रांचीः विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) के मौके पर हर साल झारखंड में भी पारंपरिक रुप से पर्यावरण संरक्षण के नाम पर कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. मगर जिस पर्यावरण को संरक्षित करने के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं, क्या वाकई में उसको लेकर ईमानदार प्रयास होता है, शायद नहीं. जिस वजह से पर्यावरण संरक्षण कार्यक्रम (environmental protection program) सिर्फ दिखावा बनकर रह जाता है.
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झारखंड सरकार द्वारा चलाया गया वृक्षारोपण कार्यक्रम जिसपर सवाल उठते रहे हैं. अन्य वर्षों की तरह पिछले वर्ष भी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के द्वारा गेतलसूद से इसकी शुरुआत की गई थी. लक्ष्य के मुताबिक 1.70 करोड़ पेड़ लगाने थे. विधानसभा से लेकर राज्य में खाली पड़ी सरकारी जमीनों पर पेड़ लगाने का निर्देश दिया गया था. विधानसभा जैसी कुछ जगहों में वन महोत्सव के जरिए पेड़ भी लगे मगर उसके बाद देखरेख के अभाव में अधिकांश पेड़ सूख गए. जबकि इसके नाम पर करोड़ों रुपए खर्च हो चुके हैं.
सरकार के इस उदासीन रवैये पर सवाल उठने लगे हैं. विपक्ष के साथ साथ सामाजिक कार्य में लगे लोग सरकार की मंशा पर सवाल खड़ा करने लगे हैं. सामाजिक कार्यकर्ता एस अली ने वृक्षारोपण के नाम पर बड़े पैमाने पर सरकारी राशि का दुरुपयोग होने का आरोप लगाया है. वहीं विपक्षी दल बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता अनिमेश कुमार ने इसके लिए वर्तमान सरकार को दोषी बताते हुए जमकर आलोचना की है.
मंत्री भी मानते हैं सूख गए पेड़ः सबसे खास बात यह है कि सरकार के मंत्री भी मानते हैं कि वृक्षारोपण के दौरान करीब दस फीसदी पेड़ सूख गए हैं. अब सरकार इन सूखे पेड़ों को हटाकर फिर से प्लांटेशन करने का आदेश दिया है. संसदीय कार्य सह ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम ने कहा है कि ये शिकायतें उन तक पहुंची हैं, जिसके लिए हर जिला के डीडीसी को सूखे पेड़ के स्थान पर फिर से नया पौधा लगाने को कहा गया है. उन्होंने पिछली सरकार की तूलना में पिछले वर्ष रिकॉर्ड वृक्षारोपण होने का दावा किया है. उन्होंने कहा कि इसमें किसी प्रकार की गड़बड़ी भी नहीं हुई है जबकि पिछली सरकार में कई तरह की अनियमितता होती रहती थी.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक झारखंड में वन क्षेत्र 34% आच्छादित है जो राष्ट्रीय आंकड़े 35.4% से थोड़ा कम है. ऐसे में झारखंड सरकार के वन एवं पर्यावरण विभाग का लक्ष्य है कि इसे राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया जाए. लेकिन इसी तरह से वृक्षारोपण कार्यक्रम चलता रहा और इसके बाद इनकी देखरेख नहीं हुई तो इस आंकड़े को पाना बेहद ही मुश्किल है. सिर्फ पेड़ लगाने से नहीं होगा समय-समय पर इनकी देखभाल भी जरूरी है.