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झारखंड सरकार के पास टीबी मरीजों के लिए नहीं है बजट! आखिर क्यों रोक दी गई मर्म बॉक्स से दी जाने वाली दवा? जानें वजह - MERM boxes of TB patients Jharkhand

राज्य सरकार के पास टीबी मरीजों के लिए बजट नहीं है. टीबी मरीजों के लिए मर्म बॉक्स से दवा देने की व्यवस्था शुरू की गई थी. लेकिन 500 मरीजों के इलाज के बाद ही इस व्यवस्था को बंद कर दिया गया. MERM boxes for TB patients Jharkhand

MERM boxes for TB patients Jharkhand
MERM boxes for TB patients Jharkhand
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Oct 9, 2023, 8:19 PM IST

क्यों रोक दी गई मर्म बॉक्स से दी जाने वाली दवा

रांची: स्वास्थ्य विभाग की ओर से झारखंड में टीबी मरीजों की पहचान करने का सिलसिला जारी है. वर्तमान में झारखंड में करीब 38 हजार मरीज टीबी से पीड़ित हैं. राज्य यक्ष्मा रोग अधिकारी डॉ. राकेश दयाल का कहना है कि प्रदेश में प्रति लाख पर करीब 1500 मरीज टीबी से पीड़ित हैं. टीबी मरीजों की पहचान के लिए सहिया बहनों को स्वास्थ्य विभाग की ओर से विशेष प्रशिक्षण भी दिया गया है. सहिया बहनों को घर-घर जाकर लोगों की जांच करने और उन्हें तुरंत नजदीकी डायग्नोस्टिक सेंटर में भर्ती करने और मरीज को प्राथमिक उपचार देने का निर्देश दिया गया है.

यह भी पढ़ें: Jharkhand News: टीबी फ्री वर्कप्लेस पॉलिसी बनाने वाला देश का पहला राज्य बना झारखंड, 2024 तक राज्य को टीबी मुक्त बनाने का संकल्प

राज्य यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ. राकेश दयाल ने बताया कि झारखंड में करीब 41 ऐसे सेंटर हैं, जहां सीबीएनएएटी मशीनें लगी हैं. इससे यह पता चल जाता है कि टीबी के मरीजों को दी जा रही दवाएं कितनी कारगर हैं, इसके अलावा ऐसे कई केंद्र हैं, जहां टीबी से पीड़ित मरीजों को उचित इलाज दिया जाता है.

ठंडे बस्ते में चली गई मर्म बॉक्स की व्यवस्था: पिछले साल टीबी मरीजों के लिए एक विशेष किट उपलब्ध कराई गई थी, जिसे एमईआरएम बॉक्स के नाम से जाना जाता था. इस किट के जरिए स्वास्थ्य विभाग के लोग यह पता लगाते थे कि कौन सा मरीज कौन सी दवा कितनी बार ले रहा है. यह जानकारी इसमें लगी चिप से मिलती थी. यह व्यवस्था निजी एनजीओ के सहयोग से शुरू की गयी थी. लेकिन धीरे-धीरे यह व्यवस्था भी ठंडे बस्ते में चली गई.

मर्म बॉक्स के बारे में जब हमने स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी से बात करने की कोशिश की तो कोई भी कुछ भी कहने से बचता नजर आया. विभाग के लोगों ने ऑफ कैमरा बताया कि इस सिस्टम का दूसरा विकल्प ढूंढने की कोशिश की जा रही है, क्योंकि मर्म बॉक्स के जरिए मॉनिटरिंग करने पर स्वास्थ्य विभाग को ज्यादा खर्च करना पड़ रहा था. इसलिए दूसरी व्यवस्था की तलाश की जा रही है.

