रांची: नई शिक्षा नीति क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने पर जोर देती है और नई शिक्षा नीति में क्षेत्रीय भाषाओं के लिए कई विशेष प्रावधान भी किए गए हैं. लेकिन इन क्षेत्रीय भाषाओं का विस्तार कैसे हो. इस पर पहल होती नहीं दिख रही है और जब हम क्षेत्रीय भाषाओं के साथ-साथ जनजातीय भाषाओं की बात करते हैं, तब समस्या और गंभीर हो जाती है.
यह भी पढ़ेंः किसानों के आंदोलन को माओवादियों का सपोर्ट, 26 मार्च के भारत बंद का करेंगे समर्थन
दरअसल विश्वविद्यालय में जनजातियों और क्षेत्रीय भाषाओं की पठन-पाठन की व्यवस्था काफी खराब है. 14 कॉलेजों में 9 ट्राइबल लैंग्वेज की पढ़ाई हो रही है, लेकिन स्थाई शिक्षकों की इन कॉलेजों में भारी कमी है.
राज्य में रांची विश्वविद्यालय एकमात्र ऐसा विश्वविद्यालय है जहां सबसे ज्यादा जनजातियां और क्षेत्रीय भाषाओं की पढ़ाई हो रही है, लेकिन यह पढ़ाई शिक्षकों के बिना ही हो रही है. रांची विश्वविद्यालय के पीजी विभाग से लेकर 14 कॉलेजों में इसकी पढ़ाई हो रही है, लेकिन इन्हें पढ़ाने वाले शिक्षकों की संख्या मात्र 30 है.
यह भी पढ़ेंः एक अप्रैल से 45 साल से अधिक आयु वाले भी लगवा सकेंगे कोरोना टीका
रांची विश्वविद्यालय के पीजी विभाग में 9 भाषाओं की पढ़ाई हो रही है, लेकिन इसमें केवल कुडुख और नागपुरी में ही सिर्फ स्थाई शिक्षक हैं. बाकी अन्य भाषाओं के लिए शिक्षक हैं ही नहीं. बिन गुरु के ही जनजातीय भाषाओं से जुड़े विद्यार्थी पढ़ने को मजबूर है.
केसीबी कॉलेज बेड़ो में कुडुख, नागपुरी की पढ़ाई हो रही है, लेकिन यहां इसके एक भी स्थाई शिक्षक नहीं है. रांची वीमेन्स कॉलेज एक ऐसा कॉलेज है जहां सभी नौ जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं की पढ़ाई हो रही है.
इसमें खोरठा कुडुख, कुरमाली ,नागपुरी, संताली, मुंडारी पंचपरगनिया और खड़िया शामिल हैं. यहां भी 9 में से केवल 4 भाषाओं के ही स्थाई शिक्षक हैं, जिनमें नागपुरी ,खोरठा, कुरमाली और खड़िया शामिल है.
- डोरंडा कॉलेज में मुंडारी और खड़िया
- राम लखन सिंह यादव कॉलेज में कुडुख,खोरठा, कुरमाली, मुंडारी
- जेएन कॉलेज में कुडुख और मुंडारी
- पीपीके कॉलेज बुंडू में कुरमाली और मुंडारी
- बीएन जालान कॉलेज सिसई में कुडुख
- एसएस मेमोरियल कॉलेज में कुरमाली
- सिमडेगा कॉलेज में नागपुरी, मुंडारी और कुडुख की पढ़ाई हो रही है, लेकिन इन विषयों के एक भी स्थाई शिक्षक नहीं हैं.
शिक्षक, प्रोफेसर, विद्यार्थी हैं परेशान
मामले को लेकर जनजातीय भाषा विभाग के विभागाध्यक्ष हरि उरांव का मानना है कि शिक्षकों की कमी के कारण पठन-पाठन बाधित हो रहा है. वहीं विभागीय शिक्षक भी यह कहते हैं कि वर्षों से अस्थाई रूप पर अनुबंध के तहत पठन-पाठन का काम संचालित कर रहे हैं.
अगर उन्हें स्थाई कर दिया जाता है मेरिट के आधार पर तो बेहतर होगा. दूसरी और रिसर्च करने वाले विद्यार्थी भी काफी परेशान हैं. उन विद्यार्थियों को रिसर्च से जुड़े प्रोफेसर नहीं मिलने के कारण वह विभिन्न माध्यमों के जरिए इन विषयों को लेकर रिसर्च कर रहे हैं.
उनके पठन-पाठन में भी काफी परेशानियां हो रहीं हैं. मामले को लेकर बार-बार विश्वविद्यालय के साथ-साथ उच्च शिक्षा विभाग को भी लिखा गया है. मामले पर विभाग कहते हैं कि जेपीएससी को इस संबंध में अवगत कराया गया है और जेपीएससी में रोस्टर क्लियर करने के बाद ही शिक्षकों की नियुक्ति हो पाएगी.
काफी गंभीर मामला
एक तरफ जहां प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा में भी नई शिक्षा नीति के तहत मातृभाषा और जनजातीय भाषाओं को तवज्जो देने की बात की जा रही है. वहीं दूसरी ओर झारखंड में जनजातीय भाषाओं की उपेक्षा की जा रही है. इस ओर उच्च शिक्षा विभाग को जल्द से जल्द ध्यान देना होगा नहीं तो इन भाषाओं को लेकर पठन-पाठन और रिसर्च करने वाले विद्यार्थियों का भविष्य अंधकार में होगा.