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विश्व बाल श्रम दिवस पर विशेषः झारखंड में एक बार फिर एक्टिव हुए मानव तस्कर, निशाने पर बच्चे

आज विश्व बाल श्रम निषेध दिवस है. बाल मजदूरी के प्रति विरोध एवं जागरूकता लाने के लिए 12 जून को यह मनाया जाता है. दुनिया भर में बाल मजदूरी एक अभिशाप बन चुकी है. झारखंड में भी बड़े पैमाने पर बाल मजदूरी के आंकड़े चौकाने वाले हैं. राज्य में यह घिनौना कारोबार लंबे समय से बदस्तूर जारी है.

एक्टिव हुए मानव तस्कर
एक्टिव हुए मानव तस्कर
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Published : Jun 12, 2020, 10:44 AM IST

Updated : Jun 12, 2020, 2:29 PM IST

रांची: कोरोना महामारी के चलते देश भर में लगे लॉकडाउन के दौरान बाल मजदूरों के खिलाफ उत्पीड़न और हिंसा के मामलों में इजाफा हुआ है. मानव व्यापार को लेकर पहले से ही देश भर में बदनाम झारखंड में भी बाल मजदूरों के उत्पीड़न की कई मामले सामने आए हैं.

एक्टिव हुए मानव तस्कर

चाइल्ड हेल्पलाइन पर लगातार आ रहीं शिकायतें यह साबित कर रही हैं कि लॉकडाउन की अवधि में न सिर्फ महिलाओं बल्कि बच्चों के खिलाफ भी अत्याचार बढ़ा है.

बाल मजदूरी के प्रति विरोध और जागरूकता फैलाने के मकसद से हर वर्ष 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाता है. बाल श्रम को लेकर देश में कड़े कानून भी हैं लेकिन इस कानून का असर कहीं दिखाई नहीं पड़ता है. देशभर में झारखंड मानव तस्करी को लेकर बदनाम है. घरेलू काम , ऑर्गन ट्रैफिकिंग से लेकर जिस्म के बाजार तक झारखंड के बच्चों को पहुंचने का काम सालों से मानव तस्कर के जरिए हो रहा है.

सीडब्ल्यूसी की टीम सक्रिय

इस मामले में पुलिस और दूसरी संस्थाओं से मिली जानकारी के बाद सीडब्ल्यूसी की टीम एक्टिव है. सीडब्ल्यूसी के अनुसार कोरोना वायरस के बीच बच्चों की बरामदगी हुई है, जो काफी चौकाने वाली है. उनके अनुसार जिन बच्चों को रेस्क्यू किया जा रहा है उन्हें कहां रखा जाए यह एक बहुत बड़ी समस्या है, क्योंकि यह बच्चे कहीं कोरोना वायरस से प्रभावित तो नहीं है इसकी जांच बेहद जरूरी हो जाती है.

ऐसे में बिना जांच इन बच्चों को उन बच्चों के साथ रखना काफी मुश्किल होता है जो पहले से आश्रय घरों में रह रहे हैं. तनुश्री सरकार के अनुसार इस मामले को लेकर फिलहाल अस्थाई तौर पर एक सेंटर को ही बच्चों को रखने के लिए तैयार किया गया है. यहां लॉकडाउन के दौरान अपने घर से या फिर बतौर बाल मजदूर काम करने वाले ऐसे बच्चे जो प्रताड़ना से तंग आकर उन घरों से भाग आए हैं उन्हें आश्रय दिया गया है.

यहां लॉकडाउन के दौरान अपने घर से या फिर बतौर बाल मजदूर काम करने वाले ऐसे बच्चे जो प्रताड़ना से तंग आकर उन घरों से भाग आए हैं उन्हें आश्रय दिया गया है.यहां लॉकडाउन के दौरान अपने घर से या फिर बतौर बाल मजदूर काम करने वाले ऐसे बच्चे जो प्रताड़ना से तंग आकर उन घरों से भाग आए हैं उन्हें आश्रय दिया गया है.

