ETV Bharat / state

विकास के नाम पर झारखंड में 21 वर्षों से जारी है एमओयू का खेल, समझौते के बाद बड़ी कंपनियां क्यों हो जाती हैं उदासीन, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

झारखंड को अस्तित्व में आए 21 साल हो चुके हैं. राज्य में तेजी से विकास को लेकर सरकार ने पिछले 21 सालों में कई बड़ी कंपनियों से समझौता किया. लेकिन, एमओयू साइन होने के बाद ज्यादातर कंपनियां निवेश को लेकर उदासीन रहती हैं. समझौते के बाद कई कंपनियों ने निवेश से पहले मुंह मोड़ लिया. इसके पीछे जमीन विवाद और कानून व्यवस्था प्रमुख कारण हैं.

mou between industrialists and jharkhand government
झारखंड में क्यों निवेश नहीं करते उद्योगपति
author img

By

Published : Mar 8, 2021, 4:12 PM IST

Updated : Mar 8, 2021, 10:34 PM IST

रांची: बिहार से अलग होकर 15 नवंबर 2000 को स्वतंत्र राज्य के रूप में अस्तित्व में आया झारखंड आज भी विकास की बाट जोह रहा है. राज्य गठन के शुरुआती दिनों में सड़क, बिजली, पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाओं पर विशेष जोर दिया गया. इसके बाद में राज्य में तेजी से विकास करने के लिए सरकार ने निवेशकों को आकर्षित किया. यहां के प्राकृतिक संसाधन के चलते इंवेस्टर्स आकर्षित भी हुए. सरकार और इंवेस्टर्स के बीच कई एमओयू हुए. ऐसा लगा कि राज्य में रोजगार के अवसर के साथ-साथ औद्योगीकरण में भी तेजी आएगी, लेकिन यह संभव नहीं हो सका.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

21 वर्ष बाद भी पलायन को मजबूर हैं झारखंड के लोग

पिछले 21 सालों में जितनी भी सरकारें बनी सभी ने जनता को विकास का सपना दिखाया. मधु कोड़ा से लेकर अर्जुन मुंडा और रघुवर दास तक के शासनकाल में यही स्थिति रही. हेमंत सरकार भी झारखंड में उद्योग लगाने के लिए उद्योगपतियों को आमंत्रित कर रही है लेकिन अब तक इसमें सफल नहीं हुई है. लौह अयस्क, कोयला अभ्रक और यूरेनियम जैसे खनिज पदार्थो की प्रचुरता होने के बावजूद झारखंड औद्योगिक रूप से पिछड़ा है. 21 वर्ष बाद भी गरीबी और बेरोजगारी जैसी समस्या के चलते लोग पलायन को मजबूर हैं.

यह भी पढ़ें: स्टेकहोल्डर्स कॉन्फ्रेंस होगी फायदेमंद, निवेश के लिए इच्छुक कई उद्योगपति आएंगे झारखंड: CM हेमंत सोरेन

रघुवर सरकार में हुए सर्वाधिक समझौते

रिकॉर्ड के मुताबिक सबसे अधिक एमओयू रघुवर सरकार के कार्यकाल में हुए. 2017 में आयोजित मोमेंटम झारखंड के माध्यम से देश-विदेश की कंपनियों के साथ सरकार ने एमओयू करने में रिकॉर्ड बना दिया. पर्यटन, खाद्य प्रसंस्करण, लघु एवं कुटीर उद्योग, कृषि एवं पशुपालन, कपड़ा उद्योग के क्षेत्रों में विकास का दावा किया गया था. मोंमेटम झारखंड से राज्य में तीन लाख करोड़ रुपए के निवेश और 1.60 लाख लोगों को रोजगार मिलने का भी दावा किया गया.

210 में से 162 कंपनियों ने एमओयू किया था जिसमें 113 भारतीय कंपनियां बगैर निवेश किए यहां से चली गई. कई विदेशी कंपनियां आई ही नहीं. एमओयू के बाद कई कंपनियों से संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन हो नहीं सका. 2017 में सरकार ने मोमेंटम झारखंड के आयोजन पर करोड़ों रुपए खर्च किए. सिंगापुर, बेंगलुरु, हैदराबाद, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, अमेरिका और चीन में कार्यक्रम का आयोजन किया गया था.

