रांचीः झारखंड में बड़े नक्सली संगठनों से टूट कर बने छोटे नक्सली संगठन यानी स्प्लिंटर ग्रुप पुलिस के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रहे हैं. इन संगठनों का मुख्य काम लेवी वसूलना और आपराधिक घटनाओं को अंजाम देना है. राजधानी रांची सहित कई जिलों में अलग-अलग स्प्लिंटर ग्रुप सक्रिय हैं.
तीन स्प्लिंटर ग्रुप सबसे खतरनाक
झारखंड में यूं तो नक्सलियों के छह से ज्यादा स्प्लिंटर ग्रुप हैं लेकिन इनमें से तीन अक्सर आतंक फैलाकर पुलिस को चुनौती देते रहते हैं. ये तीन संगठन है पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएलएफआई), झारखंड जनमुक्ति परिषद (जेजेएमपी) और तृतीय प्रस्तुति कमेटी (टीपीसी). इन स्प्लिंटर ग्रुप को राज्य में उग्रवादी की संज्ञा दी गई है. तीनों संगठन राज्य के अलग-अलग जिलों में सक्रिय हैं. झारखंड के सबसे बड़े नक्सली संगठन भाकपा माओवादी का वर्चस्व लगभग 15 जिलों में है जबकि पीएलएफआई, टीपीसी और जेजेएमपी चार से पांच जिलों में बेहद सक्रिय है.
किस जिले में किस स्प्लिंटर ग्रुप का वर्चस्व
- पीएलएफआई- रांची, खूंटी, गुमला, सिमडेगा
- जेजेएमपी-चतरा, लातेहार, पलामू, लोहरदगा
- टीपीसी-चतरा, लातेहार, पलामू
हालांकि इन सभी जिलों में सबसे बड़ा नक्सली संगठन भाकपा माओवादी ही है. नक्सलियों के सभी स्प्लिंटर ग्रुप कभी ना कभी भाकपा माओवादियों के साथ ही काम किया करते थे. पैसे के लालच, आपसी वैमनस्य और जातिगत राजनीति के कारण ये भाकपा माओवादी से अलग होते गए.
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झारखंड पुलिस के प्रवक्ता सह आईजी अभियान साकेत सिंह ने ईटीवी भारत को बताया कि राजधानी के आसपास हाल के दिनों में पीएलएफआई की सक्रियता बढ़ी है लेकिन पुलिस उनके खिलाफ लगातार कार्रवाई कर रही है. जल्द ही उन पर पूरी तरह से नकेल कस लिया जाएगा. उन्होंने इस बात से सीधे इंकार किया कि टीपीसी और जेजेएमपी पुलिस समर्थित संगठन है.
स्प्लिंटर ग्रुपः पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट ऑफ इंडिया
सुप्रीमोः दिनेश गोप
इनामः 25 लाख (झारखंड सरकार) + 5 लाख (एनआईए)
कमाईः 40 से 50 करोड़ रुपए सालाना
पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट ऑफ इंडिया राजधानी रांची, खूंटी, गुमला, सिमडेगा और चाईबासा के कुछ क्षेत्रों में बेहद एक्टिव है. पीएलएफआई का गठन साल 2007 में दिनेश गोप ने किया. वर्तमान में इस संगठन में 40 से 50 लोग जुड़े हैं. इस संगठन के पास अत्याधुनिक हथियारों के साथ साथ देसी हथियार भी बड़े पैमाने पर मौजूद हैं. पीएलएफआई राज्य का पहला ऐसा उग्रवादी संगठन है जो खुद भी हथियार का निर्माण करता है और उन्हें अपराधियों को भी बेचता है. संख्या बल काफी कम होने के बावजूद यह संगठन अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में काम करने वाले छोटे-छोटे अपराधिक गिरोह के माध्यम से काम करता है. सुपारी लेकर हत्या करने से लेकर बाइक चोरी तक के मामलों में पीएलएफआई नक्सलियों की गिरफ्तारी समय-समय पर होती रही है.वर्तमान में यह गिरोह रंगदारी के धंधे में ज्यादा एक्टिव है. इनके निशाने पर इनके प्रभाव क्षेत्र में आने वाले बड़े कारोबारी हैं. ये कारोबारियों से लगातार रंगदारी की डिमांड भी कर रहे हैं और डिमांड पूरी नहीं होने पर कारोबारियों के घर पर गोलियां अभी चला रहे हैं. पिछले दो महीनों में केवल राजधानी रांची से ही पीएलएफआई के 2 दर्जन से अधिक उग्रवादियों की गिरफ्तारी हुई है. इसके बावजूद संगठन पर पुलिस का दबाव काम नहीं कर रहा और संगठन लगातार लोगों से रंगदारी की डिमांड कर रहा है.
