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सरकारी सिस्टम से टूट गई आस तो ग्रामीणों ने खुद बदल डाली गांव की तस्वीर, श्रमदान से बनाया लकड़ी का पुल

Wooden bridge on river in Ranchi. जब सरकारी सिस्टम से आस टूट गई तो रांची के लापुंग प्रखंड के ग्रमीणों ने खुद ही गांव की तस्वीर बदलने का बीड़ा उठाया और श्रमदान कर लकड़ी का पुल बना डाला. पुल नहीं रहने से ग्रामीणों को आवागमन में परेशानी हो रही थी.

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Dec 15, 2023, 2:15 PM IST

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Wooden Bridge On River In Ranchi

रांची: रांची जिले के लापुंग प्रखंड के ककरिया गांव के कुसुम टोली के लोगों की नैया लकड़ी के पुल के सहारे पार हो रही है, लेकिन इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. देश को आजाद हुए सात दशक व पंचायती राज व्यवस्था को लागू हुए एक दशक हो गए, लेकिन गांव के लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं को तरस रहे हैं.

गांव में ना पक्की सड़क है और ना पुलः गांव में आज भी पुल और पक्की सड़क नहीं है. इस कारण ग्रामीणों को कीचड़मय रास्ते से आवागमन करना पड़ता है. गांव से होकर बहने वाली कनकी नदी और सरना गड़ा पर पुल का निर्माण नहीं होने से गांव के लोगों को आवाजाही में काफी दिक्कत होती है. बरसात के दिनों में तो लोग घरों में कैद होकर रह जाते हैं या फिर जान जोखिम में डाल कर नदी पार करते हैं.

जनप्रतिनिधियों ने नहीं ली सुधः कई बार ग्रामीणों ने पुल का निर्माण कराने के लिए अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों तक गुहार लगाई, लेकिन आश्वासन के सिवा आज तक कुछ नहीं मिला. थक हारकर यहां के ग्रामीणों ने गुरुवार को भाजपा नेता सन्नी टोप्पो के साथ मिलकर श्रमदान कर लकड़ी का पुल और चलने लायक सड़क बनाया. गांव के लोग अब इसी लकड़ी के पुल के सहारे आवागमन कर रहे हैं. इस संबंध में ग्रामीणों ने कहा कि चुनाव के समय नेता आते हैं और बड़े-बड़े वादे कर चले जाते हैं. लेकिन चुनाव जीतने के बाद सब भूल जाते हैं. वहीं मामले में प्रशासन भी सुध नहीं ले रहा है.

भाजपा सत्ता में आई तो ग्रामीण क्षेत्रों का होगा विकास: इस संबंध में भाजपा नेता सन्नी टोप्पो ने कहा कि ककरिया पंचायत के कुसुम टोली में अधिकतर आदिवासी निवास करते हैं, लेकिन आज भी गांव जाने के लिए लकड़ी का पुल ही सहारा है. यह दुख की बात है. झारखंड राज्य इसलिए अलग हुआ कि यहां की आदिवासियों का विकास हो, लेकिन आज भी यहां के ग्रामीणों की समस्या सुनने कोई नहीं आया. यहां के ग्रामीण कई मुश्किलों का सामना कर रहे हैं. ग्रामीणों ने श्रमदान कर रोड और पुल का निर्माण खुद किया है. 2024 में राज्य में भाजपा की सरकार बनी तो ग्रामीण क्षेत्रों का विकास होगा.

हर साल ग्रामीण आवागमन के लिए बनाते हैं पुलः वहीं इस संबंध में ग्रामीण बसंती लकड़ा कहती हैं हमें प्रतिदिन लकड़ी के पुल से कनकी नदी पार करना पड़ता है. गांव के लोगों के प्रयास से पुल को हर साल बनाया जाता है. पुल नहीं रहने से हमें दूसरे गांव जाने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ेगी. हालत यह है कि एंबुलेंस भी गांव नहीं आ पाती है. मरीजों को खाट पर उठाकर लकड़ी का पुल पार करना पड़ता है.

लकड़ी का पुल ग्रामीणों के साबित होगा वरदानः वहीं पहान बीर मुंडा कहते हैं कि नदी पर पुल बनने से कोयसारा, सेमला, टांड टोली, अरमालद्दाग सहित दर्जनों गांव के लोगों को आवागमन में सुविधा होगी. अनिल सिंह ने कहा कि कनकी पुल होने से सैकड़ों ग्रामीणों को लाभ मिलेगा. गांव में किसानों और ग्रामीणों के लिए पुल बनना अति आवश्यक है. हम लोग बचपन से ही पानी के बीच होकर आवागमन करने को मजबूर हैं. लकड़ी का पुल लोगों के लिए वरदान साबित होगा. कई गांव के लोगों को इसका सीधा लाभ मिलेगा.