मर्म बॉक्स से सिर्फ 500 मरीजों का हो सका इलाज: सरकार को मर्म बॉक्स उपलब्ध कराने वाले एनजीओ के कर्मचारी सतीश कुमार ने बताया कि शुरुआती चरण में सरकार के माध्यम से टीबी मरीजों को 500 मर्म बॉक्स दिये गये थे. लेकिन बाद में राज्य सरकार ने यह व्यवस्था बंद कर दी. इसके स्थान पर वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर डीओटी नामक किट लाने का प्रयास किया जा रहा है.

क्यों रोक दी गई मर्म बॉक्स से दी जाने वाली दवा

रांची: स्वास्थ्य विभाग की ओर से झारखंड में टीबी मरीजों की पहचान करने का सिलसिला जारी है. वर्तमान में झारखंड में करीब 38 हजार मरीज टीबी से पीड़ित हैं. राज्य यक्ष्मा रोग अधिकारी डॉ. राकेश दयाल का कहना है कि प्रदेश में प्रति लाख पर करीब 1500 मरीज टीबी से पीड़ित हैं. टीबी मरीजों की पहचान के लिए सहिया बहनों को स्वास्थ्य विभाग की ओर से विशेष प्रशिक्षण भी दिया गया है. सहिया बहनों को घर-घर जाकर लोगों की जांच करने और उन्हें तुरंत नजदीकी डायग्नोस्टिक सेंटर में भर्ती करने और मरीज को प्राथमिक उपचार देने का निर्देश दिया गया है.

यह भी पढ़ें: Jharkhand News: टीबी फ्री वर्कप्लेस पॉलिसी बनाने वाला देश का पहला राज्य बना झारखंड, 2024 तक राज्य को टीबी मुक्त बनाने का संकल्प

राज्य यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ. राकेश दयाल ने बताया कि झारखंड में करीब 41 ऐसे सेंटर हैं, जहां सीबीएनएएटी मशीनें लगी हैं. इससे यह पता चल जाता है कि टीबी के मरीजों को दी जा रही दवाएं कितनी कारगर हैं, इसके अलावा ऐसे कई केंद्र हैं, जहां टीबी से पीड़ित मरीजों को उचित इलाज दिया जाता है.

ठंडे बस्ते में चली गई मर्म बॉक्स की व्यवस्था: पिछले साल टीबी मरीजों के लिए एक विशेष किट उपलब्ध कराई गई थी, जिसे एमईआरएम बॉक्स के नाम से जाना जाता था. इस किट के जरिए स्वास्थ्य विभाग के लोग यह पता लगाते थे कि कौन सा मरीज कौन सी दवा कितनी बार ले रहा है. यह जानकारी इसमें लगी चिप से मिलती थी. यह व्यवस्था निजी एनजीओ के सहयोग से शुरू की गयी थी. लेकिन धीरे-धीरे यह व्यवस्था भी ठंडे बस्ते में चली गई.

मर्म बॉक्स के बारे में जब हमने स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी से बात करने की कोशिश की तो कोई भी कुछ भी कहने से बचता नजर आया. विभाग के लोगों ने ऑफ कैमरा बताया कि इस सिस्टम का दूसरा विकल्प ढूंढने की कोशिश की जा रही है, क्योंकि मर्म बॉक्स के जरिए मॉनिटरिंग करने पर स्वास्थ्य विभाग को ज्यादा खर्च करना पड़ रहा था. इसलिए दूसरी व्यवस्था की तलाश की जा रही है.

मर्म बॉक्स से सिर्फ 500 मरीजों का हो सका इलाज: सरकार को मर्म बॉक्स उपलब्ध कराने वाले एनजीओ के कर्मचारी सतीश कुमार ने बताया कि शुरुआती चरण में सरकार के माध्यम से टीबी मरीजों को 500 मर्म बॉक्स दिये गये थे. लेकिन बाद में राज्य सरकार ने यह व्यवस्था बंद कर दी. इसके स्थान पर वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर डीओटी नामक किट लाने का प्रयास किया जा रहा है.

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