जमीन विवाद और कानून व्यवस्था के चलते होती है परेशानी

जानकारों का कहना है कि झारखंड में औद्योगिक घरानों के उद्योग लगाने से कतराने के पीछे मुख्य वजह है जमीन विवाद. सिंगल विंडो सिस्टम से ठीक से काम नहीं होना और कानून व्यवस्था भी इसके पीछे बड़ा कारण है. एमओयू के बाद उद्योगपतियों को जिस तरह की परेशानी झेलनी पड़ती है, उससे परेशान होकर वे उद्योग नहीं लगाते. विदेशी कंपनियों में कूल लाइट फ्रांस, आईटीई एजुकेशन सिंगापुर, स्मार्ट सिटी वन दक्षिण कोरिया कोलाज फ्रांस, एनजीपी हरक्यूलिस लिमिटेड, लाइट साउंड इंक कनाडा, कोलो ग्लोबल एबी स्वीडन ने झारखंड सरकार के साथ एमओयू किया था. भारतीय कंपनियों में इन पेरिया स्ट्रक्चर लिमिटेड, श्रीराम मल्टीकॉम प्राइवेट लिमिटेड, रामकृष्ण फोर्जिंग लिमिटेड, प्रसाद एक्सप्लोसिव केमिकल, त्रिमूला इंडस्ट्रीज लिमिटेड सहित डेढ़ दर्जन से अधिक कंपनियों ने एमओयू के बाद झारखंड की ओर पलट कर नहीं देखा.

यह भी पढ़ें: सीएम हेमंत सोरेन ने दिल्ली में उद्योगपतियों को दिया न्योता, कहा- राज्य में करें निवेश

जमीन नहीं मिलने के चलते कई कंपनियों ने नहीं किया निवेश

पहले भी कई ऐसे मौके आए जब बड़ी कंपनियों ने झारखंड में निवेश करने से मुंह मोड़ा है. 26 मार्च 2004 को झारखंड सरकार का आरजी स्टील लिमिटेड के साथ एमओयू हुआ था. जमीन और खदान नहीं मिलने के कारण कंपनी ने निवेश नहीं करने का निर्णय लिया. गोयल स्पोंज प्राइवेट लिमिटेड के साथ 12 अप्रैल 2005 को एमओयू हुआ था. बाद में कंपनी ने रुचि नहीं दिखाई. कल्याणी स्टील लिमिटेड के साथ 23 जुलाई 2005 को एमओयू हुआ था. लेकिन, जमीन और माइंस नहीं मिलने के कारण झारखंड को निवेश से हाथ धोना पड़ा.

कोल स्टील एंड पावर लिमिटेड के साथ सरकार का 29 दिसंबर 2006 को समझौता हुआ था. माइंस और जमीन न मिलने के कारण राज्य को 3,300 करोड़ के निवेश से हाथ धोना पड़ा. सार्थक इंडस्ट्रीज के साथ 26 फरवरी 2007 को सरकार ने समझौता किया. जमीन और माइंस नहीं मिलने के कारण कंपनी ने रुचि नहीं दिखाई. मां चंडी दुर्गा इस्पात के साथ 9 फरवरी 2007 को समझौता हुआ था. लेकिन, बाद में कंपनी ने निवेश नहीं किया. इसी तरह जगदंबा इस्पात सर्विसेज के साथ 9 फरवरी 2007 को समझौते हुआ. कंपनी ने प्लांट लगाने में रुचि नहीं दिखाई.

