रांचीः राज्य के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने कहा है कि पिछली सरकार में कौशल विकास और नौकरी देने के नाम पर कथित अनियमितताओं की जांच एसआइटी की ओर से कराई जाएगी. उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार में लूट की छूट किसी को नहीं दी जाएगी. दरअसल शिक्षा विभाग की अनुदान मांगों पर चर्चा के पहले निर्दलीय विधायक सरयू राय ने कटौती प्रस्ताव पेश किया.
उस दौरान राय ने कहा कि पिछली सरकार ने दो बार राज्य के युवकों को नौकरी देने का दावा किया जिसमें पहली बार 26000 लोगों को नौकरी देने का दावा किया गया था. जबकि हकीकत यह है कि उनमें से 12,881 ऐसे नाम है जिन से संपर्क नहीं हो पाया. लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में नाम दर्ज हुआ था. वहीं उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय संस्था लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी सरकार के इस कदम की सराहना की गई है. वैसे में कहीं ना कहीं कुछ ऐसे पदाधिकारी या पदाधिकारियों का समूह है जो गलत काम को प्रमोट कर रहा है. उन्होंने कहा कि अगर मौजूदा सरकार की रुचि है तो इसकी जांच कराएं.
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पिछले साल एक लाख को नौकरी देने का दावा, 1500 ही कर रहे हैं काम
2019 में 1,00,000 लोगों को नौकरी देने का दावा किया गया. उसमें झारखंड स्टेट स्किल डेवलपमेंट मिशन, शहरी विकास विभाग, ऊर्जा विभाग, कल्याण विभाग ने भी यह दावा किया. जबकि सरकार की ओर से उपलब्ध कराई गई सूची में महज 44,693 लोगों का डाटा है. उनमें से सिर्फ 2417 लोगों ने काम ज्वाइन किया और दिसंबर 19 तक 1584 ही काम कर रहे हैं. अगर विभाग की यही संस्कृति रहे तो फिर राज्य के विकास की परिकल्पना कैसे की जा सकती है. उन्होंने कहा कि कौशल विकास में जो एजेंसियां काम कर रही थीं, उनके साथ करार में यह स्पष्ट शर्त रखी गई थी कि ट्रेनिंग के दौरान लोगों को बायोमेट्रिक अटेंडेंस बनवाना होगा. मौजूदा सरकार को यह देखना होगा कि कितनी बार ऐसी अटेंडेंस को 'वेव' करने के लिए एजेंसियों ने सरकार को लिखा है. उन्होंने कहा कि दरअसल एक विद्यार्थी पर प्रति 300-350 रुपये खर्च होते हैं. सरकार ने दावा किया कि 100000 विद्यार्थियों को ट्रेनिंग दी गई है. उन्हीने कहा की एक सीईओ भी बहाल हुए थे उन्होंने साल भर तक मानदेय लिया.
एसआइटी से हो जांच
शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने साफ कहा कि सरकार पूरे मामले की जांच एसआईटी से कराएगी. इसके बाद राय ने अपना कटौती प्रस्ताव वापस ले लिया. वहीं जगन्नाथ महतो ने इससे पहले वाद विवाद के बाद सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि शिक्षा की स्थिति पर वह चर्चा नहीं करना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि अगर सभी माननीय सदस्यों और अधिकारी सरकारी स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाएंगे तब स्थिति बदल सकती है. उन्होंने कहा कि इसके लिए मजबूत इच्छाशक्ति की जरूरत है लेकिन कोई भी इस और कदम नहीं बढ़ाना चाहता है.