रांची: झारखंड के साथ-साथ कोरोना की दूसर लहर ने पहली लहर की तुलना में जमकर तबाही मचाई. सरकार लगातार स्थिति ठीक होने का दावा करती रही लेकिन सच यही है कि हालात काबू में नहीं थे. हालांकि, अब धीरे-धीरे स्थिति पटरी पर लौट रही है. पहली लहर की तुलना में दूसरी लहर कितना ज्यादा और क्यों मारक रही, इसे लेकर ईटीवी भारत की टीम ने डाटा एनालिसिस करके और डॉक्टरों से बात करके एक रिपोर्ट तैयार की है.
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क्यों ज्यादा मारक रही दूसरी लहर?
31 मार्च 2020 को झारखंड में कोरोना का पहला केस मिला था. इसके बाद धीरे-धीरे कोरोना संक्रमितों का संख्या बढ़नी शुरू हुई. कोरोना के केस तो बढ़ रहे थे लेकिन हालात कंट्रोल में थे. लोग भी सजग और सतर्क थे और इसी का नतीजा था कि पहली लहर को कंट्रोल करने में ज्यादा मुश्किलें नहीं आई.
पहली लहर में मौत का आंकड़ा भी काफी कम था. जब कोरोना के केस धीरे-धीरे कम होने लगे तब लोग भी लापरवाह होते गए. लोगों ने कोरोना को गंभीरता से नहीं लिया. जब कोरोना की दूसरी लहर ने दस्तक दी तब भी लोग लापरवाह बने रहे. यही वजह है कि 31 मार्च 2020 से 31 मार्च 2021 तक जहां 1,113 मौतें थी वहीं, पिछले 67 दिनों में 3,933 लोगों की कोरोना से जान चली गई.
कोरोना की दूसरी लहर ज्यादा खतरनाक होने को लेकर रिम्स के विशेषज्ञ डॉ. अविनाश कुमार का कहना है कि यह वायरस लगातार रूप बदल रहा है. वायरस का नया म्यूटेंट तेजी से संक्रमित करने वाला और ज्यादा घातक था. नए वायरस को लेकर लोग सतर्क नहीं थे और यह वजह है कि दूसरी लहर में कई लोगों की जान गई. रिम्स के जनसंपर्क अधिकारी डॉ. डीके सिन्हा का कहना है कि दूसरी लहर में कई जगह ऑक्सीजन की कमी हो गई. इसके चलते भी कई लोगों की जान चली गई.
कहां हुई चूक-
- दूसरी लहर में काफी लापरवाह हो गए लोग
- अनलॉक के दौरान भी कई जगह कोरोना गाइडलाइन का नहीं हुआ पालन
- दूसरी लहर की तबाही का अनुमान नहीं लगा सके डॉक्टर
- दूसरी लहर में मेडिकल उपकरण की भी काफी कमी थी
- जरूरी दवाओं के लिए भी लोग भटकते रहे
- जब तक सरकार लॉकडाउन लगाती तब तक हजारों लोगों की मौत हो गई