रांचीः झारखंड में बाहरी भाषा के नाम पर विवाद बढ़ता जा रहा है. भोजपुरी, मगही, मैथिली, अंगिका को बाहरी भाषा बताते हुए राज्य में इसकी मान्यता रद्द करने की मांग आदिवासी संगठन कर रहे हैं. 'बाहरी भाषा नैय चलतो' के नारे के साथ बड़ी संख्या में गुरुवार को अलग-अलग संगठनों के बैनर तले प्रदर्शनकारी सड़क पर उतरे और अल्बर्ट एक्का चौक पर हेमंत कैबिनेट के पुतला फूंका.
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झारखंड में भाषा विवाद को लेकर आदिवासी मूलवासी संगठन ने सीएम हेमंत सोरेन का पुतला जलाया. आदिवासी मूलवासी संगठन के आदिवासी नेता प्रेम शाही मुंडा ने 28 फरवरी को राज्यव्यापी मानव श्रृंखला बनाने की घोषणा की है. हेमंत सरकार को निशाने पर लेते हुए उन्होंने कहा कि हेमंत सरकार कैबिनेट की बैठक बुलाकर बाहरी भाषाओं को वापस लें, कोई भी सरकार झारखंड के लोगों पर बाहरी भाषा थोप नहीं सकता. पूर्व मंत्री देव कुमार धान ने कहा कि वर्ष 1982 में ही स्थानीय कौन होगा इस विषय पर कमिटी बनी थी, कमिटी ने फैसला लिया था कि लास्ट रिकॉर्ड सर्वे में जिसका नाम होगा वही स्थानीय होगा. लेकिन आज भोजपुरी, अंगिका, मैथिली और मगही के नाम पर नौकरी दूसरे को देने की साजिश हो रही है जिसका विरोध हर स्तर पर होगा.
भाषा मुद्दे पर हाल ही में कांग्रेस से इस्तीफा देने वाली पूर्व शिक्षा मंत्री गीताश्री उरांव भी आज सड़क पर उतरी, मशाल जुलूस का नेतृत्व कर रही गीताश्री उरांव ने कहा कि राज्य में मगही, भोजपुरी, अंगिका और मैथिली को जगह देने की जो कोशिश हो रही है उसका वह विरोध करती हैं. गीताश्री ने कहा कि जिस उद्देश्य से झारखंड बना था उस उद्देश्य को हेमंत सरकार भूल गयी है. राज्य में आज तक स्थानीय नीति नहीं बनी है, जिन भाषाओं या बोलियों की बिहार में मान्यता नहीं है उसे झारखंड में मान्यता दिलाने की कोशिश हो रही है जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
संयुक्त मोर्चा के कोर कमिटी की बैठकः रांची में आदिवासी मूलवासी सामाजिक संगठनों का संयुक्त मोर्चा के कोर कमिटी की बैठक डॉ. करमा उरांव की अध्यक्षता में हुई. रांची के प्रेस क्लब सभागार में हुई इस बैठक में कई प्रस्ताव पारित किए और निर्णय लिए गए. वर्तमान सरकार अब तक स्थानीय एवं नियोजन नीति बनाने की दिशा में एक कदम भी नही उठा पाई है, यह राज्य की संपूर्ण आदिवासी एवं मूलवासी समाज के लिये दुर्भाग्य है. नियोजन नीति के आलोक में जनजातीय क्षेत्रीय भाषा को सशक्तिकरण एवं उपयोगी बनाने के बजाय बिहार राज्य के मूल की भाषा मैथिली, भोजपुरी, अंगिका एवं मगही को शामिल कर के अनावश्यक विवाद एवं वर्ग सघर्ष की स्थिति पैदा की है जबकि इन भाषाओं की उपयोगिता राजकीय काम काज में बिहार राज्य में भी नहीं है, उक्त नियमावली से इन भाषाओं को अविलंब विलोपित करें.
राज्य में शिक्षित बेरोजगार, रोजी रोटी एवं नियोजन के लिए दर-दर की ठोकर खा रहे हैं, परंतु अत्यंत दुखद है कि विभिन्न राज्यकीय संवर्गीय पदों की ढाई लाख पद रिक्त है, सरकार की टाल मटोल नीति के कारण नियुक्ति प्रक्रिया बाधित है इसे दुरुस्त किया जाए. इस तमाम मुद्दों को लेकर 12 मार्च 2022 को रांची में विराट आदिवासी मूलवासी आक्रोश रैली आयोजित होगी. जिसमें झारखंड राज्य के कोने-कोने से सभी जिलों से राजधानी में हजारों हजार की संख्या में जुटेंगे. इस कोर कमिटी की बैठक में उक्त आक्रोश रैली के निमित विभिन्न समितियां यथा वित्तीय प्रबंधन समिति प्रचार प्रसार एवं बैठकों के आयोजन समिति आदि का गठन किया गया.