रांची: झारखंड में प्रतियोगी परीक्षा के दौरान नकल करने और पेपर लीक करने वालों की अब खैर नहीं. झारखंड प्रतियोगी परीक्षा (भर्ती में अनुचित साधनों की रोकथाम व निवारण के उपाय) विधेयक, 2023 को राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने मंजूरी दे दी है.
सूत्रों के मुताबिक 22 नवंबर को ही राज्यपाल की स्वीकृति के बाद बिल की कॉपी सरकार को भेज दी गई थी. सबसे खास बात है कि इसी साल मॉनसून सत्र के दौरान पारित इस बिल पर भाजपा ने गंभीर सवाल खड़े किए थे. इसके विरोध में बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में भाजपा विधायकों का एक प्रतिनिधिमंडल 4 अगस्त को राज्यपाल से भी मिला था और आग्रह किया था कि यह बिल युवाओं और जनता के हित में नहीं है. यह काला कानून है. इसपर विचार करते हुए सरकार को जरुरी दिशा निर्देश दिया जाना चाहिए. खास बात है कि इस मसले पर प्रदेश भाजपा के कई नेताओं से प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की गई लेकिन प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी की व्यवस्तता का हवाला देकर किसी ने कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया.
भाजपा ने किन बिंदुओं पर उठाया था सवाल: भाजपा प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल को बताया था कि बिल की कंडिका 11(2) में प्रश्न पत्रों, उत्तर पत्रकों के संबंध में सवाल खड़े करने वाले परीक्षार्थी, प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया और जनप्रतिनिधियों के खिलाफ बिना प्रारंभिक जांच के प्राथमिकी दर्ज करने का प्रावधान है.
बिल की कंडिका 23(1) ( क)(ख) में ऐसे लोगों को बिना किसी वरीय पदाधिकारी के अनुमोदन के गिरफ्तार करने का प्रावधान है. ऐसी विसंगतियों पर भविष्य में भी कोई परीक्षार्थी आवाज नहीं उठा सके, इसके लिए कंडिका 13(1) में वैसे परीक्षार्थियों को 2 से 10 साल तक के लिए सभी प्रतियोगी परीक्षाओं से वंचित करने का प्रावधान है.
भाजपा ने इस बात पर भी सवाल उठाया था कि बिल की कंडिका 2(7) में परीक्षा संपन्न कराने वाले कर्मियों, परीक्षकों, पर्यवेक्षकों और उनके रिश्तेदारों, मित्रों के खिलाफ भी शिकायत दर्ज नहीं कराने का प्रावधान है. लिहाजा, यह राज्य सरकार की हिटलरशाही है.
कैसे पारित हुआ था यह बिल: मॉनसून सत्र के दौरान 3 अगस्त को झारखंड प्रतियोगी परीक्षा (भर्ती में अनुचित साधनों की रोकथाम व निवारण के उपाय) अधिनियम, 2023 पारित हुआ था. इस बिल के कई बिंदुओं पर भाजपा और आजसू ने मुख्य रूप सवाल खड़े किए थे. इसपर कई संशोधन प्रस्ताव भी आए थे. खासकर सजा की अवधि पर आपत्ति जतायी गयी थी. विधायकों का पक्ष सुनने के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने परीक्षार्थियों के लिए सजा की अवधि को कम करने पर अपनी सहमति जतायी थी.
सीएम ने कहा था कि जहां तीन साल सजा का प्रावधान है, वहां एक साल और जहां सात साल सजा का प्रावधान है, वहां तीन साल तक सजा दी जानी चाहिए. उनके सुझाव के बाद संशोधन कर बिल को पारित कराया गया था. इसके विरोध में भाजपा विधायकों ने वेल में आकर बिल की कॉपी फाड़ी थी. आजसू विधायक लंबोदर महतो ने कहा था कि छोटी गलती से परीक्षार्थी का जीवन बर्बाद हो जाएगा. भाजपा विधायक ने कहा था कि अब जेपीएससी और जेएसएससी की गड़बड़ी बताने पर भी कार्रवाई होगी. तब सीएम ने कहा था कि हमारे विपक्षी हमेशा ऐसी चीजों को काले चश्मे से ही देखते हैं.
बिल में सजा का क्या है प्रावधान: पहली बार परीक्षा को नकल करत पकड़े जाने पर एक साल की सजा और पांच लाख रु. का जुर्माना लगोगा, दूसरी बार नकल करते पकड़े जाने पर परीक्षार्थी को तीन साल की सजा और 10 लाख का जुर्माना लगेगा. कोई व्यक्ति, प्रिटिंग प्रेस, सेवा प्रदाता, परीक्षा कराने का प्रबंध तंत्र, परीक्षा सामग्री का परिवहन कराने वाला अगर इसमें शामिल होता है तो धारा 2(छ)(2) के तहत 10 साल से आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है. इसके अलावा 2 करोड़ रु. से 10 करोड़ रु. तक का आर्थिक दंड लगाया जा सकेगा. साथ ही जुर्माना नहीं भरने पर तीन साल की अतिरिक्त सजा होगी.
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