रांची: पिछले तीन वर्षों के दौरान झारखंड और केंद्र सरकार के रिश्तों में तल्खियां पैदा हुई हैं (Tensions between Jharkhand and Central Government), उसमें आने वाले साल 2023 में भी कमी के आसार नहीं दिख रहे. 2022 की बात करें तो झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपनी सरकार को महफूज रखने के लिए कमोबेश पूरे साल कानून से लेकर सियासत के मोर्चे पर कई मुश्किलों से जूझते हुए दिखे, लेकिन इन सबके बीच वह केंद्र की सरकार पर लगातार हमलावर रहे.
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विधानसभा से लेकर जनसभाओं तक और सोशल मीडिया से लेकर सरकारी बैठकों तक में हेमंत सोरेन केंद्र पर झारखंड के साथ सौतेले सलूक और हकमारी का आरोप लगाते रहे हैं. राज्य सरकार और राज्य में केंद्र सरकार के प्रतिनिधि यानी राज्यपाल के बीच टकराव के हालात बार-बार पैदा होते रहे. राज्यपाल ने भी राज्य सरकार के कामकाज और निर्णयों पर कई बार न सिर्फ विरोध दर्ज किया, बल्कि केंद्र सरकार और उसकी एजेंसियों तक राज्य की सरकार का 'चिट्ठा' भी पहुंचाया.
इस दिसंबर महीने में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने केंद्र सरकार को दो चिट्ठियां लिखीं. एक दिसंबर को लिखी गई पहली चिट्ठी सीधे प्रधानमंत्री को संबोधित थी, तो 14 दिसंबर को दूसरी चिट्ठी रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के नाम थी. चिट्ठियों का लहजा शिकायती तो था ही, इनमें कई तल्ख शब्दों का इस्तेमाल किया गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखी उनकी पहली चिट्ठी केंद्र सरकार के वन संरक्षण नियम 2022 पर आपत्तियों को लेकर थी. इस चिट्ठी को उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल पर पोस्ट करते हुए लिखा, 'मैंने फॉरेस्ट कंजर्वेशन रूल्स 2022 पर कड़ी आपत्ति और विरोध दर्ज कराते हुए माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है. ये रूल्स स्थानीय ग्राम सभाओं की शक्ति को निर्लज्जता पूर्वक कम करते हैं और लाखों लोगों, खास तौर वनवासी आदिवासियों के अधिकारों को उखाड़ फेंकते हैं.'
सीएम हेमंत सोरेन ने सोरेन ने पत्र में लिखा, 'नए नियम उन लोगों के अधिकारों को खत्म कर देंगे, जिन्होंने पीढ़ियों से जंगलों को अपना घर कहा है. विकास के नाम पर उनकी पारंपरिक जमीनें छीनी जा सकती हैं. नए नियमों से अब ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि एक बार फॉरेस्ट क्लीयरेंस मिलने के बाद बाकी सब औपचारिकता बनकर रह जाता है. वन भूमि के डायवर्जन में तेजी लाने के लिए राज्य सरकार पर केंद्र का अब और भी अधिक दबाव होगा.'
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ओर से केंद्र सरकार को 14 दिसंबर को लिखी गई दूसरी चिट्ठी रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को संबोधित थी. पत्र लिखने के साथ ही उन्होंने इसे ट्विटर हैंडल पर पोस्ट किया. इसमें उन्होंने कहा है, झारखंड में बड़े पैमाने पर अवैध माइनिंग और ट्रांसपोर्टेशन में रेलवे और इसके अफसरों की संलिप्तता है. इसकी जांच के लिए झारखंड सरकार ने एक हाई लेवल कमिटी के गठन का निर्णय लिया है. उन्होंने रेल मंत्री से कहा कि वे रेलवे के अफसरों को इस मामले की जांच के लिए बनाई गई कमेटी को सहयोग करने का निर्देश दें.
झारखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र के आखिरी दिन 23 दिसंबर को मुख्यमंत्री सोरेन ने लंबा समापन वक्तव्य दिया और पूरे भाषण के दौरान वह केंद्र की सरकार और भाजपा पर हमलावर रहे. उन्होंने महंगाई, डॉलर के मुकाबले रुपए में गिरावट, केंद्र की अग्निवीर योजना, आदिवासियों को लेकर केंद्र की नीतियों, ईडी की कार्रवाई, झारखंड को केंद्रीय मदद में कमी सहित अन्य मुद्दों पर तल्ख अंदाज में प्रहार किया.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में 17 दिसंबर को कोलकाता में पूर्वी क्षेत्रीय अंतरराज्यीय परिषद की बैठक आयोजित हुई थी. इसमें भी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विभिन्न कोयला कंपनियों पर लैंड कंपनसेशन और रॉयल्टी के मद में झारखंड के बकाया एक लाख 36 हजार करोड़ रुपए के भुगतान का मुद्दा उठाया. हेमंत सोरेन का दावा है कि राज्य में खनन का काम करने वाली कोयला कंपनियों सेंट्रल कोलफील्ड्स लि.(सीसीएल), भारत कोकिंग कोल लि. (बीसीसीएल) और ईस्टर्न कोलफील्ड्स लि. (ईसीएल) के पास राज्य सरकार के भूमि मुआवजे का एक लाख करोड़, सामान्य मद में 32 हजार करोड़ और धुले हुए कोयले की रॉयल्टी के एवज में 2900 करोड़ रुपए लंबे वक्त से बकाया हैं. वह बार-बार कहते हैं कि केंद्र सरकार ने झारखंड के हक की यह राशि रोक रखी है.
