रांची: झारखंड में जेनेटिक डिसऑर्डर की बीमारी सिकल सेल एनीमिया, थैलेसीमिया और हीमोफीलिया के मरीजों की संख्या काफी है. एक आकंड़े के अनुसार राज्य में मेजर थैलेसेमिया मरीजों की संख्या ही पांच हजार से अधिक है. अगर सिकल सेल एनीमिया और हीमोफीलिया के मरीजों की संख्या को जोड़ दे तो 50 हजार से अधिक वैसे मरीज हैं जो जेनेटिक डिसऑर्डर की वजह से होने वाली बीमारियों से ग्रसित हैं. झारखंड थैलसीमिया फॉउंडेशन के अनुसार अगर राज्य के सभी 24 जिलों में अभियान चलाकर बीमार मरीजों की स्क्रीनिंग कराई जाए तो यह संख्या और अधिक हो सकती है.
राज्य में रक्त संबंधी बीमारी के इलाज के लिए एक भी डॉक्टर नहीं: राज्य में रक्त सम्बन्धी गंभीर बीमारियों के लिए एक भी विशेषज्ञ डॉक्टर यानी हिमेटोलॉजिस्ट नहीं हैं. ज्यादातर सरकारी अस्पतालों में मेडिसीन या पैथोलॉजिस्ट चिकित्सकों के भरोसे थैलेसीमिया, सिकल सेल एनीमिया या हीमोफीलिया के मरीजों का इलाज होता है. रांची सदर अस्पताल में आयुष्मान भारत योजना के तहत अनुबंध पर एक विशेषज्ञ डॉक्टर को नियुक्त किया गया था, वह भी सेवा छोड़ कर कोलकाता चले गए हैं.
बिना डोनर के नहीं दिया जाता रक्त: राज्य में थैलेसीमिया के मरीजों को ब्लड बैंक से बिना डोनर के रक्त या PRBC देने का नियम सरकार ने बना रखा है, लेकिन हकीकत यह है कि राज्य के दूरस्थ क्षेत्र की बात छोड़िए, रांची सदर अस्पताल में ही सरकार के इस आदेश की धज्जियां उड़ाई जाती है. ब्लड बैंक में हर बार पहले से ही परेशान थैलीसीमिया मरीजों के परिजनों को डोनर लाने पर रक्त देने की बात कही जाती है. जब ईटीवी भारत ने सदर अस्पताल के पैथोलॉजिस्ट विभाग के हेड डॉ बिमलेश से बात की तो उन्होंने कहा कि कई बार रक्त उपलब्ध नहीं रहने पर ऐसा कहा जाता है.
कई गंभीर बीमारियों के शिकार हो रहे हैं थैलेसीमिया के मरीज: झारखंड थैलीसीमिया फाउंडेशन के अध्यक्ष और समाज सेवी अतुल गेडा कहते हैं कि रांची, जमशेदपुर और धनबाद मेडिकल कॉलेज को छोड़ दें तो अन्य जिलों में ब्लड कॉम्पोनेन्ट सेपरेटर की सुविधा नहीं है. ऐसे में थैलसीमिया के मरीजों को PRBC की जगह होल ब्लड (Whole Blood) चढ़ा दिया जाता है. अतुल गेडा कहते हैं कि ब्लड के जिन कॉम्पोनेन्ट की जरूरत थैलसेमिक मरीज को नहीं है अगर उसे सम्पूर्ण ब्लड के साथ-साथ और बार बार चढ़ा दिया जाए तो ओवर लोड की स्थिति बन जाती है. इस वजह से मरीज का हार्ट, लीवर, किडनी, पैंक्रियाज पर खराब असर पड़ता है.
बृहत पैमाने पर स्क्रीनिंग अभियान चलाए जाने की जरूरत: राज्य में अभी खूंटी, रांची और एकाध जिले को छोड़ दें तो सरकारी स्तर पर जेनेटिक डिसऑर्डर की वजह से होनेवाली बीमारी जैसे थैलेसीमिया, सिकल सेल एनीमिया और हीमोफीलिया की पहचान के लिए कोई स्क्रीनिंग अभियान नहीं चला है. डॉ बिमलेश कुमार सिंह के अनुसार अगर राज्य भर में अभियान चलाकर स्क्रीनिंग हो तो मरीजों की संख्या बढ़ेगी. फिर जागरूकता अभियान चलाकर मेजर थैलेसीमिया के मरीजों की संख्या अगली पीढ़ी से कम जरूर किया जा सकता है.
थैलेसीमिया के मरीजों की समस्या दूर करने के प्रति गंभीर नहीं स्वास्थ्य मंत्री: राज्य में हर दिन थैलेसीमिया के मरीजों के माता-पिता और परिजन इलाज के लिए परेशान रहते हैं. ब्लड बैंक से लेकर अस्पताल तक मे कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. लेकिन इनकी समस्याओं को लेकर विभागीय मंत्री गंभीर नहीं दिखते. हीमोफीलिया मरीजों को दिए जाने वाले फैक्टर की उपलब्धता की बात कहते हुए उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा. शायद उन्हें नहीं पता कि थैलेसीमिया के मरीजों को फैक्टर नहीं बल्कि PRBC की जरूरत होती है.
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