रांचीः कोरोना ने जब दस्तक दी तो दूसरे प्रदेशों में रोजी रोटी के लिए गए लोगों को अपनी माटी की याद आ गई. खासकर मजदूरों को. तब कसमें खाई गई कि अब परदेस नहीं जाएंगे और अपनी माटी में ही पसीना बहाएंगे. लेकिन चंद माह बीतते ही कसमें टूटने लगीं. लेकिन मुसीबत के इस दौर में भी उषा ने उम्मीद की डोर नहीं छोड़ी. राजधानी रांची की ओरमांझी प्रखंड के गंगुटोली में रहती है उषा. मारवाड़ी कॉलेज से 2017 में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद काम के लिए निकली तो उसे दिव्यांग कहकर सहानुभूति के तीखे शब्दों से नवाजा गया. उषा ने अपनी कमजोरी को हौसला बना लिया और खेती शुरू की.
उषा कुमारी ने कहा कि सरकार सभी को नौकरी नहीं दे सकती और निजी कंपनियों में दिव्यांगों के लिए ज्यादा मौके नहीं होते. इन बातों को सोच कर उसने खेती करना शुरू किया. रामटहल साहू की बेटी उषा की अब अपनी पहचान है. उषा अपने बूढ़े मां-बाप सहित चार भाई-बहनों के सहयोग से करीब डेढ़ एकड़ की जमीन लीज पर लेकर आधुनिक तरीके से सब्जियां उगाती है. गंगुटोली के हरीश चंद्र साहू ने कहा कि उषा गांव की शान है. उषा की वजह से गांव की महिलाएं भी खेती करने लगी हैं. इसी गांव की एक बुजुर्ग महिला नीलम देवी ने कहा कि वो अपना जुड़ा नहीं बांध पाती लेकिन जिस घर में जाएगी उस घर को तार देगी.
उषा कहती है कि पता नहीं लोग क्यों दो पैसे के लिए अपने घर-बार और खेत खलिहान छोड़कर दूसरे प्रदेश चले जाते हैं. ईश्वर ने उन्हें बचपन से ही एक हाथ नहीं दिया. जब वे खेती करके पैसे कमा सकती हैं फिर दूसरे क्यों नहीं. उषा की सोच और उसका जज्बा वाकई लोगों को राह दिखा रहा है. अगर आप ठान लें तो कुछ भी नामुमकिन नहीं.