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Shardiya Navratri 2022: नवरात्रि में खास है कन्या पूजा, डोरंडा जैप वन में इसकी अनोखी परंपरा - Jharkhand News

नवरात्रि में कन्या पूजन (Kanya Pujan in Navratri) का खास महत्व होता है. कहते हैं कन्या पूजन से सुख और समृद्धि आती है. रांची के डोरंडा जैप वन में भी कन्या पूजन की अनोखी परंपरा है. आईए इस खास रिपोर्ट में जानते हैं जैप वन में कन्या पूजन कैसे की जाती है, कन्या पूजन का महत्व (Significance of Kanya Pujan) क्या है, इसे कैसे करना चाहिए और पुरोहित इसे लेकर क्या कहते हैं.

Significance of Kanya Pujan
Significance of Kanya Pujan
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Published : Sep 28, 2022, 7:07 PM IST

Updated : Sep 28, 2022, 8:34 PM IST

रांची: हिन्दू धर्म में कन्या पूजन का खास महत्व है (Significance of Kanya Pujan). नवरात्रि के दौरान कुमारी पूजा या कन्या पूजन का महत्व और भी बढ जाता है. मान्यता यह है कि कुमारी पूजन से परिवार में सुख और समृद्धि होती है. यही वजह है कि नवरात्रि के नौ दिन लोग कन्या पूजन करते हैं (Kanya Pujan in Navratri). जबकि सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन विशेष रूप से मंदिरों और घर परिवार में कन्या पूजन कर लोग आशीर्वाद लेते हैं.

इसे भी पढ़ें: Durga Puja 2022: तांत्रिक विधि विधान से मनाया जाता है बाबा मंदिर में दूर्गा पूजा

2 से 12 वर्ष की कन्या का करें पूजन: पुरोहितों की मानें तो कुमारी पूजन के दौरान कन्या की उम्र 12 वर्ष तक ही होनी चाहिए. स्कंद पुराण के अनुसार, 2 वर्ष की कन्या को कुमारी, 3 वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ती, 4 वर्ष की कन्या को कल्याणी, 5 वर्ष की कन्या को रोहिणी, 6 वर्ष की कन्या को कालिका, 7 वर्ष की कन्या को चंडिका, 8 वर्ष की कन्या को शांभवी और 9 वर्ष की कन्या को मां दुर्गा का स्वरूप माना जाता है. वहीं, 10 वर्ष की कन्या को सुभद्रा कहा जाता है. कन्या पूजन में कन्याओं की संख्या दो से कम और नौ से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.

देखें स्पेशल स्टोरी

कन्या पूजन में एक बालक जरूरी: मान्यता है कि जिस प्रकार भगवान शिव ने हर शक्तिपीठ पर एक-एक भैरव को रखा है, उसी तरह कन्या पूजन में भी एक बालक को रखना जरूरी है इसलिए कुमारी पूजन में एक बालक को बैठाया जाता है. तपोवन मंदिर के मुख्य पुजारी ओमप्रकाश शरण कहते हैं कि जिस तरह से हम नवरात्रि में मां के नौ स्वरूपों की पूजा करते हैं, उसी तरह से मां के नौ स्वरूप मानकर नौ कन्याओं की पूजा की जाती है और उनसे आशीर्वाद लिया जाता है. यह सनातन धर्म के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है.


जैप वन में कन्या पुजन की अनोखी है परंपरा: डोरंडा जैप वन में दुर्गापूजा के दौरान कन्या पूजन की अनोखी परंपरा है (Kanya Puja in Doranda Jap One Ranchi). यहां सप्तमी के दिन छोटी छोटी नौ कन्याओं को डोली में बिठाकर शोभायात्रा निकाली जाती है. शोभायात्रा के दौरान सभी नौ कन्याओं को अलग-अलग नौ पेड़ के पास ले जाकर उनकी पूजा अर्चना की जाती है. इस शोभायात्रा में हजारों लोग शामिल होते हैं. जैप वन दुर्गा पूजा समिति से जुड़े संत कुमार बताते हैं कि पेड़ की पूजा के बाद फिर डोली में बिठाकर बच्चियों को मुख्य पूजा स्थल पर लाया जाता है. जहां उनकी पूजा होती है. नवमी के दिन भी मुख्य पूजा स्थल पर कन्या पूजन का विधान है. छोटी बच्चियों के पूजन के पीछे मान्यता यही है कि ये सभी नौ बच्चियां मां दुर्गा की विभिन्न रूपों में हैं और इनकी पूजा से परिवार और समाज में सुख समृद्धि होती है.

