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दिव्यांगता को हराकर श्वेता बनीं सशक्त, असहायों का कर रहीं इलाज

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Published : Mar 8, 2021, 4:04 PM IST

Updated : Mar 8, 2021, 5:01 PM IST

पूरे विश्व में महिला दिवस मनाया जा रहा है. देश के कई क्षेत्रों ने अपने बेहतर प्रदर्शन से महिलाओं ने अपने आपको साबित कर दिखाया है. बिहार के पूर्णिया जिले की रहने वाली श्वेता ने डॉक्टर बनने का सपना देखा था, जिसके लिए उन्होंने कठिन परिश्रम किया. आज वो रांची सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर हैं. श्वेता तीन साल की उम्र से ही पोलियो से ग्रसित हैं. बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी. आज महिलाओं के लिए श्वेता एक मिसाल हैं.

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दिव्यांगता को हराकर श्वेता बनीं सशक्त

रांची: कहते हैं हौसला अगर बुलंद हो तो कामयाबी हर कीमत पर मिलती है. कुछ ऐसा ही कर दिखाया रांची की एक दिव्यांग चिकित्सक डॉ श्वेता त्रिपाठी ने. साल 1967 में बिहार के पूर्णिया जिला में जन्मी श्वेता त्रिपाठी अपने छह भाई बहनों में सबसे छोटी हैं और 3 साल की उम्र में ही वो पोलियो से ग्रसित हो गई थी. उसके बावजूद भी वह अपने सपने को पूरे करने के लिए दिन रात मेहनत करती रहीं और तब तक मेहनत करती रहीं, जब तक उन्होंने अपना डॉक्टर बनने का सपना पूरा नहीं कर लिया.

देखें स्पेशल स्टोरी

इसे भी पढे़ं: महिला दिवस पर सीएम सोरेन ने दी बधाई, जेएमएम ने किया सम्मानित


श्वेता ने साल 1986 में पटना के मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया और पूरे लगन से अपनी पढ़ाई पूरी की. कुछ दिनों तक बिहार के विभिन्न जिलों में उन्होंने निजी प्रैक्टिस के तौर पर गरीब मरीजों की सेवा भी की. साल 2005 में अशोक नगर स्थित शहरी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में बतौर डॉक्टर श्वेता त्रिपाठी की नियुक्त हुई और तब से आज तक वह लगातार रांची में मरीजों की सेवा कर रही हैं. श्वेता त्रिपाठी बताती हैं कि बचपन से ही उन्हें डॉक्टर बनने का शौक था, इसीलिए वह अपने सपने को पूरा करने के लिए मन से आगे बढ़ती रहीं. उनके इस सपने को साकार करने में उनके परिवार खासकर माता पिता का बहुत सहयोग रहा.


श्वेता औरतों के लिए एक मिसाल
डॉ श्वेता त्रिपाठी ने बताया कि वह अपने दाहिने पैर से लाचार हैं, उसके बावजूद भी उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने कहा कि समाज में औरतों को दोहरे चरित्र के रूप में जीना पड़ता है, इसीलिए जरूरी है कि महिलाएं खुद को इतना मजबूत करें, कि वह किसी भी परिस्थिति से जूझ सकें. वो कहती हैं कि औरत को मजबूत होने की जरूरत है. श्वेता बताती हैं कि वो अपने घर के कामकाज को देखने के बाद मरीजों की सेवा में पूरी तन्मयता से जुट जाती हैं, रोज के इस कार्य से उन्हें कठिनाइयां तो आती है, लेकिन वो अपने धर्म को निभाने से पीछे नहीं हटती हैं. उन्होंने कहा कि दिव्यांग हूं, लेकिन हर हालात से लड़ते हुए आगे बढ़ते रहती हूं और कोशिश करती हूं, कि पूरे देश की औरतों के लिए एक मिसाल बनूं, ताकि औरतें विषम से विषम परिस्थितियों में सही निर्णय लेकर मजबूत बन सके.