स्प्लिंटर ग्रुपः तृतीय प्रस्तुत कमेटी
सुप्रीमोः ब्रजेश गंझू उर्फ गोपाल सिंह भोक्ता
इनामः 25 लाख (झारखंड सरकार) + 5 लाख (एनआईए)
कमाईः 90 से 100 करोड़ रुपए सालाना
तृतीय प्रस्तुति कमेटी यानी टीपीसी संगठन एक ओर जहां झारखंड पुलिस के लिए एक गुप्त वरदान साबित हुआ है वहीं दूसरी ओर कोयला का काम करने वाले कंपनियों के लिए आतंक का दूसरा नाम है. झारखंड में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया-माओवादी के कैडरों में फैसला लेने की प्रक्रिया में यादव जाति के वर्चस्व की शिकायत कर कुछ सदस्य अलग गए. उन्होंने साल 2002 में तृतीय प्रस्तुति कमेटी बनाई. टीपीसी कैडर ज्यादातर दलित, भोक्ता, तुरी, बदई, उरांव और गंझू जातियों से थे. इसके नेता अक्सर यह कहते हैं कि उनके दुश्मन पुलिस नहीं बल्कि माओवादी हैं. यह संगठन झारखंड के चतरा जिले में बेहद मजबूत स्थिति में है. ये संगठन झारखंड और दक्षिण बिहार के कई इलाके, जो माओवादियों के प्रभाव में थे और वहां समानांतर सरकार की तरह काम किया करते थे. ऐसे इलाकों से टीपीसी ने माओवादियों का सफाया कर दिया. चतरा के आम्रपाली मगध कोल परियोजना से यह संगठन हर साल करोड़ों की उगाही करता है. इसके पास यूएस और जर्मन मेड हथियार भी हैं.
स्प्लिंटर ग्रुपः झारखंड जनमुक्ति परिषद
सुप्रीमोः पप्पू लोहरा
इनामः 10 लाख
कमाईः 30 से 40 करोड़ रुपए सालाना
झारखंड के लोहरदगा, लातेहार और पलामू में सक्रिय उग्रवादी संगठन जेजेएमपी पर पुलिस से सांठगांठ का आरोप अक्सर लगता रहा है. यह संगठन सबसे ज्यादा पैसे की वसूली कोयला खदानों से करता है. इनकी संख्या लगभग सौ है औप इनके पास एके-47 जैसे हथियार हैं. इस संगठन का मकसद सिर्फ लेवी वसूलना है. जेजेएमपी सुप्रीमो पप्पू लोहरा की तस्वीर अक्सर पुलिस वालों के साथ वायरल होती रहती है. यही वजह है कि ऐसा माना जाता है कि इस संगठन को झारखंड पुलिस के कुछ अधिकारियों नहीं ही खड़ा किया है और इसका इस्तेमाल वे भाकपा माओवादियों के खिलाफ करते हैं. पलामू के चर्चित बकोरिया फर्जी एनकाउंटर मामले सीबीआई कर रही है.
