रांचीः उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मंगलवार को राजभवन पहुंचकर पद से इस्तीफा दे दिया. चर्चा है कि रावत की कुर्सी जाने की वजह झारखंड गौ सेवा आयोग में नियुक्ति को लेकर सामने आया रिश्वत प्रकरण बना है. इधर. इस घटनाक्रम को लेकर झारखंड के सियासी गलियारे में भी अटकलों का बाजार गर्म है. जहां प्रदेश के भाजपा नेता आरोपों पर कुछ कहने से बच रहे हैं और आलाकमान के निर्णय पर टिप्पणी से इनकार कर रहे हैं तो दूसरे सियासी दलों के नेता इसको लेकर भाजपा पर निशाना साध रहे हैं. झारखंड सरकार के मंत्री सत्यानंद भोक्ता ने कहा कि आग लगेगा तो धुआं उठेगा ही. वहीं विधायक सरफराज अहमद ने मामले की जांच की मांग की है.
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बता दें कि निवर्तमान मुख्यमंत्री रावत मुख्यमंत्री बनने से पहले झारखंड भाजपा के प्रभारी रह चुके हैं. नोटबंदी के वक्त झारखंड गौ सेवा आयोग को लेकर वे काफी समय तक सुर्खियों में रहे हैं. भाजपा में आए इस सियासी बदलाव पर टिप्पणी के दोरान प्रदेश के कई भाजपा नेताओं ने कहा कि उनके यहां के लोगों से व्यक्तिगत रिश्ते रहे हैं. हालांकि भाजपा विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा और बिरंची नारायण ने आलाकमान के फैसले पर टिप्पणी से इनाकर कर दिया. उन्होंने उत्तराखंड के लोगों को शुभकामना दीं और कहा कि जो भी लोग शासन की बागडोर संभालें राज्य के हित में कार्य करें. वहीं दूसरे दलों के नेताओं ने भाजपा पर निशाना साधा है और विधायक सरफराज अहमद, विधायक बंधु तिर्की आदि ने मामले की जांच की मांग की है. साथ ही मंत्री सत्यानंद भोक्ता ने तंज कसा कि जहां आग लगेगी, वहां धुआं उठेगा ही.
झारखंड भाजपा के प्रभारी रह चुके हैं त्रिवेंद्र सिंह रावत
वर्ष 2015 में जब झारखंड में रघुवर दास की सरकार बनी थी. उस वक्त भाजपा ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को झारखंड का प्रभारी बनाया था. बाद में त्रिवेंद्र सिंह रावत उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने. इधर मंगलवार को त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.
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गौसेवा आयोग को लेकर रहे थे सुर्खियों में
झारखंड का भाजपा प्रभारी रहने के दौरान नोटबंदी के दौर में त्रिवेंद्र एक समय खूब सुर्खियों में रहे हैं. आरोप है कि भाजपा किसान मोर्चा के झारखंड प्रदेश उपाध्यक्ष अमृतेश चौहान ने नोटबंदी के वक्त उत्तराखंड विधानसभा चुनाव से पहले तत्कालीन झारखंड भाजपा प्रभारी के साढ़ू और उनके परिजनों के 13 खातों में 25 लाख रुपये जमा कराए थे. आरोप है कि यह पैसा रावत को पहुंचाया जाना था, जिसके एवज में उन्हें झारखंड के खाली पड़े गौसेवा आयोग के अध्यक्ष के पद पर आसीन कराना था. यह रुपये 500 और 1000 रुपये के रूप में जमा कराए गए थे और एक खाते में दो लाख रुपये से अधिक जमा नहीं कराए जा सकते थे. बाद में वे सीएम बन गए तो चौहान ने उनके मोबाइल नंबर पर बात भी की. लेकिन बात नहीं बनी. बाद में चौहान ने कुछ पत्रकारों से बात की और 25 लाख रुपये न लौटाने का आरोप लगाया. उन्होंने ह्वाट्सएप बातचीत की डिटेल और जमा कराए गए पैसों की तथाकथित रसीद भी दिखाई थी. बाद में दिल्ली में उन्हें पैसे दे दिए गए. इसके बाद अमृतेश ने रांची में समाचार प्लस के सीईओ उमेश कुमार के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया था. बताया जाता है कि यह मामला नैनीताल हाईकोर्ट में भी पहुंचा था और हाई कोर्ट ने सीबीआई जांच का आदेश दिया और त्रिवेंद्र रावत के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज हुआ. बाद में रावत ने हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
इस्तीफे पर छलका त्रिवेंद्र का दर्द, बोले- दिल्ली से पूछिए कारण
त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है. त्रिवेंद्र सिंह रावत ने राज्यपाल बेबी रानी मौर्या से मुलाकात की और उन्हें अपना इस्तीफा सौंप दिया. अनुमान है कि बुधवार को नए मुख्यमंत्री के नाम का एलान कर दिया जाएगा. इस्तीफा देने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि दिल्ली से पूछिए उनसे क्यों इस्तीफा लिया गया. त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि मैं लंबे समय से पार्टी में काम कर रहा हूं. आरएसएस के स्वयंसेवक के नाते, बीजेपी संगठन मंत्री के नाते. विगत चार वर्षों से पार्टी ने सीएम के रूप में सेवा करने का मौका दिया. यह मेरा परम सौभाग्य रहा है. मेरे जीवन का स्वर्णिम अवसर मेरी पार्टी ने मुझे दिया. इस्तीफा देने के सवाल पर त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि यह सामूहिक निर्णय होता है. इसके जवाब के लिए आपको दिल्ली जाना होगा.