देवी पुराण में कन्या पूजा का वर्णन: कन्या पूजन का वर्णन देवी पुराण में भी है. इसमें कहा गया है कि मां को जितनी प्रसन्नता कन्या भोज से मिलती है, उतनी प्रसन्नता हवन और दान से भी नहीं मिलती है. ज्योतिषीय दृष्टि से भी कन्या पूजन को बहुत फलदायी माना गया है.

रांची: हिन्दू धर्म में कन्या पूजन का खास महत्व है (Significance of Kanya Pujan). नवरात्रि के दौरान कुमारी पूजा या कन्या पूजन का महत्व और भी बढ जाता है. मान्यता यह है कि कुमारी पूजन से परिवार में सुख और समृद्धि होती है. यही वजह है कि नवरात्रि के नौ दिन लोग कन्या पूजन करते हैं (Kanya Pujan in Navratri). जबकि सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन विशेष रूप से मंदिरों और घर परिवार में कन्या पूजन कर लोग आशीर्वाद लेते हैं.

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2 से 12 वर्ष की कन्या का करें पूजन: पुरोहितों की मानें तो कुमारी पूजन के दौरान कन्या की उम्र 12 वर्ष तक ही होनी चाहिए. स्कंद पुराण के अनुसार, 2 वर्ष की कन्या को कुमारी, 3 वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ती, 4 वर्ष की कन्या को कल्याणी, 5 वर्ष की कन्या को रोहिणी, 6 वर्ष की कन्या को कालिका, 7 वर्ष की कन्या को चंडिका, 8 वर्ष की कन्या को शांभवी और 9 वर्ष की कन्या को मां दुर्गा का स्वरूप माना जाता है. वहीं, 10 वर्ष की कन्या को सुभद्रा कहा जाता है. कन्या पूजन में कन्याओं की संख्या दो से कम और नौ से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.

देखें स्पेशल स्टोरी

कन्या पूजन में एक बालक जरूरी: मान्यता है कि जिस प्रकार भगवान शिव ने हर शक्तिपीठ पर एक-एक भैरव को रखा है, उसी तरह कन्या पूजन में भी एक बालक को रखना जरूरी है इसलिए कुमारी पूजन में एक बालक को बैठाया जाता है. तपोवन मंदिर के मुख्य पुजारी ओमप्रकाश शरण कहते हैं कि जिस तरह से हम नवरात्रि में मां के नौ स्वरूपों की पूजा करते हैं, उसी तरह से मां के नौ स्वरूप मानकर नौ कन्याओं की पूजा की जाती है और उनसे आशीर्वाद लिया जाता है. यह सनातन धर्म के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है.


जैप वन में कन्या पुजन की अनोखी है परंपरा: डोरंडा जैप वन में दुर्गापूजा के दौरान कन्या पूजन की अनोखी परंपरा है (Kanya Puja in Doranda Jap One Ranchi). यहां सप्तमी के दिन छोटी छोटी नौ कन्याओं को डोली में बिठाकर शोभायात्रा निकाली जाती है. शोभायात्रा के दौरान सभी नौ कन्याओं को अलग-अलग नौ पेड़ के पास ले जाकर उनकी पूजा अर्चना की जाती है. इस शोभायात्रा में हजारों लोग शामिल होते हैं. जैप वन दुर्गा पूजा समिति से जुड़े संत कुमार बताते हैं कि पेड़ की पूजा के बाद फिर डोली में बिठाकर बच्चियों को मुख्य पूजा स्थल पर लाया जाता है. जहां उनकी पूजा होती है. नवमी के दिन भी मुख्य पूजा स्थल पर कन्या पूजन का विधान है. छोटी बच्चियों के पूजन के पीछे मान्यता यही है कि ये सभी नौ बच्चियां मां दुर्गा की विभिन्न रूपों में हैं और इनकी पूजा से परिवार और समाज में सुख समृद्धि होती है.

देवी पुराण में कन्या पूजा का वर्णन: कन्या पूजन का वर्णन देवी पुराण में भी है. इसमें कहा गया है कि मां को जितनी प्रसन्नता कन्या भोज से मिलती है, उतनी प्रसन्नता हवन और दान से भी नहीं मिलती है. ज्योतिषीय दृष्टि से भी कन्या पूजन को बहुत फलदायी माना गया है.

Last Updated : Sep 28, 2022, 8:34 PM IST
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