रांची: झारखंड में स्थानीय और नियोजन नीति (Niyojan Niti) का मुद्दा गरमाता जा रहा है. स्थानीय लोगों के भावनाओं के अनुरूप नियोजन नीति जल्द बने इसे लेकर आदिवासियों के साथ-साथ मूलवासियों ने एकजुट होकर आवाज उठाना शुरू कर दिया है. सोमवार को अपनी मांगों को लेकर इन उन्होंने राजभवन के सामने एक दिवसीय धरना दिया. उसके बाद राज्यपाल को मांग पत्र सौंपा.
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राज्य में स्थानीय और नियोजन नीति नहीं बनने से आदिवासी और मूलवासी खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं. उनका कहना है कि नौकरी, व्यापार, उद्योगों का लाभ दूसरे राज्यों के लोग उठा रहे हैं. मूल निवासियों का हक दूसरे राज्यों से आए लोग छीन रहे हैं. यही वजह है कि इस मुद्दे को लेकर सरकार पर दवाब बनाया जा रहा है.
झारखंड में 21 साल में नहीं बने नियोजन नीति
झारखंड राज्य के बने 21 साल पूरे हो गए. लेकिन अब तक यहां के आदिवासी, मूलवासी के हित में स्थानीय और नियोजन नीति नहीं बनाए गए. 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय और नियोजन नीति बनाने की मांग की जा रही है. जहां एक तरफ नियोजन नीति नहीं बन रही है. वहीं दूसरी तरफ राज्य सरकार विभिन्न विभागों में खाली पड़े पदों को भरने के लिए नियुक्तियां निकालने की तैयारी में है. ऐसे में आदिवासियों और मूलवासियों ने सरकार पर सवाल उठाना शुरू कर दिया है कि स्थानीय नियोजन नीति बनाए बिना नौकरी किन्हें दी जाएगी.
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रघुवर सरकार के नियोजन नीति को हेमंत सरकार ने किया रद्द
पूर्व की रघुवर सरकार ने 1985 से राज्य में रहने वालों को स्थानीय मानकर स्थानीय नीति बनाया था. जो विवादों के घेरे में रहा. वर्तमान हेमंत सोरेन की सरकार ने उस नीति को रद्द कर नए सिरे से स्थानीय नियोजन नीति बनाने की तैयारी की है. लेकिन सरकार ने अब तक ये नहीं बताया है कि राज्य में स्थानीय और नियोजन नीति का आधार क्या होगा.