हिडन ट्रेड है मानव तस्करी, आंकड़े नहीं मिलते

झारखंड और पश्चिम बंगाल में मानव तस्करी के खिलाफ सालों से काम कर रहीं अनन्या चक्रवर्ती बताती हैं कि मानव तस्करी के आंकड़े कभी भी सटीक नहीं मिल पाते हैं, क्योंकि अधिकांश मामले पुलिस तक पहुंचते ही नहीं है और जो पहुंचते हैं उन्हीं का आंकड़ा मिल पाता है.

अनन्या के अनुसार मानव तस्करी या फिर बाल मजदूरी के पीछे कहीं ना कहीं सामाजिक कारण ही जिम्मेदार होते हैं. अनन्या के अनुसार कई मामलों में सौतेले मां बाप की वजह से भी बच्चे मानव तस्करों के शिकार हो जाते हैं. वहीं कई मामलों में घर में होने वाले अक्सर लड़ाई झगड़े से परेशान होकर बच्चे फरार हो जाते हैं और फिर मानव तस्करों के चक्कर में फंस जाते हैं.

कानून से खिलवाड़ करते हैं मानव तस्कर

लॉकडाउन से बड़ी संख्या में झारखंड के प्रवासी मजदूर अपने घर लौट आए, लेकिन आंकड़ों की मानें तो इनमें बाल मजदूरों की संख्या न के बराबर है. कहीं से भी झारखंड के बाल मजदूरों के लौटने की सूचना नहीं मिली है. रिपोर्ट की मानें तो लॉकडाउन की वजह से हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई को लेकर बाल तस्करी और बाल श्रम का खतरा बेहद बढ़ गया है.

माना जा रहा है कि झारखंड के बाल मजदूरों को वापस उनके घरों तक लौटने नहीं दिया गया क्योंकि जब लॉकडाउन पूरी तरह से खत्म होगा और फैक्ट्रियों में काम शुरू होगा तब इन्हीं बाल मजदूरों को कम मजदूरी देकर फैक्ट्री मालिक अपने नुकसान की भरपाई करेंगे.

इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक मामला भी दायर किया गया है, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में सरकार से रिपोर्ट मांगी है. बाल संरक्षण अधिकार की पूर्व अध्यक्ष आरती कुजूर के अनुसार झारखंड में लॉकडाउन डाउन की वजह से थोड़ी बहुत मानव तस्करी रुकी थी, लेकिन अब मानव तस्कर एक्टिवेट हो चुके हैं और लॉकडाउन के बाद भी एक बार फिर से बच्चों को तस्करी के माध्यम से बाहर ले जाएंगे. ऐसे में जरूरी है कि इस पर नजर रखी जाए और इसको लेकर जरूरी कार्रवाई की जाए.

टारगेट पर है बाल मजदूर

इसी बीच मानव तस्करों के एक्टिव होने की सूचना सीआईडी की टीम को भी मिली है. मिली जानकारी के अनुसार लॉकडाउन से परेशान कुछ परिवार वालों को मानव तस्करों ने पैसे भी एडवांस में दिए गए हैं और उनसे यह वादा किया जा रहा है कि लॉकडाउन पूरी तरह से हटने पर उनके बच्चों को काम पर लगवा देंगे.जानकारी मिली है कि बड़े फैक्ट्री मालिक भी बाल मजदूरों को लाने के लिए मानव तस्करों की मदद ले रहे हैं.

लॉकडाउन के बाद एक्टिव हुए मानव तस्कर

झारखंड में मानव तस्करी और पलायन बहुत बड़ी समस्या है. हर वर्ष झारखंड से हजारों बच्चों को मानव तस्कर अपने चंगुल में फंसाकर बड़े शहरों में ले जाकर उन्हें बेच देते हैं. हालांकि लॉकडाउन के बीच एक अच्छी खबर यह भी आई थी कि कोरोना की वजह से मानव तस्करी पर एक हद तक रोक लग गई.

