रांची: हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार झारखंड विधानसभा के वर्तमान मानसून सत्र के दौरान ही फिर एक बार 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति विधेयक, ओबीसी को 27% आरक्षण विधेयक और भीड़ हिंसा के खिलाफ मॉब लिंचिंग विधेयक सदन से पास कराकर राजभवन भेजने की तैयारी में थी. लेकिन इसमें एक तकनीकी पेंच फंस जाने की वजह से अब वर्तमान सत्र के दौरान इसे विधानसभा के पटल पर लाने की संभावना बेहद कम है.
राज्य के संसदीय कार्यमंत्री आलमगीर आलम के अनुसार सरकार विधानसभा से पारित तीनों महत्वपूर्ण विधेयकों को राजभवन से लौटाने में तय नियमों का पालन नहीं किया गया है. ऐसे में जबतक विधानसभा सचिवालय के पास राजभवन से लौटाए गए विधेयक उनके संदेश के साथ नहीं पहुंच जाते तब तक विधानसभा की पटल पर दोबारा विधेयक पेश नहीं किया जा सकता. राज्यपाल अपने संदेश के साथ विधेयक को विधानसभा को लौटाएं, इसको लेकर झारखंड सरकार द्वारा 27 जुलाई को कार्मिक विभाग की ओर से एक पत्र भी राजभवन भेजा गया है.
आलमगीर आलम ने कहा कि राज्यपाल से यह आग्रह किया जाएगा कि या तो विधानसभा से पारित तीनों विधेयक को वह सहमति प्रदान करें या अपने संदेश के साथ नियानुसार विधानसभा सचिवालय को वापस कर दें.
झारखंड विधानसभा प्रक्रिया एवं कार्य संचालन के नियम -98 के तहत विधानसभा से पारित कोई भी विधेयक विधानसभा की संपत्ति हो जाती है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 200 में भी इसी तरह का जिक्र है. ऐसे में जब विधानसभा से पारित कोई विधेयक स्वीकृति के लिए राजभवन भेजी जाती है और उसे राज्यपाल किसी वजह से वापस करते हैं तो उसे विधानसभा सचिवालय को वापस किया जाता है.
झामुमो नेता सुप्रियो भट्टाचार्या और संसदीय कार्यमंत्री आलमगीर आलम का कहना है कि 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति विधेयक, ओबीसी को 27% आरक्षण देने वाला विधेयक और भीड़ द्वारा हिंसा (मॉब लिंचिंग) विधेयक जब विधानसभा से पारित कर राजभवन को भेजा गया तो राजभवन सचिवालय ने उसे विधान सभा सचिवालय भेजने की जगह राज्य सरकार को वापस कर दिया. ऐसे में जब तक राजभवन से लौटाए गए तीनों विधेयक राज्यपाल के संदेश के साथ विधानसभा को नहीं प्राप्त हो जाता तब तक दोबारा इसे सदन के पटल पर नहीं लाया जा सकता.