रांची: झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनने के बाद से ही जनजातीय समाज के संबंध में जानने की उत्सुकता लोगों में बढ़ी है. हालांकि हमेशा से ही आदिवासी समाज में महिलाओं को खुद उनके समाज द्वारा विशेष महत्व दिया जाता रहा है. आदिवासी बहुल क्षेत्र झारखंड की बात करें तो यहां जनजातीय समुदाय ने बेटियों को हमेशा ही महत्व दिया गया है. झारखंड में आदिवासी समाज में लिंगानुपात अन्य आदिवासी राज्यों की तुलना में काफी बेहतर है.
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आदिवासी समाज किसी भी काम को बेहतर तरीके से करते हैं. ईमानदारी से काम करना उनके जीवन का एक अंग है. झारखंड गठन के बाद आदिवासी समाज की स्थिति इस राज्य में पहले की अपेक्षा बेहतर है. यह समाज और संस्कृति हमारे देश में जितने प्राचीन हैं. उतने ही प्राचीन इस समाज की परंपरा और आदिवासी महिलाओं को समाज के अंदर महत्व देना भी है. हमेशा से ही समाज महिलाओं को महत्व देता आ रहा है. आप कह सकते है की झारखंड में इस समाज की महिलाएं श्रेष्ठ हैं.
यहां पुरुषों की तुलना में महिलाओं का मान महत्व अधिक है. सबसे बड़ी बात यह है कि देश के लिंगानुपात यानी प्रति 1000 पुरुषों पर 943 महिलाएं हैं. जबकि झारखंड का लिंगानुपात यानी प्रति 1000 पुरुषों पर 947 महिला है. जनजातीय समाज में लिंगानुपात की यह तस्वीर काफी बेहतर है. यहां प्रति एक हजार पुरुषों पर महिलाएं 1003 है. जो आदिवासी समाज में बेटियों के महत्व और उनके आदर को दर्शाता है.
शोधार्थियों की मानें तो इस समाज के लोग कभी भी भ्रूण हत्या नहीं करते हैं. अगर उनके घर में बेटियों का जन्म होता है. तो उत्सव का माहौल होता है. एक तरफ जहां देश के कई राज्यों में लिंगानुपात कम हो रहा है. वहीं झारखंड में जनजातीय लिंगानुपात इसी अनुपात में स्थिर है. वहीं आर्थिक स्थिति के बारे में बात करें तो अन्य आदिवासी राज्यों की तुलना में यहां की स्थिति उन राज्यों से बेहतर है. राज्य की 86.45 लाख जनजातीय आबादी में महज 3.38 फीसदी लोग आर्थिक रूप से कमजोर हैं. करीब 97 फीसदी आबादी आर्थिक रूप से सबल है.
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झारखंड के रामदयाल मुंडा ट्राईबल रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कुल 705 जनजातियां अधिसूचित हैं, जिनमें 32 झारखंड में ही रहती है. झारखंड के 13 जिले पांचवीं अनुसूचित क्षेत्र में आते हैं. सभी जनजातीय समुदायों की अपनी अपनी पारंपरिक शासन व्यवस्था है. झारखंड में जनजातियों की साक्षरता दर भी बेहतर है. इस समाज के कुल साक्षरता दर 57.3% है. इसमें सिर्फ महिला साक्षरता दर 46.2 फीसदी है.
आज झारखंड की आदिवासी समाज की महिलाएं शिक्षा, खेल, स्वास्थ्य, प्रशासनिक सेवा समेत कई क्षेत्रों में बेहतर कर रही है. खेल के क्षेत्र में कई अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी विश्व पटल पर हैं. तो वहीं प्रशासनिक क्षेत्र में भी आदिवासी महिलाओं का परचम देखा जा सकता है. आदिवासी समाज की महिलाएं झारखंड गठन के बाद जनप्रतिनिधि के रूप में भी अपनी महती भूमिका निभा रही है. इस सरकार में भी शहरी निकाय, पंचयात, जिला परिषद में आरक्षण का प्रावधान रखने के बाद इस समाज की महिलाएं उभरकर सामने आ रही है. अब तो समाज की महिलाओं का धमक विधानसभा से लेकर लोकसभा तक देखने को मिल रही है.