एसीबी कर रही मोमेंटम झारखंड में हुए भ्रष्टाचार की जांच

राज्य में निवेश को बढ़ाने के नाम पर केवल कागजी खानापूर्ति होती रही है. इसमें भ्रष्टाचार की शिकायतें भी सामने आईं हैं. मोमेंटम झारखंड में हुए गड़बड़ी की जांच की फाइल हाई कोर्ट के आदेश पर एसीबी तक पहुंच गई है. वहीं, महालेखाकार के यहां इसका स्पेशल ऑडिट हो रहा है. इधर, उद्योगपतियों के झारखंड के प्रति बेरुखी पर सत्ता पक्ष और विपक्ष एक दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं. वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव ने बीजेपी पर पलटवार करते हुए कहा है कि मोंमेटम झारखंड की तरह हाथी नहीं उड़ेगा. इस बार हाथी जमीन पर चलेगा.

रांची: बिहार से अलग होकर 15 नवंबर 2000 को स्वतंत्र राज्य के रूप में अस्तित्व में आया झारखंड आज भी विकास की बाट जोह रहा है. राज्य गठन के शुरुआती दिनों में सड़क, बिजली, पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाओं पर विशेष जोर दिया गया. इसके बाद में राज्य में तेजी से विकास करने के लिए सरकार ने निवेशकों को आकर्षित किया. यहां के प्राकृतिक संसाधन के चलते इंवेस्टर्स आकर्षित भी हुए. सरकार और इंवेस्टर्स के बीच कई एमओयू हुए. ऐसा लगा कि राज्य में रोजगार के अवसर के साथ-साथ औद्योगीकरण में भी तेजी आएगी, लेकिन यह संभव नहीं हो सका.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

21 वर्ष बाद भी पलायन को मजबूर हैं झारखंड के लोग

पिछले 21 सालों में जितनी भी सरकारें बनी सभी ने जनता को विकास का सपना दिखाया. मधु कोड़ा से लेकर अर्जुन मुंडा और रघुवर दास तक के शासनकाल में यही स्थिति रही. हेमंत सरकार भी झारखंड में उद्योग लगाने के लिए उद्योगपतियों को आमंत्रित कर रही है लेकिन अब तक इसमें सफल नहीं हुई है. लौह अयस्क, कोयला अभ्रक और यूरेनियम जैसे खनिज पदार्थो की प्रचुरता होने के बावजूद झारखंड औद्योगिक रूप से पिछड़ा है. 21 वर्ष बाद भी गरीबी और बेरोजगारी जैसी समस्या के चलते लोग पलायन को मजबूर हैं.

यह भी पढ़ें: स्टेकहोल्डर्स कॉन्फ्रेंस होगी फायदेमंद, निवेश के लिए इच्छुक कई उद्योगपति आएंगे झारखंड: CM हेमंत सोरेन

रघुवर सरकार में हुए सर्वाधिक समझौते

रिकॉर्ड के मुताबिक सबसे अधिक एमओयू रघुवर सरकार के कार्यकाल में हुए. 2017 में आयोजित मोमेंटम झारखंड के माध्यम से देश-विदेश की कंपनियों के साथ सरकार ने एमओयू करने में रिकॉर्ड बना दिया. पर्यटन, खाद्य प्रसंस्करण, लघु एवं कुटीर उद्योग, कृषि एवं पशुपालन, कपड़ा उद्योग के क्षेत्रों में विकास का दावा किया गया था. मोंमेटम झारखंड से राज्य में तीन लाख करोड़ रुपए के निवेश और 1.60 लाख लोगों को रोजगार मिलने का भी दावा किया गया.

210 में से 162 कंपनियों ने एमओयू किया था जिसमें 113 भारतीय कंपनियां बगैर निवेश किए यहां से चली गई. कई विदेशी कंपनियां आई ही नहीं. एमओयू के बाद कई कंपनियों से संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन हो नहीं सका. 2017 में सरकार ने मोमेंटम झारखंड के आयोजन पर करोड़ों रुपए खर्च किए. सिंगापुर, बेंगलुरु, हैदराबाद, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, अमेरिका और चीन में कार्यक्रम का आयोजन किया गया था.

