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दिव्यांगता को अभिशाप नहीं बल्कि हुनर में बदला, जानिए ऐसे लोगों की कहानी

दिव्यांगता को कमजोरी नहीं बल्कि अपनी ताकत बनाने वाले कई शख्स हैं. उनमें से कुछ झारखंड में भी हैं(Skilled Handicapped People of Ranchi). ये भले ही शारीरिक रूप से कमजोर हैं, मगर इनका हुनर सलाम करने लायक है. ईटीवी भारत की इस रिपोर्ट में जानें ऐसे ही प्रेरणादायी लोगों के बारे में....

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Published : Dec 4, 2022, 9:51 AM IST

Updated : Dec 4, 2022, 10:27 AM IST

रांची: निशक्तता को भले ही समाज दूसरी नजर से देखता हो, मगर इससे पीड़ित लोगों के अंदर छिपी प्रतिभा किसी से कम नहीं है. ईटीवी भारत कुछ ऐसे ही निशक्तजनों से आपको परिचय कराना चाह रहा है (Skilled Handicapped People of Ranchi). जो भले ही शारीरिक रूप से कमजोर हैं, मगर इनका हुनर सलाम करने लायक है.

यह भी पढ़ें: International Day of Disabled Persons: स्टेज पर 'स्पेशल हुनर' का जलवा, कहा- हम दिव्यांगों को लोगों का प्यार मिलना चाहिए

बगैर हाथ के पेंटिंग बनाने वाले सूरज: बचपन से अपने दोनों हाथ और एक पांव खोने के बावजूद सुरज कुमार का हौसला बुलंद है. रांची के सुकुरहुटू के सामान्य परिवार के रहने वाले सूरज की पेंटिंग आप देखेंगे तो दंग हो जाएंगे. बगैर हाथ के पेंटिंग बनाने की सोच रखना किसी सपना से कम नहीं है. मगर सूरज ने इसे हकीकत में बदल दिया है. कागज पर बकायदा स्केल और पेंसिल के साथ पेंटिंग बनाने में जुटा यह युवक आज उन दिव्यांगों के लिए प्रेरणास्वरूप है जो विकलांगता के कारण घर बैठे हैं. दिनभर में पांच से छह पेंटिंग बनाकर इसी के सहारे जीवनयापन करनेवाला सूरज अशिक्षित होकर भी कागज पर अपने उज्ज्वल भविष्य की तश्वीर उकेरने में लगा है. पिता की मजदूरी और भाई के रोजी रोजगार पर किसी तरह सूरज का परिवार चलता है. सूरज को इंतजार है उस सुबह की जो उसके जीवन से अंधियारा मिटाने का काम करेगी.

देखें वीडियो


अंधेपन को कमजोरी नहीं बनने दिया: ये हैं आर धर्मराज. जन्म से अंधेपन के शिकार आर धर्मराज के हाथों से बने घरेलू सामान यदि एक बार चख लेंगे तो वाह किये बिना आप नहीं रहेंगे. अपने परिवार के साथ घरेलू उद्योग को चला रहे धर्मराज का मानना है कि अगर हिम्मत हो तो दुनिया आपकी मुठ्ठी में होगी. आपकी सफलता में निशक्तता बाधा नहीं बनेगी. अपने इस आत्मविश्वास के बल पर दूसरों को भी हुनरमंद बना रहे धर्मराज, दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत हैं. ईटीवी भारत ने जब उनसे जानना चाहा कि वह घरेलू उद्योग कब से वे चला रहे हैं तो उनका जवाब था कि 1989 से जब उन्हें जीवन के महत्व को समझ में आया.

बहरहाल जीवन अनमोल है. जिसे सार्थक जरूर बनाएं. जिसके लिए आत्मविश्वास और कुछ करने की ललक होनी चाहिए. यदि यह दोनों चीजें आप में हैं तो सूरज और धर्मराज जैसे समाज के हजारों लोग जो निशक्तता का शिकार हैं. उनके जीवन को सफल बनाने में कोई बाधा नहीं आएगी.

रांची: निशक्तता को भले ही समाज दूसरी नजर से देखता हो, मगर इससे पीड़ित लोगों के अंदर छिपी प्रतिभा किसी से कम नहीं है. ईटीवी भारत कुछ ऐसे ही निशक्तजनों से आपको परिचय कराना चाह रहा है (Skilled Handicapped People of Ranchi). जो भले ही शारीरिक रूप से कमजोर हैं, मगर इनका हुनर सलाम करने लायक है.

यह भी पढ़ें: International Day of Disabled Persons: स्टेज पर 'स्पेशल हुनर' का जलवा, कहा- हम दिव्यांगों को लोगों का प्यार मिलना चाहिए

बगैर हाथ के पेंटिंग बनाने वाले सूरज: बचपन से अपने दोनों हाथ और एक पांव खोने के बावजूद सुरज कुमार का हौसला बुलंद है. रांची के सुकुरहुटू के सामान्य परिवार के रहने वाले सूरज की पेंटिंग आप देखेंगे तो दंग हो जाएंगे. बगैर हाथ के पेंटिंग बनाने की सोच रखना किसी सपना से कम नहीं है. मगर सूरज ने इसे हकीकत में बदल दिया है. कागज पर बकायदा स्केल और पेंसिल के साथ पेंटिंग बनाने में जुटा यह युवक आज उन दिव्यांगों के लिए प्रेरणास्वरूप है जो विकलांगता के कारण घर बैठे हैं. दिनभर में पांच से छह पेंटिंग बनाकर इसी के सहारे जीवनयापन करनेवाला सूरज अशिक्षित होकर भी कागज पर अपने उज्ज्वल भविष्य की तश्वीर उकेरने में लगा है. पिता की मजदूरी और भाई के रोजी रोजगार पर किसी तरह सूरज का परिवार चलता है. सूरज को इंतजार है उस सुबह की जो उसके जीवन से अंधियारा मिटाने का काम करेगी.

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अंधेपन को कमजोरी नहीं बनने दिया: ये हैं आर धर्मराज. जन्म से अंधेपन के शिकार आर धर्मराज के हाथों से बने घरेलू सामान यदि एक बार चख लेंगे तो वाह किये बिना आप नहीं रहेंगे. अपने परिवार के साथ घरेलू उद्योग को चला रहे धर्मराज का मानना है कि अगर हिम्मत हो तो दुनिया आपकी मुठ्ठी में होगी. आपकी सफलता में निशक्तता बाधा नहीं बनेगी. अपने इस आत्मविश्वास के बल पर दूसरों को भी हुनरमंद बना रहे धर्मराज, दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत हैं. ईटीवी भारत ने जब उनसे जानना चाहा कि वह घरेलू उद्योग कब से वे चला रहे हैं तो उनका जवाब था कि 1989 से जब उन्हें जीवन के महत्व को समझ में आया.

बहरहाल जीवन अनमोल है. जिसे सार्थक जरूर बनाएं. जिसके लिए आत्मविश्वास और कुछ करने की ललक होनी चाहिए. यदि यह दोनों चीजें आप में हैं तो सूरज और धर्मराज जैसे समाज के हजारों लोग जो निशक्तता का शिकार हैं. उनके जीवन को सफल बनाने में कोई बाधा नहीं आएगी.

Last Updated : Dec 4, 2022, 10:27 AM IST
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