इसे भी पढे़ं: जूट का थैला बना महिलाएं सपने कर रहीं साकार, बांस का बैग बनाकर दिखा रहीं तरक्की की राह

पुरुषों से कम नहीं महिलाएं

पूरे विश्व में 8 मार्च को महिला दिवस मनाया जाता है. भारत में भी इस अवसर पर कई जगहों पर कार्यक्रम किए जा रहे हैं. महिलाएं आज पुरुषों से कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रही हैं. दुनिया में हर क्षेत्रों में आज महिलाएं आगे बढ़ रही हैं. रांची की डॉ श्वेता त्रिपाठी ने भी संघर्ष कर अपनी मंजिल हासिल की और आज देश की महिलाओं के लिए एक मिसाल कायम की है. वो दिव्यांग हैं, लेकिन हौसले उनके किसी से भी कम नहीं हैं. उनके जज्बे को ईटीवी भारत भी सलाम करता है.

रांची: कहते हैं हौसला अगर बुलंद हो तो कामयाबी हर कीमत पर मिलती है. कुछ ऐसा ही कर दिखाया रांची की एक दिव्यांग चिकित्सक डॉ श्वेता त्रिपाठी ने. साल 1967 में बिहार के पूर्णिया जिला में जन्मी श्वेता त्रिपाठी अपने छह भाई बहनों में सबसे छोटी हैं और 3 साल की उम्र में ही वो पोलियो से ग्रसित हो गई थी. उसके बावजूद भी वह अपने सपने को पूरे करने के लिए दिन रात मेहनत करती रहीं और तब तक मेहनत करती रहीं, जब तक उन्होंने अपना डॉक्टर बनने का सपना पूरा नहीं कर लिया.

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श्वेता ने साल 1986 में पटना के मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया और पूरे लगन से अपनी पढ़ाई पूरी की. कुछ दिनों तक बिहार के विभिन्न जिलों में उन्होंने निजी प्रैक्टिस के तौर पर गरीब मरीजों की सेवा भी की. साल 2005 में अशोक नगर स्थित शहरी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में बतौर डॉक्टर श्वेता त्रिपाठी की नियुक्त हुई और तब से आज तक वह लगातार रांची में मरीजों की सेवा कर रही हैं. श्वेता त्रिपाठी बताती हैं कि बचपन से ही उन्हें डॉक्टर बनने का शौक था, इसीलिए वह अपने सपने को पूरा करने के लिए मन से आगे बढ़ती रहीं. उनके इस सपने को साकार करने में उनके परिवार खासकर माता पिता का बहुत सहयोग रहा.


श्वेता औरतों के लिए एक मिसाल
डॉ श्वेता त्रिपाठी ने बताया कि वह अपने दाहिने पैर से लाचार हैं, उसके बावजूद भी उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने कहा कि समाज में औरतों को दोहरे चरित्र के रूप में जीना पड़ता है, इसीलिए जरूरी है कि महिलाएं खुद को इतना मजबूत करें, कि वह किसी भी परिस्थिति से जूझ सकें. वो कहती हैं कि औरत को मजबूत होने की जरूरत है. श्वेता बताती हैं कि वो अपने घर के कामकाज को देखने के बाद मरीजों की सेवा में पूरी तन्मयता से जुट जाती हैं, रोज के इस कार्य से उन्हें कठिनाइयां तो आती है, लेकिन वो अपने धर्म को निभाने से पीछे नहीं हटती हैं. उन्होंने कहा कि दिव्यांग हूं, लेकिन हर हालात से लड़ते हुए आगे बढ़ते रहती हूं और कोशिश करती हूं, कि पूरे देश की औरतों के लिए एक मिसाल बनूं, ताकि औरतें विषम से विषम परिस्थितियों में सही निर्णय लेकर मजबूत बन सके.


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पुरुषों से कम नहीं महिलाएं

पूरे विश्व में 8 मार्च को महिला दिवस मनाया जाता है. भारत में भी इस अवसर पर कई जगहों पर कार्यक्रम किए जा रहे हैं. महिलाएं आज पुरुषों से कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रही हैं. दुनिया में हर क्षेत्रों में आज महिलाएं आगे बढ़ रही हैं. रांची की डॉ श्वेता त्रिपाठी ने भी संघर्ष कर अपनी मंजिल हासिल की और आज देश की महिलाओं के लिए एक मिसाल कायम की है. वो दिव्यांग हैं, लेकिन हौसले उनके किसी से भी कम नहीं हैं. उनके जज्बे को ईटीवी भारत भी सलाम करता है.

Last Updated : Mar 8, 2021, 5:01 PM IST
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