रांची: सरना यानी आदिवासियों का पूजनीय स्थल. आदिवासियों के हर नेक काम की शुरुआत सरना स्थल पर पूजा के साथ होती है. आदिवासियों के एक बड़े वर्ग का मानना है कि इसी सरना शब्द से उनका अतीत, वर्तमान और भविष्य जुड़ा हुआ है, इसलिए तमाम आदिवासी संगठन लंबे समय से सरना धर्म कोड की मांग कर रहे हैं. उनकी दलील है कि अलग धर्म नहीं परिभाषित होने के कारण देश की 700 जनजातियों का अस्तित्व खतरे में है, व्यापक पैमाने पर आदिवासियों का धर्म परिवर्तन हो रहा है. अब सवाल है कि सरना धर्म कोड नहीं होने की वजह से कैसे आदिवासियों को नुकसान हो रहा है.
कौन धर्म परिवर्तन करा रहा है. इस कोड के लागू होने से आदिवासियों को किस तरह का फायदा होगा. आदिवासी खुद को क्यों हिंदू धर्म से अलग मानने पर अड़े हुए हैं. झारखंड में कितने आदिवासियों का इसाई धर्म में परिवर्तन हो चुका है. सरना धर्म कोड कैसे मिलेगा और इसमें राज्य सरकार की क्या भूमिका हो सकती है. इन तमाम सवालों पर हमारे वरिष्ठ सहयोगी राजेश कुमार सिंह ने आदिवासियों के धर्मगुरु बंधन तिग्गा और आदिवासी मामलों के जानकार प्रोफेसर करमा उरांव से बातचीत की.
जनगणना प्रपत्र में सरना धर्म कोड की मांग
जनगणना प्रपत्र में कुल 7 कॉलम हैं. 6 कॉलम में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध और जैन धर्म के लिए है, जबकि सातवां कॉलम अन्य धर्म को अंकित करने के लिए है. आदिवासी मामलों के जानकारों की दलील है कि 2011 की जनगणना में 42.35 लाख आदिवासियों ने 7वें कॉलम में अपने धर्म का जिक्र किया. इनमें 41.31 लाख लोगों ने खुद को सरना धर्मावलंबी बताया. यानी 97% लोग सरना धर्म के पक्ष में थे, जबकि महज 3% लोगों ने 7वें कॉलम में खुद के धर्म को आदिवासी या अन्य लिखा.
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आंदोलन की भावी कार्ययोजना तैयार
झारखंड के आदिवासी संगठनों ने सरना धर्म कोड की मांग को दिल्ली तक मजबूती से पहुंचाने के लिए आंदोलन की भावी रूपरेखा तैयार की है. झारखंड सहित उड़ीसा, बंगाल, छत्तीसगढ़, बिहार, मध्य प्रदेश समेत अन्य राज्यों में द्वारा किया जाएगा और वहां के आदिवासी नेताओं के साथ मिलकर आंदोलन को राष्ट्रीय स्वरूप दिया जाएगा. बहुत जल्द दिल्ली में देशभर के धर्मावलंबियों के प्रतिनिधि सभा आयोजित करने की तैयारी हो रही है. संसद मार्च के साथ-साथ राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, जनजातीय मामलों के मंत्री, राष्ट्रीय जनजाति आयोग और रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया को स्मार पत्र भी सौंपा जाएगा. 7 नवंबर को सभी सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों, बुद्धिजीवियों, प्रबुद्ध नागरिकों और जनप्रतिनिधियों के साथ संगोष्ठी की जाएगी.