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झारखंड के विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की कमी, दाखिला लेकर फंसे विद्यार्थी

झारखंड में विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की भारी कमी है. यहां के उच्च शिक्षण संस्थानों में दूसरी बुनियादी सुविधाओं की भी कमी है. इससे इस सत्र में दाखिला लेने वाले विद्यार्थी फंस गए हैं.

Students trapped due to shortage of teachers in Jharkhand universities
झारखंड के विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की कमी, दाखिला लेकर फंसे विद्यार्थी
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Published : Oct 25, 2021, 1:58 PM IST

Updated : Oct 25, 2021, 10:24 PM IST

रांचीः कोरोना महामारी ने राज्य के हजारों विद्यार्थियों को दोहरी मुसीबत में डाल दिया है. पहले ही कोरोना महामारी के चलते सेहत पर खतरा तो था ही विद्यार्थियों ने इससे बचने के लिए दूसरे राज्यों के बजाय राज्य के शिक्षण संस्थानों में ही दाखिला ले लिया. लेकिन अब ये विद्यार्थी फंस गए हैं, राज्य के विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों और मूलभूत सुविधाएं की कमी से ये खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें-बीजेपी अनुसूचित जनजाति मोर्चा की बैठक पर जेएमएम ने साधा निशाना, कहा- दोयम दर्जे की बंद करें राजनीति

गौरतलब है कि हर वर्ष हजारों विद्यार्थी दूसरे राज्यों के उच्च शिक्षण संस्थानों में दाखिला लेते थे. लेकिन कोरोना के खतरे के मद्देनजर इस सत्र में दूसरे राज्यों में पढ़ाई का ख्वाब देखने वाले विद्यार्थियों ने अपने ही राज्य के शिक्षण संस्थानों में नामांकन करा लिया, ताकि उनका सत्र बर्बाद ना हो. लेकिन सत्र बचाने का विद्यार्थियों का यह जतन उन पर काफी भारी पड़ा. यहां शिक्षकों और मूलभूत सुविधाओं की कमी से अब विद्यार्थी खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं. इससे पहले राज्य के 7 सरकारी विश्वविद्यालयों और विभिन्न निजी शिक्षण संस्थानों में ऐसे भी छात्र-छात्राओं ने दाखिला लिया था, जो दूसरे राज्यों के नामी शिक्षण संस्थानों से पढ़ाई का ख्वाब पाले बैठे थे. इससे यहां सीट भी कम पड़ गई थी.

देखें पूरी खबर
शिक्षकों की भारी कमीबता दें कि झारखंड में सात यूनिवर्सिटी हैं, जिनमें हर साल औसतन 40 से अधिक शिक्षक रिटायर हो रहे हैं. लेकिन 2008 के बाद अब तक शिक्षकों की नियुक्ति पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. इससे झारखंड में शिक्षकों की भारी कमी हो गई है, जिससे पठन-पाठन सही तरीके से नहीं हो पा रहा है. शिक्षक-छात्र अनुपात बिगड़ने से शैक्षणिक गुणवत्ता प्रभावित हो रही है. आलम यह है कि राज्य के विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर के रेगुलर पदों से ज्यादा बैकलॉग के पद खाली हैं. राज्य गठन के बाद एक ही बार शिक्षकों की नियुक्ति हुई है. इसके चलते राज्य के विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की कमी का सीधा असर छात्र-छात्राओं की पढ़ाई पर पड़ रहा है.ये है आंकड़ा

वर्ष 2018 तक के आंकड़ों के अनुसार विश्वविद्यालयों में सहायक प्राध्यापकों के 1,118 पद खाली हैं. रांची विश्वविद्यालय में 268, बिनोवा भावे विश्वविद्यालय में 155, सिदो कान्हू विश्वविद्यालय में 190, नीलांबर पीतांबर विश्वविद्यालय में 107 और कोल्हान विश्वविद्यालय में 364 सहायक प्राध्यापक के पद रिक्त हैं. डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय में 148 पद स्वीकृत हैं. इनमें 73 शिक्षक कार्यरत हैं और 75 पद अभी भी खाली हैं. इनमें 552 पद पर सीधी और 556 पर बैकलॉग की नियुक्ति की जानी है. हैरानी की बात यह है कि इन पदों के लिए नियुक्ति के प्रक्रिया 2 वर्ष से चल रही है. लेकिन अब तक जेपीएससी की ओर से इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया गया है. हमेशा कहा जाता है कि शिक्षकों की नियुक्ति होगी. लेकिन कब होगी इसका जवाब किसी के पास नहीं है.