मई 2021 में, जब कोविड ने देश में हाहाकार मचा रखा था, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्राय: सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से टेलीफोन पर बात की थी. ऐसी ही एक बातचीत के बाद हेमंत सोरेन ने ट्वीट किया था, 'आज आदरणीय प्रधानमंत्री जी ने फोन किया. उन्होंने सिर्फ अपने मन की बात की. बेहतर होता यदि वो काम की बात करते और काम की बात सुनते.' हेमंत सोरेन के इस ट्वीट पर पूरे देश में बड़ी प्रतिक्रिया हुई थी.
झारखंड में अवैध खनन मामले में ईडी ने बीते नवंबर में जब हेमंत सोरेन को दो-दो समन भेजे तो उन्होंने इसे केंद्र सरकार के इशारे पर परेशान की जाने वाली कार्रवाई करार दिया. उन्होंने विधानसभा में अपने भाषण में प्रधानमंत्री को निशाने पर लेते हुए यहां तक कह दिया कि वे फोन पर धमकियां देने लगे हैं.
ये तल्खियां एकतरफा यानी सिर्फ मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की तरफ से नहीं हैं. केंद्र सरकार के मंत्री और भाजपा के कई बड़े नेता सोरेन सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप मढ़ते रहे हैं. बीते 22 नवंबर को गुमला में एक जनसभा को संबोधित करते हुए केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने यहां तक कहा कि कि हेमंत सरकार को धराशाई होने से कोई नहीं रोक सकता. उन्होंने सोरेन को आदिवासी विरोधी करार देते हुए कहा कि वे कभी भी आदिवासियों का भला नहीं चाहते हैं. अगर वे ऐसा चाहते तो राज्य में फॉरेस्ट राइट एक्ट को तत्क्षण यहां पर लागू करते और पंचायत और ग्राम सभा को उसके संवैधानिक अधिकार देते. मुंडा ने राज्य की हेमंत सरकार पर दलाल और बिचौलियों के साथ मिलकर झारखंड की खनिज संपदाओं को लूटने-लुटवाने का आरोप मढ़ा.
बीते एक दिसंबर को केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री अन्नपूर्णा देवी ने रांची में झारखंड की शैक्षणिक स्थिति की समीक्षा बैठक के बाद हेमंत सोरेन सरकार पर गंभीर आरोप मढ़े. उन्होंने कहा कि राज्य में प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर करीब 90 हजार शिक्षकों के पद खाली हैं और राज्य सरकार की इन रिक्तियों को भरने में कोई रुचि नहीं है. सस्ती लोकप्रियता और भावनाएं भुनाने के लिए नीतियां ऐसी बनाई जा रही हैं, जो संवैधानिक समीक्षा के दौरान या तो खारिज हो जा रही हैं या फिर इनकी वजह से बहालियां विवादित होकर लंबे समय तक अटकी रह जाती हैं.
झारखंड सरकार और केंद्र के बीच लगातार बढ़ते हुए टकराव में राजभवन भी एक अहम कड़ी है. राज्यपाल की भूमिका राज्य में केंद्र के प्रतिनिधि के तौर पर होती है. झारखंड में राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच अलग-अलग मुद्दों पर टकराव की स्थिति आज भी बनी हुई है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नाम पत्थर खदान की लीज के आवंटन के मामले को राज्यपाल रमेश बैस ने ही चुनाव आयोग तक पहुंचाया और इस प्रकरण में हेमंत सोरेन की सीएम की कुर्सी पर आज तक तलवार लटकी हुई है.
राज्यपाल ने सरकार के निर्णयों से लेकर सरकार की ओर से विधानसभा में पारित किए गए विधेयकों पर पिछले आठ-दस महीने में कई बार सवाल उठाये हैं. राज्य में जनजातीय सलाहकार परिषद (टीएसी) के गठन को लेकर राज्य सरकार द्वारा बनाई गई नियमावली पर वे लगातार आपत्ति उठा रहे हैं. वह इसे राज्यपाल के अधिकारों का अतिक्रमण बताते हुए केंद्र के पास शिकायत कर चुके हैं. इसके अलावा वे राज्य सरकार की ओर से विधानसभा में पारित एंटी मॉब लिंचिंग बिल, कृषि मंडी बिल सहित आधा दर्जन बिल अलग-अलग वजहों से लौटा चुके हैं. हालांकि इनमें से कुछ बिल राज्य सरकार ने दोबारा पारित कराए हैं.
कई विभागों के कामकाज के रिव्यू के दौरान राज्यपाल ने राज्य सरकार पर प्रतिकूल टिप्पणियां की हैं. विधि-व्यवस्था पर भी वह कई बार सवाल उठा चुके हैं. जाहिर है, आने वाले वर्ष में केंद्र-झारखंड के बीच टकराव में कई और चैप्टर जुड़ने वाले हैं.
--आईएएनएस