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नवरात्रि पर घर-घर पूजी जाने वाली कन्याओं का हाल झारखंड में नहीं है अच्छा, देखें आंकड़े

नवरात्रि पर घर-घर पूजी जाने वाली कन्याओं का हाल अच्छा नहीं है. राष्ट्रीय फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (National Family Health Survey) की रिपोर्ट से झारखंड में लड़कियों की स्थिति (Status of Girls in Jharkhand) का पता चलता है.

Status of Girls in Jharkhand
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Published : Oct 3, 2022, 3:35 PM IST

रांची: नवरात्रि की नवमी तिथि पर मंगलवार को झारखंड में घर-घर कन्याएं पूजी जायेंगी, लेकिन जमीनी तौर पर देखें तो राज्य में कन्याओं का हाल (Status of Girls in Jharkhand) अच्छा नहीं है. खेलने-पढ़ने की उम्र में ही लड़कियों पर गृहस्थी और मातृत्व का बोझ डाल दिया जा रहा है. जनगणना से लेकर एनएफएचएस (नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे) तक के आंकड़े इसकी गवाही देते हैं.

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राष्ट्रीय फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (National Family Health Survey) की वर्ष 2020-21 की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 32.2 फीसदी मामले बाल विवाह को लेकर दर्ज किए गए हैं. यानी यहां हर दस में से तीन लड़की बालपन में ब्याह दी जा रही है. राज्य में लड़कियों की खराब सेहत, खास तौर पर उनमें खून की कमी की बीमारी एनीमिया गंभीर चिंता का विषय है. वर्ष 2015-2016 में आये एनएफएचएस-4 के सर्वे में राज्य में बाल विवाह का आंकड़ा 37.9 फीसदी था. 2020-21 में चार सालों के अंतराल में इसमें करीब पांच फीसदी की गिरावट जरूर दर्ज की गई है, लेकिन राज्य सरकार से लेकर बाल संरक्षण आयोग तक ने बाल विवाह को चिंता का विषय माना है.

एनएफएचएस की रिपोर्ट (NFHS Report) के मुताबिक पूरे देश में बाल विवाह के मामले में झारखंड का तीसरा स्थान है. चिंताजनक तथ्य यह भी है कि राज्य में बाल विवाह की ऊंची दर के बावजूद पुलिस में इसकी शिकायतें बहुत कम पहुंचती हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में साल 2019 में तीन, साल 2020 में तीन और साल 2021 में बाल विवाह के चार मामले दर्ज किए गए. जाहिर है कि 99 फीसदी से ज्यादा बाल विवाह के मामलों की रिपोर्ट पुलिस-प्रशासन में नहीं पहुंच पाती.

हाल में न्यूयॉर्क में यूएन की ओर से बाल अधिकारों पर आयोजित इंटरनेशनल समिट में भारत का प्रतिनिधित्व करके लौटी झारखंड के कोडरमा जिले की काजल कुमारी कहती है कि ग्रामीण इलाकों में लड़कियों की उच्च शिक्षा के लिए उचित व्यवस्था न होना बाल विवाह की एक बड़ी वजह है. मिडिल या हाई स्कूल के बाद पढ़ाई रुकते ही गांवों के लोग लड़कियों की शादी की तैयारी में जुट जाते हैं. काजल कुमारी ने जिले में अब तक तीन बाल विवाह रुकवाये हैं. इसमें दो तो उसकी सहेलियां ही थीं, जिन्हें लेकर वह पुलिस के पास पहुंच गई थी.

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राज्य में लिंगानुपात में भी लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है. एनएफएचएस-5 के आंकड़ों के मुताबिक 2020-21 में पांच साल से नीचे के बच्चों का लिंगानुपात 899 है, जबकि चार साल पहले के एनएफएचएस-4 आंकड़ों के मुताबिक प्रति 1000 पर 919 लड़कियां थीं.

साल 2011 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में एक दशक में 3 लाख 58 हजार 64 बाल विवाह हुए थे. यह आंकड़ा पूरे देश के बाल विवाह का लगभग 3 प्रतिशत था. जनगणना रिपोर्ट के अनुसार बाल विवाह के मामले में देशभर में झारखंड का 11वां स्थान था. हालांकि एनएफएचएस के आंकड़ों के अनुसार बाल विवाह के मामले में झारखंड तीसरे नंबर पर है.

