रांचीः कोरोना वायरस के संकट ने देश के हर क्षेत्र में हलचल मचा दी है. डेयरी, पशुपालन और फिशरीज क्षेत्र पर भी कोरोना की मार पड़ी है. इस महामारी के कारण पशुपालन उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ है. बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के डीन वेटनरी डॉ सुशील प्रसाद कहते हैं कि कोरोना मनुष्य से मनुष्य के बीच फैलता है.
![पशुपालकों को संक्रमण से बचाव की है जरूरत, वेटनरी डॉ सुशील प्रसाद ने दिए कई सुझाव](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/jh-ran-03-bau-pasu-salah-pkg-jh10015_30032020194132_3003f_1585577492_1091.jpg)
इसका मीट, मछली और अंडों आदि के संक्रमण से कोई लेना देना नहीं है. विश्वभर में कहीं से भी पोल्ट्री उत्पादों से कोरोना संक्रमण की बात सामने नहीं आई हैं. गलत अफवाहों के चलते उपभोक्ताओं के बीच भ्रम व पैनिक की स्थिति बनी हुई है. जिससे पशुपालन से जुड़े किसानों की आजीविका पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. वहीं पभोक्ताओं को सस्ते प्रोटीन से भी वंचित होना पड़ रहा है. प्रदेश की सरकार ने भी मीट, मछली और अंडों की बिक्री पर लगी रोक हटा ली है.
![पशुपालकों को संक्रमण से बचाव की है जरूरत, वेटनरी डॉ सुशील प्रसाद ने दिए कई सुझाव](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/jh-ran-03-bau-pasu-salah-pkg-jh10015_30032020194132_3003f_1585577492_381.jpg)
पशुपालन क्षेत्र में भी बचाव के उपाय
विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन और भारत सरकार के मत्स्य पालन, पशुपालन व डेयरी उद्योग विभाग ने भी इस बाबत एडवाइजरी जारी की है. कोरोना संकट का सामना करने के लिए पशुपालन क्षेत्र में भी बचाव के उपाय किए जाने की जरूरत बताई है. ताकि लोगों को किसी भी प्रकार के संक्रमण से मुक्त पशु उत्पाद मिले. पशु उत्पादों के उपभोग को लेकर भ्रम व पैनिक की स्थिति को दूर करने के लिए पशुपालकों को जागरूक किये जाने की जरूरत है. कोरोना वायरस संक्रमण से रोकथाम को लेकर डीन वेटनरी डॉ सुशील प्रसाद ने पशुपालकों को कई सुझाव दिये हैं. उन्होंने पशुपालकों को स्वंय के अलावा पशु एवं पक्षियों की जैविक सुरक्षा करने की जरूरत बताई है. पशुपालकों को गाय, भैंस, बकरी, सूअर और मुर्गी आदि की देखभाल के समय मुंह में मास्क लगाने और सैनिटाईजर या साबुन से प्रत्येक घंटे हाथ धोने की सलाह दी है. पशु फार्म में बाहरी लोंगो को प्रवेश नहीं करने देने तथा पशुओं के ठहरने के स्थल को सुबह और शाम फीनाईल से धोने की बात कही है. दुध दुहने से पहले और बाद में हाथों को सेनेटाईजर या साबुन से सेनेटाईज करने तथा दुध के थन को डीटाँल या साबुन के पानी से धोने को कहा.
उन्होंने पशुओं के घर या शेड में एक या दो आदमी से ही कार्य लेने तथा मरे पशुओं को उस स्थान से तुरंत हटाकर कर अन्यत्र जमीन में गाड़ने और मृत पशुओं को कहीं बाहर नहीं फेंकने को कहा है. इसके अलावा समय–समय पर फ्यूमीगेशन करने की आवश्यकता है, ताकि उस स्थल को वायरस और बैक्टीरिया से मुक्त रखा जा सके. फ्यूमीगेशन में 40 मि.ली. फारमेलीन और 20 मि.ली. पोटाशियम परमेगेनेट को मिट्टी के बर्तन में आधे घंटे छोड़ने के बाद इस्तेमाल करना चाहिये.