रांची: 13 जनवरी को रांची के बिरसा मुंडा एयरपोर्ट पर एक महिला को इसलिए पकड़ा गया था क्योंकि उसकी गोद में तीन दिन का नवजात था, जिसे वह एक मां की तरह हैंडल नहीं कर पा रही थी. उसके पास बच्चे के जन्म से जुड़ा कोई दस्तावेज भी नहीं था. शक होने पर एयरलाइंस के कर्मचारियों ने इसकी जानकारी सीआईएसएफ को दी. सीआईएसएफ की टीम ने स्थानीय पुलिस को बुलाया. जब पूछताछ हुई तो महिला ने कहा कि उसे बेटे की चाहत थी. इसलिए उसने 22 हजार रुपए में तीन दिन के नवजात को खरीदा था. फिलहाल महिला जेल में है और बच्चा (Child Welfare Committee) चाइल्ड वेलफेयर कमेटी की देखरेख में रांची शेल्टर होम में (Ranchi Shelter Home).
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अब सवाल है कि यह बच्चा किसका है ? किसने इस बच्चे को बेचा? कहां उसका जन्म हुआ? बच्चे की मां कहां है. ईटीवी भारत के पास इन सभी सवालों का जवाब है. लेकिन इन बातों का इसलिए जिक्र नहीं हो सकता क्योंकि, आधार कार्ड के हिसाब से बच्चे को जन्म देने वाली नाबालिग है. उसकी शादी भी नहीं हुई है. आधार कार्ड में उसके जन्म का वर्ष 2005 दर्ज है. दूसरी तरफ पुलिस और मेडिकल रिकॉर्ड में उसकी आयु 20 से 22 साल के बीच बताई गई है. चुकि आधार कार्ड और उसके घर से मिले बीपीएल लाल कार्ड के हिसाब से वह नाबालिग है, इसलिए पूरे मामले को उसी आधार पर आपके सामने रखने की कोशिश की जा रही है.
तीन दिन के नवजात की मानव तस्करी (Human Trafficking in Ranchi) के कारणों के तह में जाने के लिए हमारी टीम रांची से 75 किलोमीटर से ज्यादा दूर स्थित बिन ब्याही मां के गांव पहुंची. पीड़िता के पिता स्पेशली एबल्ड और मां अनपढ़ है . पीड़िता के दो बड़े भाई हैं , जो दूसरे राज्यों में मजदूरी का काम करते हैं. एक बड़ी बहन है जिसकी शादी हो चुकी है. मिट्टी का एक छोटा सा घर है. बिजली का कनेक्शन भी नहीं है. जमीन बस इतनी है कि बमुश्किल एक से डेढ़ क्विंटल धान निकल पाता है. मां और बाप भी गांव में दूसरों के खेतों में काम करते हैं. सही मायने में लाल कार्ड से मिलने वाला अनाज है, इनके जीने का जरिया है.
अब सवाल यह था कि आमतौर पर गांवों में जहां बिना शादी के गर्भवती होने पर लोग लोक लाज के डर से तमाम हदें पार कर देते हैं, वहां यह बच्ची 9 माह तक अपने गर्भ में बच्चे को कैसे पालती रही. पीड़िता की मां, चाचा, चाची और अन्य पड़ोसियों से बात करने पर कई भ्रामक तथ्य सामने आए. किसी के बयान में एकरूपता नहीं थी. सभी कुछ छुपाने की कोशिश कर रहे थे. किसी ने बताया कि पीड़िता के साथ तीन लोगों ने अनैतिक काम किया था जिसकी वजह से वह गर्भवती हो गई थी. जबकि अस्पताल के रिकॉर्ड में एक शख्स का नाम लिखकर पीड़िता का पति बताया गया था.
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यह पूछने पर कि जब घर में खाने के लाले हों, वह परिवार एक प्राइवेट हॉस्पिटल में सिजेरियन ऑपरेशन का खर्च कैसे वहन कर लेगा. इसके जवाब में बताया गया कि पालतू जानवर बेचकर पैसे इकट्ठा किए गए थे. अब सवाल था कि लेबर पेन होने पर पीड़िता को स्थानीय सरकारी अस्पताल के बजाय इतना दूर रांची के एक प्राइवेट अस्पताल में क्यों लाया गया और कौन लेकर आया. इस काम में मदद करने वाली दूसरे गांव की एक तथाकथित नर्स का नाम आया. नर्स ने पीड़िता के एक तथाकथित रिश्तेदार का नाम लेकर बताया कि उसने ही रांची ले जाने का आग्रह किया था. यह पूछे जाने पर कि 10 जनवरी को अस्पताल में भर्ती कराने के बाद क्या हुआ तो परिजनों ने कहा कि इसकी कोई जानकारी नहीं है. 13 जनवरी को डॉक्टर ने कह दिया कि इलाज हो गया है, अब पीड़िता को ले जाओ.
