रांचीः झारखंड में स्थानीय और नियोजन नीति का मुद्दा लगातार जोर पकड़ने लगा है. राज्य के स्थानीयता की भावना के अनुरूप स्थानीय नीति जल्द बने. इसकी आवाज यहां के आदिवासी और मूलवासी समाज एकजुट होकर उठाना शुरू कर दिया है. वहीं आगे उग्र आंदोलन करने की चेतावनी भी दी है.
इसे भी पढ़ें- 1932 आधारित स्थानीय नीति लागू करने की मांग तेज, लोगों ने कहा- जल्द सरकार अपना रुख करे साफ
झारखंड में स्थानीय नीति जल्द बने इसको लेकर आदिवासी मूलवासी समाज एकजुट होकर आंदोलन की रणनीति बनाई है. राज्य में स्थानीयता और नियोजन नीति नहीं बनने से यहां के आदिवासी मूलवासी समाज खुद को उपेक्षित महसूस कर रहा है. यही वजह है कि इस मुद्दा को लेकर आदिवासी मूलवासी समाज आर या पार की लड़ाई लड़ने की बात कह रहे हैं. वर्तमान सरकार के मुखिया मुख्यमंत्री इस ज्वलंत मुद्दे पर अब तक सकारात्मक रूख और निर्णय नहीं दे पा रहे हैं. इससे लगभग ढाई लाख की संख्या में तृतीय, चतुर्थ वर्ग और शिक्षक पदों की रिक्तियां पड़ी हुई हैं और राज्य के शिक्षित युवा रोजगार के लिए ठोकरें खा रहे हैंं.
झारखंड राज्य के बने 21 साल पूरे होने को है लेकिन अब तक यहां के आदिवासी मूलवासी के हित में स्थानीयता और नियोजन नीति नहीं बनाए गए. पूर्व की रघुवर सरकार ने स्थानीयता और नियोजन नीति बनाई जो विवादों के घेरे में रहा. लिहाजा वर्तमान हेमंत सोरेन की सरकार के द्वारा स्थानीय नीति और नियोजन नीति को लागू करने के कारण इससे यहां के आदिवासी और मूलवासी समाज में नाराजगी है. आदिवासी समाज की मांग है कि पहले स्थानीय नियोजन नीति परिभाषित करें उसके बाद ही नियुक्ति निकालें.
पूर्व की रघुवर सरकार ने 1985 से राज्य में रहने वाले को स्थानीय मानकर स्थानीय नीति बनाई थी. जिसपर बदलाव की तैयारी में मौजूदा हेमंत सोरेन की सरकार है. लेकिन सरकार अब तक यह नहीं बताया है कि राज्य में स्थानीय नीति और नियोजन नीति बनेगा तो उसका आधार क्या होगा. यही वजह है कि आदिवासी और मूलवासी समाज सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे है.