रांचीः नेताजी सुभाष चंद्र बोस का झारखंड और झारखंड की राजधानी से गहरा नाता था. इतिहासकार कहते हैं नेताजी रांची में 4 से 5 दिन रुके थे और यहीं फोर्ड की कार से वह रामगढ़ में आयोजित अधिवेशन में जाते थे.
इतिहासकारों की मानें तो झारखंड और खासकर रांची नेताजी सुभाष चंद्र बोस की कर्मभूमि थी. नेताजी रांची में 4 से 5 दिन तक रुके भी थे और रांची से ही उन्होंने कई बार रणनीति भी अंग्रेजों के खिलाफ तैयार की थी. लालपुर निवासी फणींद्रनाथ के घर पर वे रुके थे और रामगढ़ में आयोजित अधिवेशन में भाग लेने और फोर्ड की एक कार में जाते थे.
नेताजी ने किया था समानांतर अधिवेशन
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कई बार कांग्रेस की नीतियों का विरोध किया था. उन्होंने इस संबंध में रामगढ़ में समानांतर अधिवेश भी आयोजित की थी. इस अवसर पर पूरे नगर में एक विशाल शोभायात्रा निकली थी. इसमें महंत धनराज पुरी, कैप्टन शाहनवाज खां, कैप्टन लक्ष्मी बाई सहगल, शीलभद्र जैसे दिग्गज लोग शामिल हुए थे. सुभाष चंद्र बोस रांची से रामगढ़ आए थे. नेताजी के साथ उनके निकट सलाहकार डॉ. यदु मुखर्जी और कई अन्य नेता भी थे.
सम्मेलन में स्थानीय नेता भी बड़ी संख्या में शामिल हुए. डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि हजारीबाग के रामनारायण सिंह की इच्छा थी कि कांग्रेस का अधिवेशन रामगढ़ में हो, इसलिए इस स्थल को चुना गया. राजा रामगढ़ ने इसे सफल बनाने में काफी सहयोग दिया था. केबी सहाय, सरस्वती देवी, सुखलाल सिंह, केशव प्रसाद सिंह समेत तमाम नेताओं ने इसमें सहयोग दिया.
रांची आने का सबसे बड़ा कारण था, रांची में बंगाली समाज के पढ़े-लिखे लोगों का होना. नेताजी जब रांची आते थे तो फणींद्रनाथ आयातकार के घर पर रहते थे. इसके अलावा वह सर्कुलर रोड में क्रांतिकारी यदु गोपाल मुखर्जी के यहां भी जाते थे. प्रोफेसर मोहित कुमार लाल की मानें तो रामगढ़ में 17 मार्च 1940 में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में वह भाग लेने सबसे पहले रांची पहुंचे थे. इसके लिए वह पहले चाईबासा आए फिर यहां से सड़क के रास्ते रामगढ़ गए थे और यह अधिवेशन बड़ा ही ऐतिहासिक हुआ था. नेताजी महात्मा गांधी के साथ मंच पर बैठे थे और अधिवेशन के बाद उन्होंने अपनी पार्टी की घोषणा की थी. 16 जनवरी 1941 की रात करीब 1:30 बजे अपना भेष बदलकर घर से निकले इसके बाद जर्मन वार्डन कार से जीटी रोड के रास्ते आसनसोल और वहां से धनबाद गए.
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वहां से नेताजी 17 जनवरी 1941 को बरारी में अपने भतीजे अशोक नाथ बोस के यहां गए, वहां कुछ देर रुकने के बाद अपने दोनों भतीजे और उनकी पत्नी के साथ स्टेशन गए. गोमो से नेताजी सुभाष चंद्र ने दिल्ली कालका मेल पकड़ी इसके बाद 18 जनवरी 1941 को दिल्ली से पेशावर जाने के लिए एक ट्रेन पकड़ी.
कोयला मजदूरों की बैठक में हुए थे शामिल
झारखंड के गोमो, झरिया और भागा से भी उनका गहरा नाता रहा है. झरिया और धनबाद के कुछ क्षेत्रों में उन्होंने कई बार कोयला मजदूरों के साथ बैठक भी की थी. ईटीवी भारत की टीम ने इतिहासकारों से नेताजी के झारखंड कनेक्शन के बारे में पूरी जानकारी हासिल की है. इस दौरान इतिहासकारों ने जो बताया वह वाकई झारखंड के लिए गौरव की बात है.
झारखंड के साथ नेताजी का यह गहरा नाता हम सभी के लिए एक गौरव है और हम नेताजी के झारखंड कनेक्शन को लेकर काफी रोमांचित भी होते हैं, क्योंकि नेताजी झारखंड और खासकर रांची से जो उनका नाता था यह वाकई रोमांचित करने वाला है.
अग्रेजों के शासन काल में नेताजी फणींद्रनाथ आयातकार के घर ठहरे थे. उस दौरान फणींद्रनाथ आयातकार को राजभवन से नोटिस भी दिया गया था. उस दौरान फनींद्रनाथ राजभवन के कामकाज देखते थे. उस दौरान राजभवन की ओर से उनका ठेका तक रद्द कर दिया गया था, लेकिन फणीन्द्र ने कहा था कि वह अपना काम छोड़ सकते हैं, लेकिन नेताजी का साथ मरते दम तक नहीं छोड़ेंगे. हमारे नेताजी ने कभी भी आजादी के साथ समझौता नहीं किया. युवाओं के प्रेरणा स्रोत नेताजी पूरे देश के साथ-साथ झारखंड के लिए भी प्रेरणा स्रोत हैं और झारखंड के युवा नेताजी को अपने दिल में सहेज कर रखते हैं.