेती करने, सही देख-रेख के साथ-साथ सही मात्रा में कीटनाशक के छिड़काव से उपज बढ़ाने के बारे में जानकारी मिली.

जेएसएलपीएस के माध्यम से लाह की आधुनिक खेती से संबंधित प्रशिक्षण प्राप्त किया. सरकार की ओर से लाह का बीज भी उपलब्ध कराया गया. आज लाह की खेती में रंजीता देवी को लागत के रूप में नाममात्र खर्च करना पड़ता है, लेकिन उससे कई गुना ज्यादा उपज और मुनाफा प्राप्त हो रहा है. रंजीता साल भर में दो बार बिहन लाह की खेती करती हैं और लाह की खेती के जरिए उनकी आय साल दर साल बढ़ रही है. पिछले वर्ष रंजीता ने 300 किलो बिहन लाह बीज के रूप में लगाया, जिससे उन्हें 15 क्विंटल लाह की उपज प्राप्त हुई और उससे उन्हें तीन लाख रुपये की आमदनी हुई.

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प्रशिक्षण के साथ बाजार की उपलब्धता
महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना के अंतर्गत महिला किसानों को लाह उत्पादन, तकनीकी जानकारी, प्रशिक्षण और बिक्री के लिए बाजार उपलब्ध कराया जा रहा है. महिला किसान उत्पादक समूहों के माध्यम से लाह की सामूहिक खेती और बिक्री कर रही हैं. महिलाओं को आवासीय प्रशिक्षण के जरिए लाह की उन्नत खेती के लिए प्रेरित और लाह की खेती कर रहे किसानों के अनुभवों से भी उन्हें अवगत कराया जाता है. किसानों को उचित बाजार उपलब्ध कराने के लिए राज्य भर में 460 संग्रहण केंद्र और 25 ग्रामीण सेवा केंद्र का परिचालन किया जा रहा है. ग्रामीण महिलाओं की ओर से संचालित इन संस्थाओं के माध्यम से लाह की खेती कर रहे किसान अपनी उपज को एक जगह इकठ्ठा करते है और फिर ग्रामीण सेवा केंद्र के माध्यम से एकत्रित उत्पाद की बिक्री की जाती है. इस तरह रंजीता जैसी हजारों ग्रामीण महिलाएं आज लाह की वैज्ञानिक खेती से जुड़कर अच्छी कमाई कर रही हैं.

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