झारखंड से दिल्ली, मुंबई जैसी जगहों पर काम दिलाने के बहाने दलालों के हाथों बेचे जाने वाली लड़कियों का धंधा फिलहाल बंद है, लेकिन जानकारों की मानें तो दलाल अब मौके की तलाश में हैं क्योंकि लॉकडाउन के बाद मिली छूट में अब कई शहरों के लिए आवागमन के साधन उपलब्ध हो गए हैं. ऐसे में मानव तस्कर गरीब परिवारों पर नजर टिकाए हुए हैं.

वे चोरी-छिपे उन परिवारों की मदद कर रहे हैं ताकि उन्हें अपने झांसे में ले सकें. दलाल इस फिराक में है कि जब लॉकडाउन पूरी तरह से खत्म हो तब वह इन गरीब परिवारों की मजबूरी का फायदा उठाते हुए उनके बच्चों को एक बार फिर से तस्करी के लिए बड़े शहर ले जाएं.

रांची के सीनियर एसपी अनीश गुप्ता इस मामले को लेकर काफी गंभीर हैं. एसएसपी के अनुसार राजधानी रांची के चिन्हित इलाकों में काम करने वाले मानव तस्करों पर नजर रखी जा रही है. इसके अलावा रेलवे स्टेशन और अंतर जिला आने-जाने वाले वाहनों पर भी विशेष नजर रखी जा रही है.

आज विश्व बाल श्रम निषेध दिवस है. बाल मजदूरी के प्रति जागरुक करने के लिए मनाया जाता है. दुनिया भर में बाल मजदूरी एक कड़बी सच्चाई है. झारखंड भी इससे अछूता नहीं है. राज्य में बड़े पैमाने पर बच्चों की तस्करी कर उन्हें बाल मजदूरी के दलदल में धकेल दिया जाता है. सीडब्ल्यूसी की सदस्य तनुश्री सरकार के अनुसार कोरोना महामारी की इस विषम परिस्थिति में घरेलू हिंसा से परेशान होकर कई बाल मजदूर अपने कथित मालिक के घरों से फरार होकर अकेले घूमते पाए गए हैं.

यह भी पढ़ेंः गुरुवार को राज्य में मिले 48 कोरोना पॉजिटिव, झारखंड में अब कोविड-19 के कुल 1599 मरीज

मानव तस्करी के खिलाफ सालों से काम कर रहीं अनन्या चक्रवर्ती के अनुसार मानव तस्करी के अधिकांश मामलों का खुलासा नहीं पाता है. पुलिस को इस संबंध में जानकारी ही नहीं मिल पाती है, जिससे अधिकतर मामले दब जाते हैं और जो मामले सामने आते हैं वे बहुत कम होते हैं.

राज्य में बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर अपने घर लौटे हैं, लेकिन बाल मजदूर नहीं देखे गए, जो चिंतातनक है. बाल मजदूरों के लौटने की सूचना नहीं है. बाल संरक्षण अधिकार की पूर्व अध्यक्ष आरती कुजूर के अनुसार झारखंड में लॉकडाउन के चलते मानव तस्करी में कमी आई थी, लेकिन अब मानव तस्कर चारों ओर सक्रिय हैं.

बाल तस्करी को लेकर पुलिस सतर्क है. मानव तस्करों के सक्रिय होने के बाद सीआईडी विशेष अभियान चला रही है. इस संबंध में रांची के सीनियर एसपी अनीश गुप्ता ने कहा कि राजधानी में सक्रिय मानव तस्करों पर नजर है. साथ ही रेलवे स्टेशन और बाहर से आने-जाने वाले वाहनों की निगरानी की जा रही है.