झारखंड की लड़कियां खून की कमी की समस्या से भी जूझ रही हैं. एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 15 से 19 साल की उम्र तक की लड़कियों में 65.8 प्रतिशत ऐसी हैं, जो खून की कमी की बीमारी एनीमिया से पीड़ित हैं. एनएफएचएस-4 में इस आयु वर्ग की 65 प्रतिशत किशोरियां एनीमिक थीं. यानी चार साल में लड़कियों की सेहत में और गिरावट दर्ज की गई.

रांची: नवरात्रि की नवमी तिथि पर मंगलवार को झारखंड में घर-घर कन्याएं पूजी जायेंगी, लेकिन जमीनी तौर पर देखें तो राज्य में कन्याओं का हाल (Status of Girls in Jharkhand) अच्छा नहीं है. खेलने-पढ़ने की उम्र में ही लड़कियों पर गृहस्थी और मातृत्व का बोझ डाल दिया जा रहा है. जनगणना से लेकर एनएफएचएस (नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे) तक के आंकड़े इसकी गवाही देते हैं.

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राष्ट्रीय फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (National Family Health Survey) की वर्ष 2020-21 की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 32.2 फीसदी मामले बाल विवाह को लेकर दर्ज किए गए हैं. यानी यहां हर दस में से तीन लड़की बालपन में ब्याह दी जा रही है. राज्य में लड़कियों की खराब सेहत, खास तौर पर उनमें खून की कमी की बीमारी एनीमिया गंभीर चिंता का विषय है. वर्ष 2015-2016 में आये एनएफएचएस-4 के सर्वे में राज्य में बाल विवाह का आंकड़ा 37.9 फीसदी था. 2020-21 में चार सालों के अंतराल में इसमें करीब पांच फीसदी की गिरावट जरूर दर्ज की गई है, लेकिन राज्य सरकार से लेकर बाल संरक्षण आयोग तक ने बाल विवाह को चिंता का विषय माना है.

एनएफएचएस की रिपोर्ट (NFHS Report) के मुताबिक पूरे देश में बाल विवाह के मामले में झारखंड का तीसरा स्थान है. चिंताजनक तथ्य यह भी है कि राज्य में बाल विवाह की ऊंची दर के बावजूद पुलिस में इसकी शिकायतें बहुत कम पहुंचती हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में साल 2019 में तीन, साल 2020 में तीन और साल 2021 में बाल विवाह के चार मामले दर्ज किए गए. जाहिर है कि 99 फीसदी से ज्यादा बाल विवाह के मामलों की रिपोर्ट पुलिस-प्रशासन में नहीं पहुंच पाती.

हाल में न्यूयॉर्क में यूएन की ओर से बाल अधिकारों पर आयोजित इंटरनेशनल समिट में भारत का प्रतिनिधित्व करके लौटी झारखंड के कोडरमा जिले की काजल कुमारी कहती है कि ग्रामीण इलाकों में लड़कियों की उच्च शिक्षा के लिए उचित व्यवस्था न होना बाल विवाह की एक बड़ी वजह है. मिडिल या हाई स्कूल के बाद पढ़ाई रुकते ही गांवों के लोग लड़कियों की शादी की तैयारी में जुट जाते हैं. काजल कुमारी ने जिले में अब तक तीन बाल विवाह रुकवाये हैं. इसमें दो तो उसकी सहेलियां ही थीं, जिन्हें लेकर वह पुलिस के पास पहुंच गई थी.

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राज्य में लिंगानुपात में भी लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है. एनएफएचएस-5 के आंकड़ों के मुताबिक 2020-21 में पांच साल से नीचे के बच्चों का लिंगानुपात 899 है, जबकि चार साल पहले के एनएफएचएस-4 आंकड़ों के मुताबिक प्रति 1000 पर 919 लड़कियां थीं.

साल 2011 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में एक दशक में 3 लाख 58 हजार 64 बाल विवाह हुए थे. यह आंकड़ा पूरे देश के बाल विवाह का लगभग 3 प्रतिशत था. जनगणना रिपोर्ट के अनुसार बाल विवाह के मामले में देशभर में झारखंड का 11वां स्थान था. हालांकि एनएफएचएस के आंकड़ों के अनुसार बाल विवाह के मामले में झारखंड तीसरे नंबर पर है.

झारखंड की लड़कियां खून की कमी की समस्या से भी जूझ रही हैं. एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 15 से 19 साल की उम्र तक की लड़कियों में 65.8 प्रतिशत ऐसी हैं, जो खून की कमी की बीमारी एनीमिया से पीड़ित हैं. एनएफएचएस-4 में इस आयु वर्ग की 65 प्रतिशत किशोरियां एनीमिक थीं. यानी चार साल में लड़कियों की सेहत में और गिरावट दर्ज की गई.

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