रांची: झारखंड में 'स्थानीयता' हमेशा से एक बड़ा मुद्दा रहा है. पिछले साल राजनीतिक उठापटक और ईडी की चल रही कार्रवाई के बीच सरकार ने 11 नवंबर 2022 को विशेष सत्र बुलाकर 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता तय करने से जुड़ा बिल पारित कराया था. उस बिल को "झारखंड स्थानीय व्यक्तियों की परिभाषा और परिणामी सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य लाभों को ऐसे स्थानीय व्यक्तियों तक विस्तारित करने के लिए विधेयक 2022" नाम दिया था. लेकिन यह विधेयक आज तक राजभवन, सरकार और विधानसभा के चक्कर काट रही है. शीतकालीन सत्र के पहले दिन स्पीकर ने इस बिल को वापस करने की वजह से जुड़े राज्यपाल के संदेश को सदन में पढ़ा.
क्या कहकर राजभवन ने लौटाया था बिल: राज्यपाल ने विधानसभा को भेजे गये अपने संदेश में कहा है कि सदन से पारित इस बिल को राष्ट्रपति के पास भेजने से पहले भारत के अटार्नी जनरल से राय मांगी गई थी. इसके लिए 1 सितंबर 2023 को पत्र लिखा गया था. इसपर 11 नवंबर 2023 को अटार्नी जनरल की ओर से राजभवन को सुझाव भेजा गया. उसी सुझाव का हवाला देते हुए राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने बिल को विधानसभा को वापस कर दिया था.
क्या है अटार्नी जनरल का सुझाव: अटार्नी जनरल का कहना है कि बिल में स्थानीय व्यक्ति शब्द की परिभाषा लोगों की अकांक्षाओं के अनुकूल है. इसमें सांस्कृतिक और स्थानीय परिस्थिति का भी जिक्र है. लेकिन बिल के सेक्सन 6(a) को देखने पर लगता है कि इससे संविधान की धारा 14 और धारा 16(2) का उल्लंघन हो रहा है. अटार्नी जनरल का कहना है कि बिल के मुताबिक राज्य सरकार के थर्ड और फोर्थ ग्रेड के पदों पर नियुक्तियां केवल स्थानीय व्यक्ति के लिए आरक्षित होंगी. राज्य सरकार के अधीन विशेष रूप से स्थानीय व्यक्तियों के लिए थर्ड और फोर्थ ग्रेड के पदों पर इस तरह के आरक्षण से स्थानीय व्यक्तियों के अलावा अन्य व्यक्तियों पर पूर्ण प्रतिबंध है.
मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य सरकार के थर्ड और फोर्थ ग्रेड के पदों पर आवेदन करने से स्थानीय व्यक्तियों के अलावा अन्य व्यक्तियों का बहिष्कार संविधान की योजना के अनुरूप नहीं हो सकता है. मेरा मानना है कि संवैधानिक रूप से पूर्ण बहिष्कार के बजाय यह प्रावधान करना अधिक सुरक्षित होगा कि सभी चीजों में समान प्राथमिकता स्थानीय व्यक्तियों को दी जाएगी. चतुर्थ श्रेणी पदों के संबंध में कानून में यह प्रावधान किया जा सकता है कि केवल स्थानीय व्यक्तियों पर ही विचार किया जाएगा लेकिन यह योजना पांच साल की अवधि के बाद समीक्षा योग्य होगी. इससे स्थानीय व्यक्तियों के साथ भी न्याय होगा, जो अपने ही राज्य में रोजगार के अवसरों के बेहतर हकदार हो सकते हैं. अटार्नी जनरल ने यह सुझाव पैरा 27 में दिया है.
गोल-गोल घूम रहा है स्थानीयता से जुड़ा बिल: 11 नवंबर 2022 को विधानसभा से पारित इस बिल को पहली बार तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस ने जनवरी 2023 में कुछ आपत्तियों के साथ राज्य सरकार को वापस कर दिया था. उनका सुझाव था कि नियोजन में शर्तें लगाने की शक्तियां संसद के पास है ना कि राज्य के पास. लेकिन सरकार ने फिर राजभवन को यह कहते हुए बिल को भेज दिया था कि इसे विधानसभा सचिवालय ने भेजा है. इसलिए अगर राजभवन को लगता है कि इसमें कोई त्रुटि है तो इससे जुड़ा मेमोरेंडम विधानसभा को ही भेजा जाना चाहिए. इसी के बाद वर्तमान राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने अटार्नी जनरल से सुझाव लेकर विधानसभा सचिवालय को विधेयक वापस कर दिया था.
ये भी पढ़ें-