रांचीः कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी कन्याकुमारी से कश्मीर तक भारत जोड़ो यात्रा पर हैं तो दूसरी ओर राजस्थान कांग्रेस में गुटबाजी उजागर हो गई है. इस गुटबाजी ने आलाकमान को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है. इस संदर्भ में अगर बात झारखंड की करें तो झारखंड कांग्रेस भी कई गुटों (Factionalism in Jharkhand Congress) में बंटी है. डॉ. अजय कुमार के प्रदेश अध्यक्ष रहते और उसके बाद कई दफा पार्टी का राज्य कार्यालय अप्रिय घटनाओं का गवाह बन चुका है. झारखंड में कब नेताओं की गुटबाजी बड़ा रूप ले ले या फिर राजस्थान जैसा हाल करा दे कहा नहीं जा सकता.
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झारखंड कांग्रेस में वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर के अध्यक्ष बनने के साथ ही आलोक दुबे, लाल किशोरनाथ शाहदेव, राजेश गुप्ता ने जहां खुलेआम मोर्चा खोल रखा है तो पहले से ही सुबोधकांत सहाय, रामेश्वर उरांव, सुखदेव भगत, बन्ना गुप्ता, डॉ. अजय और अन्य नेताओं के अलग-अलग गुट हैं. यहां नेताओं की पहचान कांग्रेसी के साथ साथ उनके गुट से होती है.
झारखंड कांग्रेस के पूर्व प्रदेश सचिव और पुराने कांग्रेसी जगदीश साहू कहते हैं कि "दुख इस बात का है कि आज आलाकमान की बात को भी कोई गंभीरता से नहीं लेता. इसलिए पार्टी का यह हाल है, जिसे आलाकमान प्रदेश अध्यक्ष बनाता है उस पर लोग सवाल खड़ा करते हैं. इससे पुराने कांग्रेसी दुखी हैं और यह परिस्थिति तब खत्म होगी जब अनुशासन नहीं मानने वाले पर कठोर कार्रवाई हो".
जिसे गुटबाजी कहा जाता है वह हमारा आंतरिक लोकतंत्रः राकेश सिन्हा
कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी राकेश सिन्हा कहते हैं कि पार्टी में कोई गुटबाजी नहीं है. जब कभी कांग्रेसियों ने प्रदेश अध्यक्ष या किसी अन्य मुद्दे पर आवाज उठाई वह पार्टी में गुटबाजी नहीं बल्कि आंतरिक लोकतंत्र का नजारा साबित हुआ. यही वजह है कि डॉ. अजय कुमार हों या अन्य, कई बार जहां कांग्रेसियों ने आवाज उठाई तो पार्टी के हितों को देखते हुए अपनी बात भी कही.