रांचीः 1999 में भारत पाकिस्तान के कारगिल युद्ध की खबर ने सबके दिलों को कचोट कर रख दिया. इस जंग में किसी के मांग का सिंदूर उड़ गया तो किसी की गोद सूनी हो गई, कई बच्चे अनाथ हो गए. ऐसे ही रांची के पिठोरिया में जन्मे वीर सपूत नागेश्वर महतो भी थे, जिन्होंने इस युद्ध में भारत माता की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी.
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कारगिल युद्ध के 23 साल बाद भी शहीद नागेश्वर महतो की पत्नी संध्या देवी अपने पति की तस्वीर को देख कर रो पड़ती हैं, उन्हें पति के खोने का गम तो है, पर उससे ज्यादा उन्हें फक्र है कि उनके पति नायब सूबेदार नागेश्वर महतो भारत माता की सेवा में खुद के प्राणों की आहुति दे दी. संयुक्त बिहार में रांची के पिठोरिया में नागेश्वर महतो का जन्म साल 1961 में हुआ था. परिवार में पांच भाई और एक बहन है. नागेश्वर महतो भाइयों में चौथे स्थान पर थे. उनका पालन-पोषण भाइयों के साथ ही हुआ था.
जंग में नागेश्वर को मिली थी बोफोर्स की जिम्मेदारीः नागेश्वर महतो बचपन से ही चंचल स्वभाव के रहे, पर पढ़ाई में भी वो अच्छे थे. उनकी सेना में बहाली 29 अक्टूबर 1980 में हुई, सैन्य जीवन में उनको कई उपाधियां मिलीं. साल 1999 में जब कारगिल में भारत और पाकिस्तान की जंग छिड़ गयी. उस वक्त नायब सूबेदार नागेश्वर महतो की ड्यूटी टेक्निकल स्टाफ के तौर पर लगाई गयी थी. उन्हें कारगिल युद्ध में अहम भूमिका निभाने वाले बोफोर्स तोप की जिम्मेदारी दी गई थी.
बोफोर्स तोप लगातार आग उगल रहे थे, जिसके सामने दुश्मनों के छक्के छूट गए थे. लगातार गोलीबारी के बीच तोप की गड़बड़ियों को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी नायब सूबेदार नागेश्वर महतो के कंधों पर थी. नायब सूबेदार नागेश्वर महतो को कारगिल युद्ध के बीच 1 घंटे का विराम मिला था. उस वक्त सूबेदार नागेश्वर महतो अपनी तोप को ठीक कर रहे थे.
दुश्मन सैनिकों का धोखाः पाक सैनिक ऊंचाई पर थे और भारतीय सैनिक तलहटी में नीचे की तरफ थे. इस बात का फायदा पाकिस्तान सैनिकों को मिल गया और युद्ध विराम के बीच ही उन्होंने बोफोर्स तोप को नुकसान पहुंचाने के लिए एक गोला नागेश्वर महतो की तरफ उछाल दिया. वो गोला नागेश्वर महतो के ठीक बगल में आकर फटा, जोरदार धमाका हुआ और नायब सूबेदार वीरगति को प्राप्त हो हुए.
इस लड़ाई में 13 जून 1999 को पाकिस्तानी सैनिकों की ओर से किए गए छल में नायब सूबेदार नागेश्वर महतो शहीद हुए. जिसके बाद सूबेदार की पत्नी संध्या देवी को कारगिल युद्ध में उनके पति के शहादत की जानकारी एक पत्र के माध्यम से दी गई. आखिरकार 60 दिन तक लगातार चली इस लड़ाई में भारत विजयी हुआ. वीर सैनिकों ने पाकिस्तान को पीछे खदेड़ने में कामयाब रही और 26 जुलाई 1999 को कारगिल की चोटी पर भारत का तिरंगा शान से लहराया.