देश दुनिया में बाल मजदूरी व तस्करी थमने का नाम नहीं ले रही है. भारत में साल दर साल इसके मामले बढ़ रहे हैं. झारखंड में गरीबी, बेरोजगारी आदि के चलते मानव तस्कर बच्चों को मौत के मुंह में झोंक रहे हैं. कहने को इसे रोकने के लिए कानून हैं, लेकिन इसके बाद भी देश में धड़ल्ले से बाल तस्करी हो रही है. इसे रोकने के लिए देश भर में व्यापक रणनीति बनानी होगी, तभी इस पर अंकुश लग सकता है.

रांची: कोरोना महामारी के चलते देश भर में लगे लॉकडाउन के दौरान बाल मजदूरों के खिलाफ उत्पीड़न और हिंसा के मामलों में इजाफा हुआ है. मानव व्यापार को लेकर पहले से ही देश भर में बदनाम झारखंड में भी बाल मजदूरों के उत्पीड़न की कई मामले सामने आए हैं.

एक्टिव हुए मानव तस्कर

चाइल्ड हेल्पलाइन पर लगातार आ रहीं शिकायतें यह साबित कर रही हैं कि लॉकडाउन की अवधि में न सिर्फ महिलाओं बल्कि बच्चों के खिलाफ भी अत्याचार बढ़ा है.

बाल मजदूरी के प्रति विरोध और जागरूकता फैलाने के मकसद से हर वर्ष 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाता है. बाल श्रम को लेकर देश में कड़े कानून भी हैं लेकिन इस कानून का असर कहीं दिखाई नहीं पड़ता है. देशभर में झारखंड मानव तस्करी को लेकर बदनाम है. घरेलू काम , ऑर्गन ट्रैफिकिंग से लेकर जिस्म के बाजार तक झारखंड के बच्चों को पहुंचने का काम सालों से मानव तस्कर के जरिए हो रहा है.

सीडब्ल्यूसी की टीम सक्रिय

इस मामले में पुलिस और दूसरी संस्थाओं से मिली जानकारी के बाद सीडब्ल्यूसी की टीम एक्टिव है. सीडब्ल्यूसी के अनुसार कोरोना वायरस के बीच बच्चों की बरामदगी हुई है, जो काफी चौकाने वाली है. उनके अनुसार जिन बच्चों को रेस्क्यू किया जा रहा है उन्हें कहां रखा जाए यह एक बहुत बड़ी समस्या है, क्योंकि यह बच्चे कहीं कोरोना वायरस से प्रभावित तो नहीं है इसकी जांच बेहद जरूरी हो जाती है.

ऐसे में बिना जांच इन बच्चों को उन बच्चों के साथ रखना काफी मुश्किल होता है जो पहले से आश्रय घरों में रह रहे हैं. तनुश्री सरकार के अनुसार इस मामले को लेकर फिलहाल अस्थाई तौर पर एक सेंटर को ही बच्चों को रखने के लिए तैयार किया गया है. यहां लॉकडाउन के दौरान अपने घर से या फिर बतौर बाल मजदूर काम करने वाले ऐसे बच्चे जो प्रताड़ना से तंग आकर उन घरों से भाग आए हैं उन्हें आश्रय दिया गया है.

यहां लॉकडाउन के दौरान अपने घर से या फिर बतौर बाल मजदूर काम करने वाले ऐसे बच्चे जो प्रताड़ना से तंग आकर उन घरों से भाग आए हैं उन्हें आश्रय दिया गया है.यहां लॉकडाउन के दौरान अपने घर से या फिर बतौर बाल मजदूर काम करने वाले ऐसे बच्चे जो प्रताड़ना से तंग आकर उन घरों से भाग आए हैं उन्हें आश्रय दिया गया है.

हिडन ट्रेड है मानव तस्करी, आंकड़े नहीं मिलते

झारखंड और पश्चिम बंगाल में मानव तस्करी के खिलाफ सालों से काम कर रहीं अनन्या चक्रवर्ती बताती हैं कि मानव तस्करी के आंकड़े कभी भी सटीक नहीं मिल पाते हैं, क्योंकि अधिकांश मामले पुलिस तक पहुंचते ही नहीं है और जो पहुंचते हैं उन्हीं का आंकड़ा मिल पाता है.