मौके पर ये थे मौजूदः मौके पर ग्रामीण रइमा मुंडा, संजय सिंह चौहान, वीर मुंडा, बसंती लकड़ा, पंचू मुंडा, अनिल उरांव, शनीचरिया उराइन, मंगा मुंडा, नंदकिशोर मुंडा, मालती देवी, संदीप उरांव, सीताराम बड़ाइक, सुदर्शन लकड़ा, तेलंगा उरांव, सुनीता तिर्की, फगनी मुंडाइन, दली मुंडाइन, सोमरा मुंडा, सानू मुंडा, लिटुवा उरांव आदि मौजूद थे.

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रांची: रांची जिले के लापुंग प्रखंड के ककरिया गांव के कुसुम टोली के लोगों की नैया लकड़ी के पुल के सहारे पार हो रही है, लेकिन इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. देश को आजाद हुए सात दशक व पंचायती राज व्यवस्था को लागू हुए एक दशक हो गए, लेकिन गांव के लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं को तरस रहे हैं.

गांव में ना पक्की सड़क है और ना पुलः गांव में आज भी पुल और पक्की सड़क नहीं है. इस कारण ग्रामीणों को कीचड़मय रास्ते से आवागमन करना पड़ता है. गांव से होकर बहने वाली कनकी नदी और सरना गड़ा पर पुल का निर्माण नहीं होने से गांव के लोगों को आवाजाही में काफी दिक्कत होती है. बरसात के दिनों में तो लोग घरों में कैद होकर रह जाते हैं या फिर जान जोखिम में डाल कर नदी पार करते हैं.

जनप्रतिनिधियों ने नहीं ली सुधः कई बार ग्रामीणों ने पुल का निर्माण कराने के लिए अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों तक गुहार लगाई, लेकिन आश्वासन के सिवा आज तक कुछ नहीं मिला. थक हारकर यहां के ग्रामीणों ने गुरुवार को भाजपा नेता सन्नी टोप्पो के साथ मिलकर श्रमदान कर लकड़ी का पुल और चलने लायक सड़क बनाया. गांव के लोग अब इसी लकड़ी के पुल के सहारे आवागमन कर रहे हैं. इस संबंध में ग्रामीणों ने कहा कि चुनाव के समय नेता आते हैं और बड़े-बड़े वादे कर चले जाते हैं. लेकिन चुनाव जीतने के बाद सब भूल जाते हैं. वहीं मामले में प्रशासन भी सुध नहीं ले रहा है.

भाजपा सत्ता में आई तो ग्रामीण क्षेत्रों का होगा विकास: इस संबंध में भाजपा नेता सन्नी टोप्पो ने कहा कि ककरिया पंचायत के कुसुम टोली में अधिकतर आदिवासी निवास करते हैं, लेकिन आज भी गांव जाने के लिए लकड़ी का पुल ही सहारा है. यह दुख की बात है. झारखंड राज्य इसलिए अलग हुआ कि यहां की आदिवासियों का विकास हो, लेकिन आज भी यहां के ग्रामीणों की समस्या सुनने कोई नहीं आया. यहां के ग्रामीण कई मुश्किलों का सामना कर रहे हैं. ग्रामीणों ने श्रमदान कर रोड और पुल का निर्माण खुद किया है. 2024 में राज्य में भाजपा की सरकार बनी तो ग्रामीण क्षेत्रों का विकास होगा.

हर साल ग्रामीण आवागमन के लिए बनाते हैं पुलः वहीं इस संबंध में ग्रामीण बसंती लकड़ा कहती हैं हमें प्रतिदिन लकड़ी के पुल से कनकी नदी पार करना पड़ता है. गांव के लोगों के प्रयास से पुल को हर साल बनाया जाता है. पुल नहीं रहने से हमें दूसरे गांव जाने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ेगी. हालत यह है कि एंबुलेंस भी गांव नहीं आ पाती है. मरीजों को खाट पर उठाकर लकड़ी का पुल पार करना पड़ता है.

लकड़ी का पुल ग्रामीणों के साबित होगा वरदानः वहीं पहान बीर मुंडा कहते हैं कि नदी पर पुल बनने से कोयसारा, सेमला, टांड टोली, अरमालद्दाग सहित दर्जनों गांव के लोगों को आवागमन में सुविधा होगी. अनिल सिंह ने कहा कि कनकी पुल होने से सैकड़ों ग्रामीणों को लाभ मिलेगा. गांव में किसानों और ग्रामीणों के लिए पुल बनना अति आवश्यक है. हम लोग बचपन से ही पानी के बीच होकर आवागमन करने को मजबूर हैं. लकड़ी का पुल लोगों के लिए वरदान साबित होगा. कई गांव के लोगों को इसका सीधा लाभ मिलेगा.

मौके पर ये थे मौजूदः मौके पर ग्रामीण रइमा मुंडा, संजय सिंह चौहान, वीर मुंडा, बसंती लकड़ा, पंचू मुंडा, अनिल उरांव, शनीचरिया उराइन, मंगा मुंडा, नंदकिशोर मुंडा, मालती देवी, संदीप उरांव, सीताराम बड़ाइक, सुदर्शन लकड़ा, तेलंगा उरांव, सुनीता तिर्की, फगनी मुंडाइन, दली मुंडाइन, सोमरा मुंडा, सानू मुंडा, लिटुवा उरांव आदि मौजूद थे.

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