रांचीः 30 अप्रैल के बाद झारखंड के सभी नगर निकायों का कार्यकाल समाप्त हो जाएगा. ऐसे में राज्य में नगर निकाय का कामकाज अधिकारियों के भरोसे चलेगा. रांची नगर निकाय का कार्यकाल 27 अप्रैल को समाप्त हो रहा है, इसी तरह अन्य नगर निकायों के कार्यकाल भी इसी महीने 30 अप्रैल तक समाप्त हो जाएंगा. खास बात यह है कि चुनाव नहीं होने की वजह से इसका सीधा असर कामकाज पर पड़ेगा. अब आम जनता को जनप्रतिनिधियों के बजाय अधिकारियों के भरोसे रहना पड़ेगा.
बात यदि विकास कार्य की करें तो चुनाव नहीं होने की वजह से नगर निकाय क्षेत्र में 15वें वित्त आयोग के तहत झारखंड के लिए 3367 करोड़ रुपए की हुई अनुशंसा पर प्रभाव पड़ेगा. वित्तीय वर्ष 2021- 26 तक राज्य को 15वें वित्त आयोग ने अलग-अलग योजनाओं के लिए राशि का प्रावधान किया है, जिसके तहत स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए 2370 करोड़ रुपए, स्थानीय निकायों खासकर पंचायतों के लिए 6585 करोड़ रुपए, नगर निकायों के लिए 3367 करोड़ रुपए और आपदा प्रबंधन के लिए 3138 करोड़ रुपए दिए गए हैं. ऐसे में नगर निकायों के लिए जो अनुशंसा 3367 करोड़ की हुई है उस पर प्रभाव पड़ने की संभावना है.
निर्वाचित जनप्रतिनिधियों का नहीं बढा अब तक कार्यकालः नगर निकाय का कार्यकाल समाप्त होने को है लेकिन सरकार के द्वारा रांची सहित अन्य नगर निकायों में कामकाज कैसे चलेगा इसपर कोई निर्णय सरकार द्वारा नहीं लिया गया है. इस वजह से 30 अप्रैल के बाद शहरी क्षेत्र में तीसरी सरकार कैसे काम करेगी इस पर संशय उत्पन्न हो गया है. इधर रांची सहित जिन नगर निकायों का कार्यकाल खत्म हो रहा है वहां के निर्वाचित पार्षद कार्यकाल बढ़ाने की मांग कर रहे हैं. हालांकि लाख कोशिशों के बाबजूद मुख्यमंत्री से नगर निगम के निर्वाचित जनप्रतिनिधि मिल नहीं सके.
रांची नगर निगम के उपमहापौर संजीव विजयवर्गीय ने सरकार की उदासीन रवैये पर नाराजगी जताते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पिछड़ा वर्ग का आरक्षण निर्धारित करने के लिए सरकार को ट्रिपल टेस्ट करा कर चुनाव ससमय करा लेना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हो सका, यही वजह है कि आज नगर निगम के जनप्रतिनिधियों का कार्यकाल खत्म होने के बाद जनता को भारी परेशानी का सामना करना होगा. इधर वार्ड 35 के पार्षद झरी लिंडा का मानना है कि जब मुख्यमंत्री निर्वाचित जनप्रतिनिधि से नहीं मिलेंगे तो जनता से मिलना तो दूर की बात है.
बहरहाल नगर निगम के माध्यम से जन्म मृत्यु प्रमाण पत्र से लेकर कई छोटे बड़े काम आम जनता के होते हैं जो अधिकारी नहीं बल्कि जनप्रतिनिधि ही करवा सकते हैं. ऐसे में सरकार यदि ससमय चुनाव करा लेती तो यह समस्या नहीं उत्पन्न होता.