अनन्या के अनुसार मानव तस्करी या फिर बाल मजदूरी के पीछे कहीं ना कहीं सामाजिक कारण ही जिम्मेदार होते हैं. अनन्या के अनुसार कई मामलों में सौतेले मां बाप की वजह से भी बच्चे मानव तस्करों के शिकार हो जाते हैं. वहीं कई मामलों में घर में होने वाले अक्सर लड़ाई झगड़े से परेशान होकर बच्चे फरार हो जाते हैं और फिर मानव तस्करों के चक्कर में फंस जाते हैं.

कानून से खिलवाड़ करते हैं मानव तस्कर

लॉकडाउन से बड़ी संख्या में झारखंड के प्रवासी मजदूर अपने घर लौट आए, लेकिन आंकड़ों की मानें तो इनमें बाल मजदूरों की संख्या न के बराबर है. कहीं से भी झारखंड के बाल मजदूरों के लौटने की सूचना नहीं मिली है. रिपोर्ट की मानें तो लॉकडाउन की वजह से हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई को लेकर बाल तस्करी और बाल श्रम का खतरा बेहद बढ़ गया है.

माना जा रहा है कि झारखंड के बाल मजदूरों को वापस उनके घरों तक लौटने नहीं दिया गया क्योंकि जब लॉकडाउन पूरी तरह से खत्म होगा और फैक्ट्रियों में काम शुरू होगा तब इन्हीं बाल मजदूरों को कम मजदूरी देकर फैक्ट्री मालिक अपने नुकसान की भरपाई करेंगे.

इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक मामला भी दायर किया गया है, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में सरकार से रिपोर्ट मांगी है. बाल संरक्षण अधिकार की पूर्व अध्यक्ष आरती कुजूर के अनुसार झारखंड में लॉकडाउन डाउन की वजह से थोड़ी बहुत मानव तस्करी रुकी थी, लेकिन अब मानव तस्कर एक्टिवेट हो चुके हैं और लॉकडाउन के बाद भी एक बार फिर से बच्चों को तस्करी के माध्यम से बाहर ले जाएंगे. ऐसे में जरूरी है कि इस पर नजर रखी जाए और इसको लेकर जरूरी कार्रवाई की जाए.

टारगेट पर है बाल मजदूर

इसी बीच मानव तस्करों के एक्टिव होने की सूचना सीआईडी की टीम को भी मिली है. मिली जानकारी के अनुसार लॉकडाउन से परेशान कुछ परिवार वालों को मानव तस्करों ने पैसे भी एडवांस में दिए गए हैं और उनसे यह वादा किया जा रहा है कि लॉकडाउन पूरी तरह से हटने पर उनके बच्चों को काम पर लगवा देंगे.जानकारी मिली है कि बड़े फैक्ट्री मालिक भी बाल मजदूरों को लाने के लिए मानव तस्करों की मदद ले रहे हैं.

लॉकडाउन के बाद एक्टिव हुए मानव तस्कर

झारखंड में मानव तस्करी और पलायन बहुत बड़ी समस्या है. हर वर्ष झारखंड से हजारों बच्चों को मानव तस्कर अपने चंगुल में फंसाकर बड़े शहरों में ले जाकर उन्हें बेच देते हैं. हालांकि लॉकडाउन के बीच एक अच्छी खबर यह भी आई थी कि कोरोना की वजह से मानव तस्करी पर एक हद तक रोक लग गई.

झारखंड से दिल्ली, मुंबई जैसी जगहों पर काम दिलाने के बहाने दलालों के हाथों बेचे जाने वाली लड़कियों का धंधा फिलहाल बंद है, लेकिन जानकारों की मानें तो दलाल अब मौके की तलाश में हैं क्योंकि लॉकडाउन के बाद मिली छूट में अब कई शहरों के लिए आवागमन के साधन उपलब्ध हो गए हैं. ऐसे में मानव तस्कर गरीब परिवारों पर नजर टिकाए हुए हैं.

