ETV Bharat / state

डिवाइस करेगा डिप्रेशन को डिटेक्ट, रांची के दो संस्थान ने बनाई तकनीक, मनोचिकित्सा के क्षेत्र में आ सकती है क्रांति

आप डिप्रेशन में हैं या नहीं अब तक इसके बारे सिर्फ मनोचिकित्सक ही बता पाते हैं. लेकिन अब रांची के दो प्रमुख संस्थान के तीन विशेषज्ञों ने एक तकनीक विकसित कर ली है जिससे यह पता चल सकेगा कि आप डिप्रेशन में हैं या नहीं. तकनीक का पेटेंट भी हो चुका है. अब बस इंतजार है डिवाइस बनने का. अगर यह सक्सेसफुल रहा तो मनोचिकित्सा के क्षेत्र में बड़ी क्रांति आ सकती है.

author img

By

Published : Aug 28, 2021, 6:05 AM IST

Updated : Aug 28, 2021, 10:17 PM IST

Device will detect depression
डिप्रेशन के बारे में बताने वाली मशीन

रांची: डिप्रेशन एक ऐसी मानसिक अवस्था है जिसकी वजह से लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं. किसी की कोई बात का चुभना, अचानक नौकरी से हाथ धोना, परीक्षा में अच्छा नंबर न आना, रातों रात रईस बनने की चाहत, प्यार में धोखा जैसे कुछ ऐसे हालात होते हैं जो इंसान को डिप्रेशन की ओर ले जाते हैं. इसका समय पर इलाज नहीं होने से पागलपन और मानसिक विक्षिप्तता जैसी गंभीर बीमारी हो सकती है. अफसोस कि इतनी तरक्की के बाद भी मेडिकल साइंस में अब तक इसको डिटेक्ट करने का कोई डिवाइस डेवलप नहीं हुआ है.

डिप्रेशन को डिटेक्ट करने के लिए मनोचिकित्सक पर निर्भर रहना पड़ता है. इस समस्या के समाधान की तरफ कदम बढ़ चुके हैं. रांची के दो प्रमुख संस्थान के तीन विशेषज्ञों ने एक तकनीक विकसित कर ली है. तकनीक का पेटेंट भी हो चुका है. अब बस इंतजार है डिवाइस बनने का. सीआईपी के डॉक्टर निशांत गोयल और बीआईटी मेसरा के कंप्यूटर साइंस विभाग की डॉ. संचिता पॉल, डॉ. शालिनी महतो और शची नंदन मोहंती की टीम ने एक तकनीक विकसित किया है. इस तकनीक के आधार पर डिवाइस बनने से डिप्रेशन को डिटेक्ट किया जा सकेगा. पूरे मसले पर हमारे ब्यूरो चीफ राजेश कुमार सिंह ने डॉ. निशांत गोयल से बात की. संस्थान के निदेशक डॉ. बी दास ने अपनी टीम की इस उपलब्धि की जमकर तारीफ की.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

अब तक नहीं बनी है कोई डिवाइस

डॉ. गोयल ने बताया कि अब तक साइकेट्रिक डिसऑर्डर का पता लगाने के लिए कोई मशीन या डिवाइस नहीं बनी है. इसकी जरूरत को समझते हुए सीआईपी के कॉग्निटिव न्यूरोसाइंस लैब ने साल 2018 से ही डिप्रेशन संबंधी डाटा का संकलन करना शुरू किया था. इस तकनीक को बायोमेडिकल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में आविष्कार के रूप में 13 अगस्त को पेटेंट की अनुमति मिल गई. फिर कंट्रोलर जनरल ऑफ पेटेंट्स, डिजाइन एंड ट्रेडमार्क ने आवेदन को मंजूरी भी दे दी है.

कैप या टोपी की तरह हो सकता है डिवाइस

डॉ निशांत गोयल ने बताया कि यह कंपनियों पर निर्भर करेगा कि वह डिवाइस को क्या शक्ल देंगी. लेकिन संभव है कि यह कैप यानी टोपी की तरह रहेगा. मैथेमेटिकल फॉर्मूले पर आधारित रिसर्च में यह बात सामने आई है कि अगर कोई व्यक्ति डिप्रेशन में होगा तो यह डिवाइस ब्रेन की एक्टिविटी को रिकॉर्ड कर यह तय करेगा कि संबंधित व्यक्ति डिप्रेशन में है या नहीं. डॉ. निशांत गोयल ने बताया कि इस दिशा में संभवत: भारत में ऐसा पहला रिसर्च हुआ है.

डॉ. निशांत गोयल से बात की ब्यूरो चीफ राजेश कुमार सिंह ने.

