रांची: राजधानी का ऐतिहासिक पहाड़ी मंदिर देश का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां 26 जनवरी और 15 अगस्त को तिरंगा फहराया जाता है. देश की आजादी के दीवानों ने 14 अगस्त की रात सबसे पहले इस ऐतिहासिक पहाड़ी मंदिर जो कभी फांसी टूंगरी हुआ करती था, यहां तिरंगा फहराया था. इसके बाद से यह परंपरा लगातार जारी है.
पहाड़ी मंदिर का विकास तो हुआ, लेकिन इस परंपरा को भी नहीं छोड़ा गया और इसे लगातार जारी रखा गया है. ऐसे में गुरुवार सुबह मंदिर प्रांगण में बने ऐतिहासिक स्तंभ में 73 वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर झंडोत्तोलन कर शिव मंडल के सदस्यों ने भारत माता की जय के नारे लगाए और राष्ट्रीय गान गाकर आजादी का जश्न मनाया.
शिव मंडल के सदस्य प्रेम शंकर चौधरी ने पहाड़ी मंदिर में झंडोत्तोलन के इतिहास को बयां किया, तो वहीं सदस्य संजय केडिया, दिनेश चौधरी, रामदास राम और प्रेमलता ने देशभक्ति नारे लगाकर अपनी भावनाओं को व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि हमें इस बात का गर्व है कि हम ऐसे मंदिर में रोजाना पूजा करते हैं. वहीं, शिव भक्तों ने कहा कि हर साल 26 जनवरी और 15 अगस्त को पहले भगवान शंकर की पूजा आराधना के बाद तिरंगा फहराया जाता है.
पहाड़ी मंदिर में झंडोत्तोलन का इतिहास बड़ा ही दिलचस्प है. ऐतिहासिक पहाड़ी मंदिर देश का एकमात्र ऐसा शिव मंदिर है, जहां धार्मिक झंडे के साथ ही तिरंगा भी फहराया जाता है. यह मंदिर देश की आजादी से पहले अंग्रेजों के कब्जे में हुआ करता था. अंग्रेजों द्वारा फ्रीडम फाइटर्स को यहां फांसी दी जाती थी. यही वजह है कि इसे फांसी टुंगरी भी कहा जाता है. आजादी के बाद इसी पहाड़ी पर पहला तिरंगा कृष्ण चंद्र दास नाम के एक स्वतंत्रता सेनानी ने फ्रीडम फाइटर्स के सम्मान में 14 और 15 अगस्त 1947 की आधी रात में तिरंगा फहराया था.