वे चोरी-छिपे उन परिवारों की मदद कर रहे हैं ताकि उन्हें अपने झांसे में ले सकें. दलाल इस फिराक में है कि जब लॉकडाउन पूरी तरह से खत्म हो तब वह इन गरीब परिवारों की मजबूरी का फायदा उठाते हुए उनके बच्चों को एक बार फिर से तस्करी के लिए बड़े शहर ले जाएं.

रांची के सीनियर एसपी अनीश गुप्ता इस मामले को लेकर काफी गंभीर हैं. एसएसपी के अनुसार राजधानी रांची के चिन्हित इलाकों में काम करने वाले मानव तस्करों पर नजर रखी जा रही है. इसके अलावा रेलवे स्टेशन और अंतर जिला आने-जाने वाले वाहनों पर भी विशेष नजर रखी जा रही है.

आज विश्व बाल श्रम निषेध दिवस है. बाल मजदूरी के प्रति जागरुक करने के लिए मनाया जाता है. दुनिया भर में बाल मजदूरी एक कड़बी सच्चाई है. झारखंड भी इससे अछूता नहीं है. राज्य में बड़े पैमाने पर बच्चों की तस्करी कर उन्हें बाल मजदूरी के दलदल में धकेल दिया जाता है. सीडब्ल्यूसी की सदस्य तनुश्री सरकार के अनुसार कोरोना महामारी की इस विषम परिस्थिति में घरेलू हिंसा से परेशान होकर कई बाल मजदूर अपने कथित मालिक के घरों से फरार होकर अकेले घूमते पाए गए हैं.

यह भी पढ़ेंः गुरुवार को राज्य में मिले 48 कोरोना पॉजिटिव, झारखंड में अब कोविड-19 के कुल 1599 मरीज

मानव तस्करी के खिलाफ सालों से काम कर रहीं अनन्या चक्रवर्ती के अनुसार मानव तस्करी के अधिकांश मामलों का खुलासा नहीं पाता है. पुलिस को इस संबंध में जानकारी ही नहीं मिल पाती है, जिससे अधिकतर मामले दब जाते हैं और जो मामले सामने आते हैं वे बहुत कम होते हैं.

राज्य में बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर अपने घर लौटे हैं, लेकिन बाल मजदूर नहीं देखे गए, जो चिंतातनक है. बाल मजदूरों के लौटने की सूचना नहीं है. बाल संरक्षण अधिकार की पूर्व अध्यक्ष आरती कुजूर के अनुसार झारखंड में लॉकडाउन के चलते मानव तस्करी में कमी आई थी, लेकिन अब मानव तस्कर चारों ओर सक्रिय हैं.

बाल तस्करी को लेकर पुलिस सतर्क है. मानव तस्करों के सक्रिय होने के बाद सीआईडी विशेष अभियान चला रही है. इस संबंध में रांची के सीनियर एसपी अनीश गुप्ता ने कहा कि राजधानी में सक्रिय मानव तस्करों पर नजर है. साथ ही रेलवे स्टेशन और बाहर से आने-जाने वाले वाहनों की निगरानी की जा रही है.

देश दुनिया में बाल मजदूरी व तस्करी थमने का नाम नहीं ले रही है. भारत में साल दर साल इसके मामले बढ़ रहे हैं. झारखंड में गरीबी, बेरोजगारी आदि के चलते मानव तस्कर बच्चों को मौत के मुंह में झोंक रहे हैं. कहने को इसे रोकने के लिए कानून हैं, लेकिन इसके बाद भी देश में धड़ल्ले से बाल तस्करी हो रही है. इसे रोकने के लिए देश भर में व्यापक रणनीति बनानी होगी, तभी इस पर अंकुश लग सकता है.

Last Updated : Jun 12, 2020, 2:29 PM IST
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