इसकी पड़ताल करने जब हमारी टीम अस्पताल पहुंची तो वहां कुछ और जानकारी मिली. वहां बताया गया कि पीड़िता की स्थिति बहुत खराब थी. परिजन चाहते थे कि नॉर्मल डिलीवरी हो, जो संभव नहीं था. बिना पैसा लिए 10 जनवरी की रात पीड़िता का सिजेरियन किया गया. बच्चा कुपोषित था. उसका वजन 1 किलो 900 ग्राम था. पीड़िता के एक रिश्तेदार ने 11 जनवरी को 12000 रुपए और 13 जनवरी को 18000 रुपए जमा किए. पूरा परिवार परेशान दिख रहा था. 13 जनवरी को बच्चे के साथ पूरा परिवार अस्पताल से निकला. अस्पताल में एडमिट होने पर पीड़िता के पिता का नाम भी लिखवाया गया था. हालांकि पिता के रूप में कोई वहां मौजूद नहीं था. ऑपरेशन के दौरान महिला चिकित्सक को भी पीड़िता के नाबालिग होने का शक हुआ था लेकिन उन्होंने अपने पेशे को प्राथमिकता देते हुए उसका इलाज किया. चुकि अस्पताल में पूरा परिवार मौजूद था इसलिए उन्हें किसी तरह का कोई शक नहीं हुआ. जहां तक बात आधार कार्ड की है तो बकौल अस्पताल प्रबंधन उन्हें यह कागज डिस्चार्ज होने के दिन दिया गया. बाद में मीडिया के माध्यम से पता चला कि उस बच्चे को कोई और महिला मुंबई ले जाने की कोशिश कर रही थी और पकड़ी गई. इस पूरे मामले की तफ्तीश एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट कर रही है. कोर्ट में पीड़िता का बयान भी दर्ज हो चुका है.
अब सवाल है कि इस पीड़ित परिवार के संपर्क में वह महिला कहां से आ गई जो बच्चे को लेकर मुंबई जाना चाह रही थी. उसने पुलिस को सिर्फ इतना बताया कि वह 11 जनवरी को मुंबई से रांची पहुंची थी और 22,000 रुपए देकर 13 जनवरी को बच्चे को लेकर मुंबई जा रही थी. महिला ने इतना बताया है कि वह मूल रूप से झारखंड के ही एक जिला की रहने वाली है. फिलहाल अपने पति के साथ मुंबई में रह रही थी. उसकी दो बेटियां हैं और उसे बेटे की चाहत थी.
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पुलिस के सामने चुनौतियां: आधार कार्ड और लाल कार्ड के हिसाब से अगर पीड़िता नाबालिग है तो सीधे तौर पर यह दुष्कर्म का मामला है. क्या बेटे की चाहत रखने वाली महिला को मालूम था कि पीड़िता के गर्भ में मेल चाइल्ड है. यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि 9 माह पूरा होने से पहले ही पीड़िता को लेबर पेन हुआ था और उसे आनन-फानन में 10 जनवरी को अस्पताल में भर्ती कराया गया था. 10 जनवरी की रात उसने बच्चे को जन्म दिया था. दूसरी तरफ 11 जनवरी को बेटे की चाहत रखने वाली महिला मुंबई से रांची पहुंच गई थी. पीड़िता को अस्पताल में भर्ती कराने से लेकर बच्चे की चाहत रखने वाली महिला के पहुंचने तक के पूरे मामले को जोड़कर देखने से लगता है कि पूरा प्लॉट पहले से तैयार था. अब सवाल है कि दोनों परिवारों को किसने जोड़ा. इस पूरे प्रकरण में पीड़िता के चाचा ने कहा कि हम लोगों को पुलिस परेशान तो नहीं करेगी ना. अब देखना है पुलिस क्या करती है.