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एनआईए की दबिश से बैकफुट पर स्प्लिंटर ग्रुप
टेरर फंडिंग मामले की जांच में जैसे ही राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए की एंट्री हुई, उसका सबसे बड़ा शिकार टीपीसी और पीएलएफआई हुआ. एनआईए ने पीएलएफआई सुप्रीमो दिनेश गोप और टीपीसी सुप्रीमो ब्रजेश गंझू समेत कई उग्रवादियों पर इनाम की घोषणा की है. बड़े उग्रवादी संगठन के कई नेता भी अलग अलग केस में एनआईए की रडार पर हैं. भाकपा माओवादियों के पोलित ब्यूरो सदस्य प्रशांत बोस, प्रयाग मांझी, टीपीसी के भीखन गंझू, मुकेश गंझू और नागेश्वर गंझू की तलाश एनआईए को है. चार पुलिसकर्मियों की हत्या और उसके बाद लातेहार के चंदवा के टेरर फंडिंग के मामले में रवींद्र गंझू का दस्ता एनआईए के निशाने पर है.
गृह मंत्रालय की रिपोर्ट में भी बताया गया खतरनाक
गृह मंत्रालय के अनुसार राज्य में लेफ्ट विंग एक्सट्रीमिज्म मामले में भाकपा माओवादी से अलग हुए छोटे छोटे ग्रुप ज्यादा खतरनाक साबित हो रहे हैं. मुख्य रूप से राजधानी रांची समेत गढ़वा, लातेहार, चतरा, हजारीबाग, खूंटी, लोहरदगा और पलामू ऐसे जिले हैं, जहां इन छोटे ग्रुप्स का प्रभाव है. इन स्प्लिंटर ग्रुप ने पिछले चार साल में 605 से अधिक वारदातों को अंजाम दिया है. जबकि 57 प्रतिशत नक्सली हिंसा में हुई मौत के लिए भी यही जिम्मेदार हैं.
गृह मंत्रालय ने इन छोटे संगठनों को टारगेट करने की सलाह दी है. साथ ही माओवादियो और उग्रवादियों की झारखंड रीजनल कमिटी, पूर्वी बिहार-पूर्वोत्तर झारखंड स्पेशल एरिया कमिटी, बिहार झारखंड ओडिशा बॉर्डर रीजनल कमिटी के खिलाफ ऑपरेशन चलाने की सलाह दी है.
बीते दिनों दुमका में झारखंड के डीजीपी एमवी राव ने पुलिस अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिया है कि हथियारबंद अपराधी पर गोली चलाने और उसे मार गिराने में कोताही न बरतें. उन्होंने पुलिस अधिकारियों को कहा कि अगर सही एनकाउंटर होता है तो आप बेफिक्र रहें, वे उनके साथ हैं. डीजीपी ने कहा कि जो अपराधी हथियार लेकर निकला है वह कोई पूजा करने नहीं निकला है, किसी न किसी को मारना उसका उद्देश्य है तो ऐसे में उस अपराधी को मारने में कोई परेशानी नहीं है.
अब तक कितने नक्सली गिरफ्तार
झारखंड पुलिस मुख्यालय के अनुसार पिछले 3 सालों में नक्सलियों और उग्रवादियों की लगातार गिरफ्तारी की जा रही है. भाकपा माओवादी से जुड़े हुए नक्सलियों को सबसे ज्यादा गिरफ्तार किया गया है. साल 2018 में 168, 2019 में 132 और इस साल अक्टूबर महीने तक 135 नक्सलियों की गिरफ्तारी की जा चुकी है. इसी तरह पीएलएफआई से जुड़े 122 नक्सली साल 2018 में गिरफ्तार हुए थे. बीते साल इनकी संख्या 81 थी और इस साल 116 पीएलएफआई नक्सलियों को गिरफ्तार किया जा चुका है. साल 2018 में टीपीसी के 76 नक्सली पकड़े गए थे, 2019 में 46 और साल 2020 में अक्टूबर तक 50 टीपीसी नक्सलियों की गिरफ्तारी की गई थी. इसी तरह तीन साल के दौरान जेजेएमपी के 72 नक्सली गिरफ्तार हुए हैं. इसके साथ ही दूसरे छोटे नक्सली संगठनों के 23 लोगों को गिरफ्तार किया गया है.