जमीन विवाद और कानून व्यवस्था के चलते होती है परेशानी

जानकारों का कहना है कि झारखंड में औद्योगिक घरानों के उद्योग लगाने से कतराने के पीछे मुख्य वजह है जमीन विवाद. सिंगल विंडो सिस्टम से ठीक से काम नहीं होना और कानून व्यवस्था भी इसके पीछे बड़ा कारण है. एमओयू के बाद उद्योगपतियों को जिस तरह की परेशानी झेलनी पड़ती है, उससे परेशान होकर वे उद्योग नहीं लगाते. विदेशी कंपनियों में कूल लाइट फ्रांस, आईटीई एजुकेशन सिंगापुर, स्मार्ट सिटी वन दक्षिण कोरिया कोलाज फ्रांस, एनजीपी हरक्यूलिस लिमिटेड, लाइट साउंड इंक कनाडा, कोलो ग्लोबल एबी स्वीडन ने झारखंड सरकार के साथ एमओयू किया था. भारतीय कंपनियों में इन पेरिया स्ट्रक्चर लिमिटेड, श्रीराम मल्टीकॉम प्राइवेट लिमिटेड, रामकृष्ण फोर्जिंग लिमिटेड, प्रसाद एक्सप्लोसिव केमिकल, त्रिमूला इंडस्ट्रीज लिमिटेड सहित डेढ़ दर्जन से अधिक कंपनियों ने एमओयू के बाद झारखंड की ओर पलट कर नहीं देखा.

यह भी पढ़ें: सीएम हेमंत सोरेन ने दिल्ली में उद्योगपतियों को दिया न्योता, कहा- राज्य में करें निवेश

जमीन नहीं मिलने के चलते कई कंपनियों ने नहीं किया निवेश

पहले भी कई ऐसे मौके आए जब बड़ी कंपनियों ने झारखंड में निवेश करने से मुंह मोड़ा है. 26 मार्च 2004 को झारखंड सरकार का आरजी स्टील लिमिटेड के साथ एमओयू हुआ था. जमीन और खदान नहीं मिलने के कारण कंपनी ने निवेश नहीं करने का निर्णय लिया. गोयल स्पोंज प्राइवेट लिमिटेड के साथ 12 अप्रैल 2005 को एमओयू हुआ था. बाद में कंपनी ने रुचि नहीं दिखाई. कल्याणी स्टील लिमिटेड के साथ 23 जुलाई 2005 को एमओयू हुआ था. लेकिन, जमीन और माइंस नहीं मिलने के कारण झारखंड को निवेश से हाथ धोना पड़ा.

कोल स्टील एंड पावर लिमिटेड के साथ सरकार का 29 दिसंबर 2006 को समझौता हुआ था. माइंस और जमीन न मिलने के कारण राज्य को 3,300 करोड़ के निवेश से हाथ धोना पड़ा. सार्थक इंडस्ट्रीज के साथ 26 फरवरी 2007 को सरकार ने समझौता किया. जमीन और माइंस नहीं मिलने के कारण कंपनी ने रुचि नहीं दिखाई. मां चंडी दुर्गा इस्पात के साथ 9 फरवरी 2007 को समझौता हुआ था. लेकिन, बाद में कंपनी ने निवेश नहीं किया. इसी तरह जगदंबा इस्पात सर्विसेज के साथ 9 फरवरी 2007 को समझौते हुआ. कंपनी ने प्लांट लगाने में रुचि नहीं दिखाई.

एसीबी कर रही मोमेंटम झारखंड में हुए भ्रष्टाचार की जांच

राज्य में निवेश को बढ़ाने के नाम पर केवल कागजी खानापूर्ति होती रही है. इसमें भ्रष्टाचार की शिकायतें भी सामने आईं हैं. मोमेंटम झारखंड में हुए गड़बड़ी की जांच की फाइल हाई कोर्ट के आदेश पर एसीबी तक पहुंच गई है. वहीं, महालेखाकार के यहां इसका स्पेशल ऑडिट हो रहा है. इधर, उद्योगपतियों के झारखंड के प्रति बेरुखी पर सत्ता पक्ष और विपक्ष एक दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं. वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव ने बीजेपी पर पलटवार करते हुए कहा है कि मोंमेटम झारखंड की तरह हाथी नहीं उड़ेगा. इस बार हाथी जमीन पर चलेगा.

Last Updated : Mar 8, 2021, 10:34 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.