रांची के कांके स्थित केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान की राष्ट्रीय पहचान है. यहां देश के कोने-कोने से लोग इलाज के लिए आते हैं. संस्थान के निदेशक डॉ बी.दास ने बताया कि डॉ निशांत गोयल और बीआईटी की टीम ने डिप्रेशन को डिटेक्ट करने के लिए जो तकनीक बनायी है, अगर वह डिवाइस की शक्स ले लेती है तो मनोचिकित्सा के क्षेत्र में नई क्रांति का आगाज हो जाएगा. ऐसा इसलिए क्योंकि बदलते दौर में जीवन शैली बदल रही है. तनाव बढ़ रहा है जो बीमारियों को जन्म देता है.

रांची: डिप्रेशन एक ऐसी मानसिक अवस्था है जिसकी वजह से लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं. किसी की कोई बात का चुभना, अचानक नौकरी से हाथ धोना, परीक्षा में अच्छा नंबर न आना, रातों रात रईस बनने की चाहत, प्यार में धोखा जैसे कुछ ऐसे हालात होते हैं जो इंसान को डिप्रेशन की ओर ले जाते हैं. इसका समय पर इलाज नहीं होने से पागलपन और मानसिक विक्षिप्तता जैसी गंभीर बीमारी हो सकती है. अफसोस कि इतनी तरक्की के बाद भी मेडिकल साइंस में अब तक इसको डिटेक्ट करने का कोई डिवाइस डेवलप नहीं हुआ है.

डिप्रेशन को डिटेक्ट करने के लिए मनोचिकित्सक पर निर्भर रहना पड़ता है. इस समस्या के समाधान की तरफ कदम बढ़ चुके हैं. रांची के दो प्रमुख संस्थान के तीन विशेषज्ञों ने एक तकनीक विकसित कर ली है. तकनीक का पेटेंट भी हो चुका है. अब बस इंतजार है डिवाइस बनने का. सीआईपी के डॉक्टर निशांत गोयल और बीआईटी मेसरा के कंप्यूटर साइंस विभाग की डॉ. संचिता पॉल, डॉ. शालिनी महतो और शची नंदन मोहंती की टीम ने एक तकनीक विकसित किया है. इस तकनीक के आधार पर डिवाइस बनने से डिप्रेशन को डिटेक्ट किया जा सकेगा. पूरे मसले पर हमारे ब्यूरो चीफ राजेश कुमार सिंह ने डॉ. निशांत गोयल से बात की. संस्थान के निदेशक डॉ. बी दास ने अपनी टीम की इस उपलब्धि की जमकर तारीफ की.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

अब तक नहीं बनी है कोई डिवाइस

डॉ. गोयल ने बताया कि अब तक साइकेट्रिक डिसऑर्डर का पता लगाने के लिए कोई मशीन या डिवाइस नहीं बनी है. इसकी जरूरत को समझते हुए सीआईपी के कॉग्निटिव न्यूरोसाइंस लैब ने साल 2018 से ही डिप्रेशन संबंधी डाटा का संकलन करना शुरू किया था. इस तकनीक को बायोमेडिकल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में आविष्कार के रूप में 13 अगस्त को पेटेंट की अनुमति मिल गई. फिर कंट्रोलर जनरल ऑफ पेटेंट्स, डिजाइन एंड ट्रेडमार्क ने आवेदन को मंजूरी भी दे दी है.

कैप या टोपी की तरह हो सकता है डिवाइस

डॉ निशांत गोयल ने बताया कि यह कंपनियों पर निर्भर करेगा कि वह डिवाइस को क्या शक्ल देंगी. लेकिन संभव है कि यह कैप यानी टोपी की तरह रहेगा. मैथेमेटिकल फॉर्मूले पर आधारित रिसर्च में यह बात सामने आई है कि अगर कोई व्यक्ति डिप्रेशन में होगा तो यह डिवाइस ब्रेन की एक्टिविटी को रिकॉर्ड कर यह तय करेगा कि संबंधित व्यक्ति डिप्रेशन में है या नहीं. डॉ. निशांत गोयल ने बताया कि इस दिशा में संभवत: भारत में ऐसा पहला रिसर्च हुआ है.

डॉ. निशांत गोयल से बात की ब्यूरो चीफ राजेश कुमार सिंह ने.

रांची के कांके स्थित केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान की राष्ट्रीय पहचान है. यहां देश के कोने-कोने से लोग इलाज के लिए आते हैं. संस्थान के निदेशक डॉ बी.दास ने बताया कि डॉ निशांत गोयल और बीआईटी की टीम ने डिप्रेशन को डिटेक्ट करने के लिए जो तकनीक बनायी है, अगर वह डिवाइस की शक्स ले लेती है तो मनोचिकित्सा के क्षेत्र में नई क्रांति का आगाज हो जाएगा. ऐसा इसलिए क्योंकि बदलते दौर में जीवन शैली बदल रही है. तनाव बढ़ रहा है जो बीमारियों को जन्म देता है.

Last Updated : Aug 28, 2021, 10:17 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.