रांचीः कोरोना महामारी ने राज्य के हजारों विद्यार्थियों को दोहरी मुसीबत में डाल दिया है. पहले ही कोरोना महामारी के चलते सेहत पर खतरा तो था ही विद्यार्थियों ने इससे बचने के लिए दूसरे राज्यों के बजाय राज्य के शिक्षण संस्थानों में ही दाखिला ले लिया. लेकिन अब ये विद्यार्थी फंस गए हैं, राज्य के विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों और मूलभूत सुविधाएं की कमी से ये खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं.

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गौरतलब है कि हर वर्ष हजारों विद्यार्थी दूसरे राज्यों के उच्च शिक्षण संस्थानों में दाखिला लेते थे. लेकिन कोरोना के खतरे के मद्देनजर इस सत्र में दूसरे राज्यों में पढ़ाई का ख्वाब देखने वाले विद्यार्थियों ने अपने ही राज्य के शिक्षण संस्थानों में नामांकन करा लिया, ताकि उनका सत्र बर्बाद ना हो. लेकिन सत्र बचाने का विद्यार्थियों का यह जतन उन पर काफी भारी पड़ा. यहां शिक्षकों और मूलभूत सुविधाओं की कमी से अब विद्यार्थी खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं. इससे पहले राज्य के 7 सरकारी विश्वविद्यालयों और विभिन्न निजी शिक्षण संस्थानों में ऐसे भी छात्र-छात्राओं ने दाखिला लिया था, जो दूसरे राज्यों के नामी शिक्षण संस्थानों से पढ़ाई का ख्वाब पाले बैठे थे. इससे यहां सीट भी कम पड़ गई थी.

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शिक्षकों की भारी कमीबता दें कि झारखंड में सात यूनिवर्सिटी हैं, जिनमें हर साल औसतन 40 से अधिक शिक्षक रिटायर हो रहे हैं. लेकिन 2008 के बाद अब तक शिक्षकों की नियुक्ति पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. इससे झारखंड में शिक्षकों की भारी कमी हो गई है, जिससे पठन-पाठन सही तरीके से नहीं हो पा रहा है. शिक्षक-छात्र अनुपात बिगड़ने से शैक्षणिक गुणवत्ता प्रभावित हो रही है. आलम यह है कि राज्य के विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर के रेगुलर पदों से ज्यादा बैकलॉग के पद खाली हैं. राज्य गठन के बाद एक ही बार शिक्षकों की नियुक्ति हुई है. इसके चलते राज्य के विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की कमी का सीधा असर छात्र-छात्राओं की पढ़ाई पर पड़ रहा है.ये है आंकड़ा

वर्ष 2018 तक के आंकड़ों के अनुसार विश्वविद्यालयों में सहायक प्राध्यापकों के 1,118 पद खाली हैं. रांची विश्वविद्यालय में 268, बिनोवा भावे विश्वविद्यालय में 155, सिदो कान्हू विश्वविद्यालय में 190, नीलांबर पीतांबर विश्वविद्यालय में 107 और कोल्हान विश्वविद्यालय में 364 सहायक प्राध्यापक के पद रिक्त हैं. डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय में 148 पद स्वीकृत हैं. इनमें 73 शिक्षक कार्यरत हैं और 75 पद अभी भी खाली हैं. इनमें 552 पद पर सीधी और 556 पर बैकलॉग की नियुक्ति की जानी है. हैरानी की बात यह है कि इन पदों के लिए नियुक्ति के प्रक्रिया 2 वर्ष से चल रही है. लेकिन अब तक जेपीएससी की ओर से इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया गया है. हमेशा कहा जाता है कि शिक्षकों की नियुक्ति होगी. लेकिन कब होगी इसका जवाब किसी के पास नहीं है.

Last Updated : Oct 25, 2021, 10:24 PM IST
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